बचपन से था देशभक्ति का जज्बा, अब शहीद संजय के पराक्रम की हर गांव में है चर्चा
कसरती शरीर के मालिक छह फुट के संजय 12वीं की पढ़ाई के बाद छह मई 1996 को सेना में भर्ती हो गए थे। सेना में उनके काम को देखते हुए उन्हें घातक प्लाटून में शामिल कर लिया गया।
पलवल [संजय मग्गू]। जिले के गांव बिचपुरी निवासी संजय कुमार ने अपने दादा चौधरी पूरन सिंह नंबरदार से किस्से-कहानियों में सुने थे कि किस प्रकार शहीदों की बदौलत देश को आजादी मिली। शहीदों की वीरता के किस्से सुनकर उन्होंने ठान लिया था कि वे देश के लिए कुछ कर गुजरेंगे। देशभक्ति व देश सेवा के जज्बे के साथ वे 21 वर्ष से कम की उम्र में ही सेना में भर्ती हो गए थे।
दादा की प्रेरणा से सेना में हुए थे भर्ती
संजय कुमार का जन्म 23 नवंबर 1975 को किसान रामकुमार के घर हुआ था। पूरन सिंह नंबरदार थे और गांव के रसूखदार व्यक्तियों में शामिल थे। दादा उन्हें देशभक्ति के किस्से तथा आजादी की लड़ाई के बारे बताते थे। इसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनमें देशभक्ति का जज्बा बचपन से ही था। कसरती शरीर के मालिक छह फुट के संजय 12वीं की पढ़ाई के बाद छह मई 1996 को सेना में भर्ती हो गए थे। सेना में उनके काम को देखते हुए उन्हें घातक प्लाटून में शामिल कर लिया गया। संजय कुमार ने दो दिसंबर से 1997 से 21 जून 1991 तक ऑपरेशन रक्षक, 22 जून 1999 से 27 दिसंबर 1999 तक ऑपरेशन विजय की टीम का हिस्सा रहते हुए अपने साहस व पराक्रम का खूब परिचय दिया।
छह आतंकियों को मौत के घाट उतार हो गए थे शहीद
संजय कुमार के परिजन बताते हैं कि 13 अक्टूबर 2000 की देर रात पूंछ सेक्टर में आतंकवादियों ने अचानक हमला कर दिया। उस वक्त संजय अपने आठ साथियों के साथ मोर्चे पर तैनात थे। आतंकवादियों और सेना के जवानों की बीच जमकर गोलीबारी शुरू हो गई थी।
घायल होने के बावजूद आगे बढ़ते रहे
सेना के जवान आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे। इसी बीच संजय को दो गोलियां लग गई। फिर भी उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। घायल होने के बावजूद वे आगे बढ़ते गए। वे अपनी यूनिट के साथियों को पीछे धकेलते हुए पहाड़ी पर पहुंच गए। आतंकवादी पहाड़ी के पीछे छिपे हुए थे।
छह आतंकियों को उतारा था मौत के घाट
आतंकवादियों की स्थिति का आभास होते ही उन्होंने अपनी राइफल से गोलियां बरसाते हुए छह आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। अपने साथियों को मरते देखकर आतंकवादी भी सचेत हो गए। उन्होंने भीषणतम गोलीबारी शुरू कर दी। आतंकवादियों की ओर से चलाई गई दो गोलियां संजय कुमार के सीने में तथा तीन गोलियां पेट में लग चुकी थी। इससे वे बुरी तरह से घायल हो गए। बुरी तरह घायल अवस्था में उन्हें सेना के बेस अस्पताल लाया गया, जहां उन्होंने मुस्कराते हुए अपने साथियों को अलविदा बोला।
कई दिनों तक गांव के लोग गमगीन रहे
संजय अपने गांव के दुलारे थे। उनकी शहादत के बाद कई दिनों सारे गांव के लोग गम में डूबे रहे। वे अपने लाड़ले की वीरता के किस्से कहते-सुनते रहे।
करवाचौथ के दिन घर पहुंचा था पार्थिव शरीर
सेना में रहते हुए संजय कुमार का विवाह अनिता से हुआ था। 16 अक्टूबर 2000 को करवाचौथ का पर्व था। अनिता ने भी अपने पति संजय कुमार की लंबी उम्र के लिए व्रत रखा था। लेकिन देश धर्म का पालन करते हुए संजय कुमार ने अपनी शहादत दे दी। पत्नी अनिता को भान नहीं था कि जिसकी लंबी उम्र के लिए वह रखे हुए है उसी दिन उनके पति देश के लिए अपनी शहादत दे चुके हैं। अनिता को अपने की शहादत पर गर्व था। आज भी अपने पति की शहादत पर गर्व करती हैं।
दुख तो है मगर गर्व भी है
नफे सिंह बोकन, शहीद संजय के भाई ने बताया कि भाई के न रहने का दुख तो है लेकिन इसका गर्व भी है कि उन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी। जब भी भाई का चित्र देखते हैं तो आंखें नम हो जाती हैं। अब सुकून मिला है कि जम्मू-कश्मीर में अब आतंकी गतिविधियों पर लगाम लग जाएगी। अब पूरा विश्वास है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की ठोस कदम से अनुच्छेद 370 व 35ए खत्म किए जाने से तिरंगे में लिपटकर जवानों के शव आने की घटनाएं नहीं होंगी।
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