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गन्ने की पेड़ी फसल से कम लागत में ले सकते हैं ज्यादा पैदावार

कृषि विशेषज्ञ डा. महावीर सिंह मलिक ने कहा कि गन्ने की मोढी फसल लेने से खेत को तैयार करने में आने वाले खर्च की बचत बीज की बचत और कम निराई-गुड़ाई की आवश्यकता के कारण गन्ने की पहली फसल से 15-20 हजार प्रति एकड़ की कम लागत आती है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Apr 2021 07:36 PM (IST)Updated: Mon, 12 Apr 2021 07:36 PM (IST)
गन्ने की पेड़ी फसल से कम लागत में ले सकते हैं ज्यादा पैदावार
गन्ने की पेड़ी फसल से कम लागत में ले सकते हैं ज्यादा पैदावार

जागरण संवाददाता, पलवल: एक बार बोए गन्ने को काट लेने के बाद उससे दूसरी फसल लेने को मोढी, पेडी या रटून फसल कहते हैं। किसान गन्ने की पेडी फसल उन्नत तकनीक से उगाकर 400 से 600 क्विंटल पैदावार प्रति एकड़ ले सकते हैं।

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कृषि विशेषज्ञ डा. महावीर सिंह मलिक ने कहा कि गन्ने की मोढी फसल लेने से खेत को तैयार करने में आने वाले खर्च की बचत, बीज की बचत और कम निराई-गुड़ाई की आवश्यकता के कारण गन्ने की पहली फसल से 15-20 हजार प्रति एकड़ की कम लागत आती है। उचित देखभाल से भी बीज फसल के मुकाबले मोढी फसल से डेढ़ गुना तक पैदावार ली जा सकती है।

अगर गन्ने की पेडी लेनी हो तो उसे फरवरी से 15 अप्रैल तक काट लेना चाहिए। ज्यादा देर से काटी गई गन्ना में फुटाव कम होता है। पहली फसल की कटाई जमीन की सतह से मिलाकर काटनी चाहिए। गन्ना जमीन से ऊंचा काटने पर कम फुटाव और फसल कमजोर रह जाती है। अगर फसल ऊंचाई से काटी गई हो तो 15 दिन के अंदर गन्ने के खड़े अवशेष को जमीन की सतह से मिलाकर काट देना चाहिए। जमीन से ऊंची कटाई करने पर एक से डेढ़ इंच गन्ना भूमि मे जाता है। इससे छह से सात क्विंटल प्रति एकड़ गन्ने का नुकसान भी किसान को हो जाता है।

कटाई के बाद सूखी पत्तियां खेत से हटाकर सिचाई करने तथा बतर आने पर खाद डालकर गुड़ाई कर दें। इससे गन्ना में फुटाव जल्द और ज्यादा होगा। बाद में गन्ने में आवश्यकतानुसार सिचाई करते रहना चाहिए। इससे देर तक नमी बनी रहती है। गन्ने की पेडी फसल में गोबर की गली सड़ी खाद पांच से छह टन प्रति एकड़ डाल सकते हैं। इस फसल में 125 किलोग्राम सिगल सुपर फास्फेट, 35 किलो म्यूरेट आफ पोटाश, 65 किलोग्राम यूरिया गुड़ाई करते समय या दूसरी सिचाई पर डाल दें। इसके एक महीने बाद 65 किलोग्राम यूरिया और इतनी यूरिया की मात्रा जून में प्रति एकड़ डालकर सिचाई कर देनी चाहिए। रिक्त स्थान भरना:

पेडी गन्ना खेत में कुछ जगह खाली स्थान रह जाती है। इन खाली स्थानों को बीजु गन्ना टुकड़ों और नर्सरी में उगाए गए गन्ना पौधों से भर देना चाहिए। इससे पौधों की संख्या पर्याप्त होने से पैदावार बढ़ती है। पत्तियों का सफेद पड़ना:

फसल में कभी-कभी लौह तत्व की कमी में नई पत्तियां हल्का पीलापन लिए सफेद हो जाती हैं और गन्ने की बढ़वार रुक जाती है। इसके लिए एक किलोग्राम फेरस सल्फेट, पांच किलो यूरिया 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ 15 दिन के अंतर पर दो छिड़काव करने से फसल हरी-भरी हो जाती है।

फसल को गिरने से बचाने के लिए मई व जून में खूढ पर मिट्टी चढ़ा दें और जुलाई-अगस्त में बंधाई करके गन्ने को गिरने से बचाना चाहिए। गन्ना फसल को दीमक व कनसुवा कीट से बचाने के लिए गर्मियों में जल्द सिचाई करें। दीमक का प्रकोप होने पर 2.5 लीटर क्लोरोपायरीफोर्स 20 ई.सी. दवा सिचाई के पानी के साथ प्रति एकड़ लगा देनी चाहिए। इससे कनसुवा कीट की भी रोकथाम हो जाएगी। सूखी पत्तियों को बिछाना:

गन्ना फसल में कटाई के बाद निकाली गई पत्तियों को पेडी फसल में मल्चिंग या बिछावन के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। पत्तियों को पेडी फसल में एक साथ बिछा देना चाहिए। इससे फसल में खरपतवार नहीं उगेंगे और पानी की बचत भी होगी। इससे भूमि में जीवांश बढ़ने से भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ जाएगी। गन्ने की पहली फसल अक्टूबर-नवंबर में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद इसमें रबी की फसल गेहूं, जौ, मटर आदि की फसलें भी आसानी से ले सकते हैं।


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