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आंदोलनकारियों ने पुलवामा के शहीदों को किया नमन

तीनों कृषि सुधार कानून विरोधी किसानों ने रविवार को राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित अटोहां चौक के समीप चल रहे धरनास्थल पर पुलवामा हमले की दूसरी वर्षगांठ के मौके पर पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि दी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Feb 2021 04:43 PM (IST)Updated: Sun, 14 Feb 2021 04:43 PM (IST)
आंदोलनकारियों ने पुलवामा के शहीदों को किया नमन
आंदोलनकारियों ने पुलवामा के शहीदों को किया नमन

जागरण संवाददाता, पलवल : तीनों कृषि सुधार कानून विरोधी किसानों ने रविवार को राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित अटोहां चौक के समीप चल रहे धरनास्थल पर पुलवामा हमले की दूसरी वर्षगांठ के मौके पर पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि दी। प्रदर्शनस्थल पर आंदोलनकारियों द्वारा शहीदों को नमन करते हुए पुष्पांजलि अर्पित की गई। इस मौके पर किसान नेताओं ने कहा कि सरकार आंदोलनरत किसानों की मांगों को पूरा करे, पुलवामा के शहीदों के प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी, क्योंकि शहीद होने वाले किसानों के ही बच्चे थे।

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राष्ट्रवादी विचार मंच के अध्यक्ष किसान नेता व वैदिक संन्यासी स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने इस मौके पर कहा कि सत्यार्थ प्रकाश के छटे समुल्लास में महर्षि दयानंद सरस्वती ने लिखा है कि किसान राजाओं का राजा है। उन्होंने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने अनुयायियों को आदेश दिया था कि मेरे शरीर की भस्म को किसी किसान के खेत में डाल देना, जिससे उनके शरीर की राख खेत की मिट्टी में मिलकर देश के काम आ जाए।

स्वामी श्रद्धानंद ने कहा कि सरदार भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह ने वर्ष 1907 में कृषि को बर्बाद करने वाले कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने उस समय किसानों से अपील की थी पगड़ी संभाल जट्टा तेरा लुटगा माल, ओ पगड़ी संभाल। उन्होंने बताया कि किसान आंदोलन के सामने ब्रिटिश सरकार को भी झुकना पड़ा था। शहीद भगत सिंह का परिवार महर्षि दयानंद का अनुयायी था। उन्होंने बताया कि शेरे पंजाब लाला लाजपत राय किसान आंदोलन में भाग लेते थे। वहीं, चौधरी छोटूराम ने आजीवन किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी व्यवस्था को लागू कराया था। उन्होंने चौधरी चरण सिंह, आर्य संन्यासी स्वामी इंद्रवेश, स्वामी ओमानंद सरस्वती व आर्य नेता प्रो. शेर सिंह का जिक्र करते हुए आर्य समाज को किसानों के प्रति हमदर्द बताया और कहा कि आज भी अनेकों आर्य संन्यासी, उपदेशक, भजनोपदेशक किसान आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं।


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