दक्षिणी हरियाणा के किसानों का ताजा हुआ एसवाईएल का दर्द
दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को देखकर दक्षिण हरियाणा के किसानों को सूखे की बर्बादी की पीड़ा अधिक चुभी है। इस आंदोलन के मध्य दक्षिण हरियाणा के किसानों ने 150 से अधिक ग्राम पंचायतों के सरपंचों पंचायत समिति के सदस्यों जिला परिषद की चेयरमैन नगर परिषद व नगर पालिकाओं के अध्यक्षों एवं अन्य जनप्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी इस वेदना को व्यक्त किया है।
जागरण संवाददाता, नारनौल: दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को देखकर दक्षिण हरियाणा के किसानों को सूखे की बर्बादी की पीड़ा अधिक चुभी है। इस आंदोलन के मध्य दक्षिण हरियाणा के किसानों ने 150 से अधिक ग्राम पंचायतों के सरपंचों, पंचायत समिति के सदस्यों, जिला परिषद की चेयरमैन, नगर परिषद व नगर पालिकाओं के अध्यक्षों एवं अन्य जनप्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी इस वेदना को व्यक्त किया है।
किसानों ने आंदोलनकारियों को याद करवाया कि अब उन्हें केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानूनों के कथित दुष्परिणामों की कल्पना मात्र से जो पीड़ा हो रही है इससे कहीं अधिक भयंकर पीड़ा वह पिछले 50 सालों से एसवाईएल का पानी ना मिलने के कारण झेल रहे हैं। उन्होंने यद्यपि यह स्पष्ट कहा कि कृषि कानूनों के बारे में जो भी किसानों की शंकाएं हैं वह केंद्र सरकार को दूर करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना किसान हित में है। परंतु उन्होंने साथ-साथ यह भी स्पष्ट किया कि पंजाब के किसान भाई जो हरियाणा के बॉर्डर पर कृषि कानूनों की शंका मात्र से आकर बैठे हैं,उन्हें इस बात को महसूस करने का यह अवसर है कि उन्होंने भी दक्षिणी हरियाणा के किसानों को इससे अधिक पीड़ा दी हुई है।
इस अवसर पर वह जरा अपनी
अंतरात्मा में झांक कर देखें कि दक्षिणी हरियाणा का गरीब किसान जो सदियों से पंजाब के अपने भाइयों से यह उम्मीद लगाए बैठा है कि कभी तो वे अपने इन सूखे से पीड़ित भाइयों के बारे में सोचेंगे और वह एसवाईएल के बनने में बाधा नहीं बनेंगे और एसवाईएल के माध्यम से भाखड़ा का पानी उन्हें अपनी आजीविका के लिए उपलब्ध कराएंगे।
किसानों ने आगे कहा कि उन्हें इस बात की पीड़ा है कि इस कानून सम्मत फैसले पर भारत सरकार के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई बार मोहर लगाने के बाद भी पंजाब सरकार और वहां के किसान उस फैसले को लागू नहीं करने की जिद पर अड़े बैठे हैं। आज वह जिस कानून व जिस किसान की दुहाई देते हैं उनकी आत्मा ने कभी उनको इस बात के लिए नहीं झकझोरा कि वह एक विशाल सूखे क्षेत्र और वहां के
किसानों को अपने हाल पर मरने के लिए विवश कर रहे हैं। अत: पंजाब सरकार और पंजाब से आए किसानों को दक्षिणी हरियाणा के किसान इस बात का एहसास करवाने का प्रयास कर रहे हैं कि जिन्हें आज कृषि कानून पर पीड़ा हो रही है उनसे कहीं अधिक पीड़ा का दंश दक्षिणी हरियाणा के किसान आधी शताब्दी से भुगत रहे
हैं।
किसानों ने हरियाणा के उन किसानों और उन राजनीतिक नेताओं को भी एसवाईएल की याद करवाई जो आज अंधे होकर पंजाब के उन किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाने की कोशिश कर रहे हैं, जो हरियाणा के कानूनी हिस्से के पानी को भी हरियाणा में नहीं छोड़ने के लिए जिद किए बैठे हैं।
विशेषकर वो नेता जिन्होंने राज्य की
राजनीति के शीर्ष पर बैठकर इसी पंजाब से पानी के लिए कई वर्षों तक संघर्ष का नाटक किया है। वे नेता जरा अपनी अंतरात्मा में झांक कर देखें कि क्या अब जिस पंजाब सरकार और पंजाब के जिन किसानों का साथ दे रहे हैं क्या उनकी अब आत्मा बदल गई है। यह बात राजनीति की नहीं है परंतु यह एक बहुत बड़े क्षेत्र के अस्तित्व की लड़ाई भी है जो सूखे से बर्बाद हो रहा है। अत: दक्षिण हरियाणा के किसानों ने हरियाणा के उन नेताओं से एक अपील जारी की है कि वे
दिल्ली में बैठे पंजाब के किसानों का कृषि बिलों पर समर्थन करें इस पर
दक्षिणी हरियाणा के किसानों को कोई ऐतराज नहीं है। वह भी यह चाहते हैं कि कृषि कानून पर सभी तरह की शंकाएं दूर हो और किसान के हित में उनका उपयोग हो। परंतु उन्होंने विशेषकर हरियाणा के नेताओं व किसानों से यह आग्रह किया है कि कम से कम वे सिघु बॉर्डर पर जब इस आंदोलन को समर्थन देने के लिए
जाएं तो एसवाईएल नहर का कम से कम सार्वजनिक जिक्र तो करने की हिम्मत दिखाएं।
अन्यथा दक्षिण हरियाणा का किसान ऐसे नेताओं का राजनीतिक बहिष्कार करने के लिए मजबूर होगा।
किसानों ने कहा बड़े दुख की बात है कि हरियाणा के कुछ नेता जो अपने आप को राष्ट्रीय राजनीति के पुरोधा मानते हैं वे भी इस अवसर पर एसवाईएल को भूल रहे हैं। अब यह बात और अधिक स्पष्ट हुई है कि एसवाईएल और हांसी बुटाना के नाम पर दक्षिण हरियाणा के किसानों को ठगने वाले यह नेता केवल राजनीतिक नाटक कर रहे थे। दक्षिणी हरियाणा के किसानों ने यह आग्रह किया है कि पंजाब के किसानों के साथ बैठने
वाले हरियाणा के किसान और राजनीतिक नेता जब दिल्ली से वापस आएंगे तो दक्षिण हरियाणा के किसान उनसे यह बात जरूर पूछेंगे कि एसवाईएल के बारे में पंजाब
की सरकार और उनके किसानों से दिल्ली से वे क्या लेकर आएं ।