मकर सक्रांति आज, तिल-शक्कर का होगा सेवन
अछी फसल होने की कामना का प्रतीक मकर संक्रांति पर्व बृहस्पतिवार को आस्था और पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार मनाया जाएगा।
जागरण संवाददाता, पलवल : अच्छी फसल होने की कामना का प्रतीक मकर संक्रांति पर्व बृहस्पतिवार को आस्था और पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार मनाया जाएगा। माघ माह में आने वाला यह पर्व सर्दी के मौसम में लाभदायक तिल व शक्कर का सेवन करने का संदेश देता है। तिल को शक्कर के साथ कूटकर खाना अति लाभदायक माना जाता है। जिले के ग्रामीण अंचल में बृहस्पतिवार को सक्रांति का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा।
हिदू धर्म में मकरसक्रांति का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं तथा इसके साथ ही सभी प्रकार के मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति को भगवान सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। इसके साथ ही एक माह का खरमास खत्म हो जाता है। ग्रामीण अंचल में संक्रांति पर्व को सकट के नाम से भी जाना जाता है। पर्व को देखते हुए बुधवार को बाजार भी गुलजार रहे तथा लोगों ने तिल व शक्कर की खरीदारी की। इसके अलावा वस्त्र व अन्य उपहार भी खरीदे गए। माता-पिता व बुजुर्गो की सेवा का है प्रतीक :
सकट पर्व माता-पिता व अन्य बुजुर्गो के मान सम्मान का भी प्रतीक है। आध्यात्मिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर ने अपने पुत्रों गणेश व कार्तिकेय को पृथ्वी का चक्कर लगाने के आदेश दिए। गणेश ने अपने माता-पिता की ही परिक्रमा कर ली तथा संदेश दे दिया कि माता-पिता के चरणों में ही सब कुछ निहितार्थ है। इस पर्व को संतान व पति की सुख समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। महिलाएं उपवास रखती हैं तथा अपने सास ससुर या अन्य बुजुर्ग को उपहार देती हैं, जिसे स्थानीय भाषा में बायना कहा जाता है। हमारे यहां सकट का पर्व धूमधाम से मनाते हैं। तिलकुट का वितरण भी करते हैं तथा दान पुण्य भी किया जाता है। संक्रांति का पर्व बुजुर्गों के मान-सम्मान का भी संदेश देता है।
- मिथलेश, सामाजिक कार्यकर्ता सकट पर्व के दिन घरों में तिलकुट बनता है तथा आपस में बांटा भी जाता है। आज बाजार में तिल, शक्कर की काफी बिक्री हुई।
- प्रवीण गर्ग, किराना विक्रेता मकर संक्रांति पर्व का दान-पुण्य तथा पूजा पाठ में विशेष महत्व है। पुण्य काल बृहस्पतिवार सुबह साढ़े आठ से शाम को पौने छह बजे तक का है। पर्व का महा पुण्य काल सुबह साढ़े आठ बजे से सवा 10 बजे तक है।
- यशपाल शास्त्री, पुरोहित