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कृषि सलाह : दालों की पूर्ति के लिए जरूरी है चने का उत्पादन बढ़ाना

प्रमुख दलहनी फसल में शामिल चने में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होती है। प्रोटीन से भरपूर चने की हरी पत्तियां साग सब्जी बनाने में तथा बेसन लड्डू पकोड़े व छोले आदि में चने का प्रयोग किया जाता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 06:43 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 06:43 PM (IST)
कृषि सलाह : दालों की पूर्ति के लिए जरूरी है चने का उत्पादन बढ़ाना
कृषि सलाह : दालों की पूर्ति के लिए जरूरी है चने का उत्पादन बढ़ाना

जागरण संवाददाता, पलवल : प्रमुख दलहनी फसल में शामिल चने में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होती है। प्रोटीन से भरपूर चने की हरी पत्तियां साग, सब्जी बनाने में तथा बेसन, लड्डू, पकोड़े व छोले आदि में चने का प्रयोग किया जाता है। चना दलहनी फसल होने के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाता है।

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कृषि विशेषज्ञ डा. महावीर सिंह मलिक बताते हैं कि दालों की पूर्ति के लिए चने का उत्पादन बढ़ाना जरूरी है। चने के लिए अच्छे जल निकास वाली हल्की रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। ऊसर व रेह वाली भूमि में चना न उगाएं। ढीली तथा वादार मिट्टी में चने का उत्पादन अच्छा होता है। प्रमाणित उन्नत बीज संतुलित मात्रा में उर्वरक डालकर इसकी अच्छी पैदावार ली जा सकती है।

बुआई के समय चने के बीज को कीटनाशक तथा फफूंद नाशक दवाओं से उपचारित करने के बाद जीवाणु टीका लगाकर बिजाई करनी चाहिए। दीमक की रोकथाम के लिए 1500 मिलीलीटर क्लोरोपायरीफोस 20 दवा को पानी में मिलाकर दो लीटर घोल बनाकर एक क्विंटल बीज में बोने से 10-12 घंटे पहले उपचारित करना चाहिए। इसके बाद उखेड़ा रोग से बचाव हेतु ढाई ग्राम बावस्टिन प्रति किलो बीज दर से सुखाकर उपचारित करें। सबसे आखिर में बीज मेरा राइजोबियम जीवाणु टीका तथा फोस्फो टीका लगाकर बोना चाहिए। किस्में तथा बुआई का समय :

सी 235 हरियाणा चन्ना नंबर तीन व पांच सिचित क्षेत्रों में तथा पूसा हरा चना 112, हरियाणा चना नंबर एक, बारानी तथा सिचित क्षेत्रों के लिए चने की रोग रोधी उन्नत किस्में हैं। काबली चने की हरियाणा काबुली चना नंबर एक व दो उन्नत किस्में हैं। अच्छी पैदावार के लिए चने की बुवाई नवंबर के पखवाड़े तक कर देनी चाहिए। हरियाणा चना नंबर एक की बिजाई सिचित दशा में नवंबर के तीसरे सप्ताह से पछेती मध्य दिसंबर तक भी की जा सकती है। चने की देसी किस्मों का 15 से 18 किलो बीज, हरियाणा चना नंबर तीन का 32 किलोग्राम, हरियाणा चना नंबर एक का 22 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ प्रयोग करना चाहिए। लाइन से लाइन का फासला 45 सेंटीमीटर कर बिजाई करें। बीज उपचार व उर्वरक :

चने में फली छेदक सुंडी पत्तियों, कलियों तथा टाट में दाने खाकर कभी-कभी भारी नुकसान करती है। कीट रोकथाम के लिए 200 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफास 36 एसएल दवा को डेढ़ सौ लीटर पानी में मिलाकर फसल में 50 फीसद टाट बनने पर छिड़काव अवश्य कर देना चाहिए। बिजाई के समय चने में 35 किलोग्राम डीएपी या 15 किलो यूरिया तथा 100 किलोग्राम सुपर फास्फेट ड्रिल कर देना चाहिए। सिचित दशा में 10 किलोग्राम जिक सल्फेट भी प्रति एकड़ डालना चाहिए। सर्दियों में वर्षा न हो तो एक सिचाई फूल आने से पहले बिजाई के 45 से 60 दिन के अंदर कर देनी चाहिए। चने को दीमक तथा जड़ गलन व उखेड़ा आदि रोगों से बचाने के लिए बीज को उपचारित करके ही बोना चाहिए। खरपतवार रोकथाम के लिए निराई गुड़ाई करें। सिचाई देने के बाद या वर्षा होने के बाद गुड़ाई करने से लंबे समय तक नमी बनी रहती है।

- डा. महावीर मलिक, कृषि विशेषज्ञ


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