कृषि सलाह: कीटों से बचाव व उचित देखभाल से बढ़ेगी बेर की पैदावार
भगवान शिव की अराधना तथा शिव रात्रि पर्व की पूजा में प्रमुख रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला फल बेर आध्यात्मिक महत्व तो रखता ही है पोषक तत्व से भरपूर सस्ता व सहज उपलब्ध फल है।
जागरण संवाददाता, पलवल : भगवान शिव की अराधना तथा शिव रात्रि पर्व की पूजा में प्रमुख रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला फल बेर आध्यात्मिक महत्व तो रखता ही है, पोषक तत्व से भरपूर सस्ता व सहज उपलब्ध फल है। बेर को बारानी क्षेत्रों एवं ऊसर व कमजोर भूमि में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। गुणवत्ता में बेर सेब से भी बढ़कर है तथा सहज उपलब्ध होने के कारण बेर को गरीबों की मेवा भी कहा जाता है।
कृषि विशेषज्ञ डा. महावीर सिंह मलिक ने गांव ककराली में बागवानी के बारे में आयोजित किसान गोष्ठी में कहा कि बेर के बागों से अधिक पैदावार लेने के लिए उचित देखभाल तथा कीटों व बीमारियों से बचाव करना जरूरी है। इस समय बेर के पेड़ फलों से लदे हुए हैं तथा इस समय कोई उर्वरक नहीं डालना चाहिए। बेर में गोबर की खाद व सुपरफास्फेट जून में तथा यूरिया जुलाई व नवंबर में दो बार मिट्टी की जांच या सामान्य सिफारिश अनुसार पौधे की आयु के हिसाब से डालना चाहिए।
खाद मुख्य तने से एक मीटर की दूरी पर डालना चाहिए। गोष्ठी का संयोजन प्रगतिशील किसान लेखराज ने किया तथा संचालन वीरेंद्र कुंडू व किशन शर्मा ने किया। इस अवसर पर महेंद्र सिंह, मनिद्र सिंह, दीपचंद, सुरेंद्र, मुकुंदी लाल, नितिन, हरीश, योगेश, संतराम, भोलू, सतेंद्र, हरिचंद, पप्पू मुख्य रूप से मौजूद रहे। यूं करें रोग व कीटों से बचाव :
दीमक से बचाव के लिए बागों में गोबर की गली- सड़ी खाद ही प्रयोग करें। इसके अलावा लीटर क्लोरपीरिफीस दवा सिचाई के समय प्रति एकड़ डाली जानी चाहिए। छोटे पौधों में दवा की 50 मिली मात्रा पांच लीटर पानी में प्रति पौधा डालने से दीमक से बचाव हो जाता है। फल मक्खी बेर को सबसे अधिक हानि पहुंचाने वाला कीट है। बेर फल मक्खी जब फल मटर के दाने आकार के हो जाते हैं तब फलों के छिलके के नीचे अंडे देती है। अंडों से चावल जैसी सुंडिया निकलकर फलों के अंदर खाकर खराब कर देती है। फल टेढ़े-मेढ़े व काले हो जाते हैं तथा समय से पहले पक कर गिरने लगते हैं।
इससे बेर की पैदावार कम व गुणवत्ता खराब होने से बागवान को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। फल मक्खी की रोकथाम के लिए जनवरी माह में पेड़ों के आसपास भूमि को खोद दें तथा प्रभावित फलों को इकट्ठा करके भूमि में दबा दें। फल जब मटर के दाने जितने बड़े हो जाएं तो कीट नियंत्रण के लिए 500 मिली डाईमेथोऐट (रोगोर) 30 ईसी को पेड़ों पर 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव कर देना चाहिए। जनवरी माह के आखिर में 500 मिली मेलाथियान 50 ईसी दवा तथा 5 किलो गुड़ या चीनी 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव कर दे। इससे लाख कीट भी मर जाएगा। फलों को मेलाथियान का छिड़काव करने के तीन दिन बाद तोड़कर अच्छी तरह पानी से धो लें, ताकि फलों पर दवा का प्रभाव न रहे।
बेर का मुख्य रोग सफेद चुन्नी रोग है, जिसमें फलों पर सफेद पाउडर जम जाता है। फलों का आकार छोटा व उपज में भारी कमी आ सकती है। रोग नियंत्रण के लिए 0.2 फीसद सल्फेक्स का पहला छिड़काव फल निकलने से पहले तथा दूसरा फल बनने पर करना चाहिए। सफल नियंत्रण के लिए पेड़ों को फफूंद नाशिक से तर-बतर कर दें। काजली रोग व फल गलन रोग रोकथाम के लिए कापर आक्सिक्लोराइड दबा के 0.3 फीसद घोल का छिड़काव करना चाहिए। बेर में कभी-कभी फल फटने लगते हैं। रोकथाम के लिए छह ग्राम बोरेक्स प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव कर देना चाहिए। बेर में दीमक, फल मक्खी, लाख का कीट, पत्ता खाने वाली भुंडिया जैसे कीट लगते हैं। बेर में फल बनते समय सफेद चुन्नी रोग, फल गलन व काजली नामक रोग भारी नुकसान करते हैं। कीट व रोग से अगर बचाव कर लिया जाए तो अच्छी पैदावार होगी तथा मुनाफा भी बढ़ेगा।
- डा. महावीर मलिक, कृषि विशेषज्ञ