अधिकारियों के ढुलमुल रवैये की वजह से बिगड़ रही शहर की तस्वीर
सूबे का जिला महेंद्रगढ़ हो या मुख्यालय नारनौल कहीं भी साफ-सफाई का नामोनिशान नहीं है। अलबत्ता कूड़ा तो नांगल चौधरी और कनीना कस्बे के कूड़ादान से भी उठता है लेकिन सतह पर सफाई नहीं होती। मलबा जस के तस छोड़ दिया जाता है। जो पड़े-पड़े सड़ता रहता है।
बिरंचि सिंह, नारनौल
सूबे का जिला महेंद्रगढ़ हो या मुख्यालय नारनौल कहीं भी साफ-सफाई का नामोनिशान नहीं है। अलबत्ता, कूड़ा तो नांगल चौधरी और कनीना कस्बे के कूड़ादान से भी उठता है, लेकिन सतह पर सफाई नहीं होती। मलबा जस के तस छोड़ दिया जाता है। जो पड़े-पड़े सड़ता रहता है। बाद में धूल-मिट्टी की तरह यह सड़कों पर उड़ता रहता है। इस तरह की स्थिति तो पूरे जिले की है।
अकेले नारनौल शहर में हर रोज 45 ट्रक कूड़ा उठता है, लेकिन यह कूड़ा कहां से आता है कहां जाता है इसका कहीं अता-पता नहीं है। घर-घर से 25 कूड़ा उठाने वाली गाड़ियों के अलावा आठ ट्रैक्टर बाजार क्षेत्र से कूड़ा उठाने के लिए लगे हुए हैं। फिर भी बाजार खुलने के साथ गलियां और सड़कें कूड़े के ढेर में दबी मिलती हैं। ऐसे हालात तो तब भी थे जब नारनौल नगर परिषद में शामिल नहीं थे। अब जबकि शहर के आस पास पंचायत की गांवों को शामिल कर लिया गया है, लेकिन न तो कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां बढ़ीं और न सफाई कर्मचारियों की संख्या में बढ़ोतरी की गई। ऐसे में हालत पहले से और ज्यादा बिगड़ते गए। ऐसे में नियमित तौर पर समुचित साफ-सफाई तभी संभव है जब नियमित तौर पर कर्मचारियों की भर्ती और तैनाती होती रहे। लेकिन छह माह बीत गए नगर परिषद को भंग कर दिया गया।
पंचायतों का अधिकार जब्त हो गए। सफाई कर्मचारियों को अधिकारियों का संरक्षण मिला हुआ है। ऐसे कर्मी काम में कोताही करने से बाज नहीं आते। परिषद आला अधिकारी नए कर्मचारियों को नियुक्त करने से इसलिए कतरा रहा है। क्योंकि उसके पास अभी तक कार्यरत कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे पूरे नहीं हो पड़ रहे हैं। ऐसे में जब तक नगर परिषद और पंचायती जैसे तंत्र बहाल नहीं होते तब तक स्वच्छता के लिए यंत्रों का उपाय करने की बात बेमानी लगने लगी है। अब तक नगर परिषद और पंचायतों का चुनाव संपन्न हो जाते, लेकिन क्षेत्रीय प्रतिनिधियों की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से इस काम में रोड़ा पड़ा। अकेले कूड़ा उठाना और निपटान करना स्वच्छता की परिभाषा नहीं हो सकती। मार्गों के किनारे टनों मिट्टी के ढेर पड़े हैं जब सफाई कर्मचारी कूड़ादान घर से जमीन पर पड़े मलबा नहीं उठाते तो सड़क किनारे से मिट्टी उठाने की उम्मीद इनसे कैसे की जा सकती है।
हालांकि, नगर परिषद के पास सड़क किनारे धूल-मिट्टी उठाने के लिए एक मशीन है, लेकिन यह मशीन छह माह में एक बार सड़कों के किनारे रेंगती हुई नजर आती है। सड़क किनारे धूल-मिट्टी के जमाव के लिए राजमार्ग के निर्माण में लगे भारी भरकम ट्रक ट्राले को दोषी ठहराया जाता रहा है। कहा यह भी जाता रहा है कि जब तक शहर से बाहर बाहर इन भारी वाहनों के निकलने का मार्ग तैयार नहीं हो जाता तब तक शहर पर धूल-मिट्टी का साया छाया रहेगा। एक नजर में शहर की स्वच्छता में निर्माणाधीन हाईवे में हो रही देरी को माने जाने लगा है। हाइवे निर्माण में हो रही देरी भी राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी मानी जा रही है।