75 वर्ष की उम्र में भी दुश्मनों से मुकाबले का जज्बा
सूबेदार करण सिंह को आज भी 1971 के भारत-पाक युद्ध की घटना याद आते ही रोमांचित हो उठते हैं। वे इस उम्र में भ्भ्ी सेना ने जाने को तैयार हैं।
संवाद सहयोगी, कनीना:
सूबेदार करण सिंह को आज भी 1971 के भारत-पाक युद्ध की घटना याद आती है तो जोश और उत्साह से भर जाते हैं। इस युद्ध में उन्होंने भी हिस्सा लेकर दुश्मनों का डटकर मुकाबला किया था। मूलरूप से जिला के गांव गुढा निवासी 75 वर्षीय सूबेदार करण सिंह उस युद्ध में टैंक ऑपरेटर के रूप में अपने कमांडर अधिकारियों को दुश्मन के ठिकानों की पल पल की जानकारी मुहैया कराते थे। वर्तमान में मेघनवास में रह रहे सूबेदार करण सिंह बताते हैं कि जब 1971 का भारत-पाक युद्ध हो रहा था तब उनका हमेशा दुश्मन को मार गिराने का इरादा रहता था। उनमें सटीक निशाना साधने की खूबी थी। करण सिंह ने 26 वर्ष की उम्र में भारत-पाक युद्ध में हिस्सा लिया था। वह आर्टिलरी में कार्यरत थे। उन्होंने बताया कि अगरतला से ढाका तक उनकी सेना पहुंच चुकी थी युद्ध भयंकर होता था जो गोली और बंदूकों के बीच चलता था। पाकिस्तान के साथ लड़ाई जून 1971 में शुरू हो गई थी लेकिन घोषणा नवंबर 1971 में की गई। मुक्ति वाहिनी सेना के साथ भारतीय सेना युद्ध मैदान में गई और दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। उनके टैंक से निकलने वाले गोले दुश्मन का खात्मा कर देते थे। वे वर्ष 1991 में सेवानिवृत्त हो गए। वर्तमान में उनका पुत्र रणधीर सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हैं जबकि एक पोता मनीष कुमार भारतीय नौसेना में नायब सूबेदार के पद पर कार्यरत है। करण सिंह बताते हैं कि देशभक्ति का जज्बा उन्होंने बचपन से ही सीखा। जब स्कूल में पढ़ते थे तब शिक्षक उनमें देशभक्ति का जज्बा भरते थे। बड़े होने पर मां केसरी देवी तथा पिता अर्जुन सिंह उन्हें देशभक्तों के बारे में कहानियां सुनाते थे। इस पर उन्होंने निर्णय कर लिया कि वह सेना में भर्ती होंगे। करण सिंह ने बताया कि पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी के रूप में जो सेना गठित की गई थी वह पाकिस्तान की सेना से लड़ी और भारतीय सेना को रास्ता बताए। यही कारण है कि पूर्वी पाकिस्तान के नदियों के जल को पार करके भारतीय सेना ढाका तक पहुंच गई थी। करण सिंह बताते हैं कि आज भी सेना की बात चलती है तो उनका रोम-रोम प्रसन्न हो उठता है। वे अभी भी सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने का जज्बा रखते हैं।