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बायल में रेवड़ी की तरह बांट दी पत्थर पिसाई यूनिटों को एनओसी

खातौली के बाद अब पत्थर पिसाई यूनिटों से प्रदूषण की मार झेल रहे ग्रामीणों के स्वास्थ्य को बचाने के लिए बायल में भी एक बुजुर्ग व्यक्ति ने पत्थर पिसाई यूनिटों के खिलाफ आवाज उठाई है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 27 Jan 2020 06:39 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jan 2020 06:15 AM (IST)
बायल में रेवड़ी की तरह बांट दी पत्थर पिसाई यूनिटों को एनओसी
बायल में रेवड़ी की तरह बांट दी पत्थर पिसाई यूनिटों को एनओसी

संवाद सहयोगी, नांगल चौधरी : खातौली के बाद अब पत्थर पिसाई यूनिटों से प्रदूषण की मार झेल रहे ग्रामीणों के स्वास्थ्य को बचाने के लिए बायल में भी एक बुजुर्ग व्यक्ति ने पत्थर पिसाई यूनिटों के खिलाफ एनजीटी में केस दायर किया है। इस पर अब एनजीटी कोर्ट के आदेश पर प्रदूषण विभाग को बायल में स्थापित सभी पत्थर पिसाई यूनिटों के स्थापित होने के पूरे मानकों व नियमों की जानकारी 11 फरवरी 2020 को एनजीटी में देनी होगी। एनजीटी कोर्ट द्वारा दायर केस पर सख्ती दिखाते हुए सभी पत्थर पिसाई यूनिटों की विस्तृत जानकारी मांगी है, जिससे नियम विरुद्ध पत्थर पिसाई यूनिट चलाने वाले कई संचालकों के लिए परेशानी बनी हुई है।

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गौरतलब है कि बायल अरावली का पत्थर ही पत्थर पिसाई यूनिटों के लिए उपयुक्त है। इससे यहां धीरे-धीरे करीब चालीस से अधिक पत्थर पिसाई यूनिट स्थापित हो गई। अरावली में खनन जोन पर प्रतिबंध है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि यहां अरावली पर अवैध खनन का सारा पत्थर पिसाई यूनिटों पर पीसा जा रहा है। जिससे अरावली का अस्तित्व भी खतरे में आ गया है। अरावली को सेफ जोन में रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2010 में इसका दायरा बढ़ाकर पौधारोपण क्षेत्र तक किया था, ताकि अरावली को अवैध खनन से बचाया जा सके। लेकिन बावजूद इसके बायल अरावली सुरक्षित नहीं बच पाई। पत्थर पिसाई यूनिटों की बढ़ती संख्या से यहां प्रदूषण में बेतहाशा वृद्धि हुई। लोगों को सांस लेने में घुटन होने लगी। बच्चे तक प्रदूषण के दंश से नहीं बच पा रहे। रिहायशी एरिया व आंगनबाड़ी स्वास्थ्य केंद्र के नजदीक भी पत्थर पिसाई यूनिटों को एनओसी देने पर इसका दुष्प्रभाव ओर अधिक बढ़ने लगा। इस पर प्रदूषित होते माहौल से ग्रामीणों को निजात दिलाने के लिए गांव के ही बुजुर्ग व्यक्ति बिशंभर दयाल ने अहम सबूत जुटाकर एनजीटी में केस दायर कर दिया। इससे पहले पंचायत भी प्रदूषण विभाग को कई बार पत्र भेजकर प्रदूषण नियंत्रण की मांग कर चुकी है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। बिशंभर दयाल ने बताया कि पत्थर पिसाई यूनिटों की बढ़ती संख्या व घरों के नजदीक भी यूनिट स्थापित होने से उन्होंने एनजीटी की शरण ली है।


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