Farmers Protest: रास आ रहे खुले बाजार, फिर भी कर रहे आंदोलन
एनसीआर में बिकता है मप्र का शरबती गेहूं आंदोलन के पक्ष में दिया तर्क देश भर के किसानों के लिए लड़ रहे हैं लड़ाई। डाबरा के किसान मयनदीप सिंह ने बताया कि सरकारें किसानी-खेती को बर्बाद करने पर तुली हैं। फिर चाहे वो किसी भी पार्टी की हो।
संजय मग्गू, पलवल। मध्यप्रदेश का शरबती गेहूं देशभर में अपनी अलग पहचान रखता है तथा एनसीआर से लेकर मुंबई तक शरबती गेहूं की धाक रहती है। मप्र के ग्वालियर, डाबरा तथा बुंदेलखंड के किसान इसे खुले बाजार में भी बेचते हैं तथा कांट्रेक्ट फार्मिग भी करते हैं। इसी प्रकार दालों तथा चने का भी बड़ा स्त्रोत मध्यप्रदेश रहा है तथा सेहत व स्वाद के चलते इसकी भी खुले बाजार में भरपूर मांग रहती है। खुद खुले बाजार का सहारा लेने वाले मप्र के ग्वालियर जिले के किसान कृषि कानूनों जिनका कि मूल कांट्रेक्ट फार्मिंग तथा खुले बाजार हैं, के विरोध में पिछले 14 दिन से राष्ट्रीय राजमार्ग पर धरने पर बैठे हैं।
मध्यप्रदेश में किसानों द्वारा बिना रसायनिक खाद के लंबे समय से आर्गेनिक खेती की जा रही है, इसी के चलते मप्र के गेहूं की सबसे अधिक मांग रहती है। इसे किसान खुले बाजार में एमएसपी से एक हजार से 1200 रुपये प्रति क्विंटल महंगा बेचते हैं। बड़े किसान जहां खुद सीधे एनसीआर की मंडियों में इसे लेकर पहुंचते हैं तो छोटे किसान वहां के स्थानीय तथा सुदूर प्रदेशों के व्यापारियों से भाव तय कर लेते हैं। इसी प्रकार से चने, दाल तथा अन्य दलहनी फसलों का है। दशकों से खुले बाजारों में अपनी फसल बेचने वाले धरने पर बैठे किसान इस बात के पक्ष में कोई ठोस तर्क नहीं दे पाते कि आखिर जब खुले बाजार उन्हें रास आ रहे हैं तो फिर वह इसका विरोध क्यों कर रहे हैं। मप्र के कई किसानों ने तो अपने आंदोलन के पक्ष में वहां की सरकार द्वारा बिजली की कीमत बढ़ाने का तर्क दे दिया।
ग्वालियर के किसान सुखबीर सिंह ने बताया कि यह बात तो ठीक है कि गेहूं को खुले बाजार में लंबे समय से बेचा जा रहा है, लेकिन हमे इसकी लागत नहीं मिलती। हम चाहते हैं कि सरकार इसकी भी एमएसपी तय करे, ताकि किसान को पूरा भाव मिल सके।
मप्र के पुरानी छावनी अवतार सिंह ने बताया कि चलो मान लिया कि गेहूं तो बिक जाता है, लेकिन धान की फसल के घाटे में गेहूं की कमाई भी चली जाती है। दो एकड़ का किसान खुले बाजार में लेकर कहां जाएगा, उसके लिए तो एमएसपी ही जरूरी है।
डाबरा के किसान पलविंद्र सिंह ने बताया कि बड़े जमींदार तो चलो खुले बाजार में बेच लेते हैं तथा दूर तक भी चले जाते हैं। छोटे किसान को तो फिर भी व्यापारी के हिसाब से भाव मिलता है। सरकार को एमएसपी की लिखित गारंटी का कानून बनाना चाहिए।
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