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शौर्य गाथाः मातृभूमि की रक्षा करते हुई जान कुर्बान कर गए हनुमान सिंह

गांव में बलिदानी हनुमान सिंह कि याद में राजकीय माध्यमिक विद्यालय बना। ग्रामीणों ने बलिदानी हनुमान सिंह की याद में उनकी भव्य प्रतिमा बनाकर याद करते नहीं थकते। यहीं बलिदानी हनुमान सिंह की बड़ी प्रतिमा भी बनाई गई है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 11 Aug 2021 04:50 PM (IST)Updated: Wed, 11 Aug 2021 04:50 PM (IST)
शौर्य गाथाः मातृभूमि की रक्षा करते हुई जान कुर्बान कर गए हनुमान सिंह
शहीद हनुमान के माता पिता अपने पुत्र की फोटो के साथ ’ जागरण

कनीना (महेंद्रगढ़), जागरण संवाददाता। जब घायल हुआ हिमालय खतरे में पड़ी आजादी, जब तक थी सांस लड़े वो, फिर अपनी लाश बिछा दी। संगीन पे धर कर माथा सो गये अमर बलिदानी। ऐसे ही एक वीर बलिदानी थे जिला महेंद्रगढ़ के गांव कोटिया के हनुमान सिंह, जिसे आज भी उनका गांव याद करता है। जो सेना में प्रशिक्षण उपरांत घर लौटे तो जमकर स्वागत हुआ। इसी दौरान इनकी शादी हो गई। कारगिल में रणभेरी बजते ही परिवार छोड़कर कारगिल कूच कर गए।

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जुलाई 1999 में कारगिल की पहाड़ियों पर दुश्मन के छक्के छुड़ाने के लिए हनुमान सिंह को तैनात किया गया था। 25 जुलाई को दुश्मनों से लड़ रहे थे कि एक गोली सीने में लगी। फिर भी हजारों फीट की ऊंचाई पर छिपे दुश्मनों को मात देने के साथ मातृभूमि की रक्षा करते हुए यह वीर बलिदान हो गया। घर वापस लौट कर नहीं आया।

हनुमान के पिता उद्यमी राम भी आर्मी से सेवानिवृत हो चुके हैं, लेकिन गर्व से कहते हैं कि इस तरह की शहादत किसी किसी को मिलती है। माता पिता आज भी यह कहते हुए नहीं थकते कि उनका बेटा भले ही लौटकर नहीं आया, लेकिन देश के काम तो आया।

गांव में बलिदानी हनुमान सिंह कि याद में राजकीय माध्यमिक विद्यालय बना। ग्रामीणों ने बलिदानी हनुमान सिंह की याद में उनकी भव्य प्रतिमा बनाकर याद करते नहीं थकते। यहीं बलिदानी हनुमान सिंह की बड़ी प्रतिमा भी बनाई गई है। गांव के लोग कारगिल बलिदानी हनुमान सिंह के नाम पर पौधारोपण कार्यक्रम भी चलाते हैं। ग्रामीणों के दिलों में आज भी अमर बलिदानी हनुमान सिंह इस तरह से जिंदा हैं।

हनुमान सिंह का जन्म 26 मार्च 1978 को हुआ था। राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय करीरा में दसवीं की पढ़ाई पूरी की। हनुमान सिंह बचपन से ही चंचल स्वभाव के थे। खेल मैदान में सबसे आगे दौड़ने की हमेशा ललक रहती थी। त्योहारों पर लगने वाले मेलों के खेल कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। 1997 में कस्बे के अन्य लोगों के साथ बेंगलुरू में खुली भर्ती देखने के लिए गए थे। वहां के माहौल में देश की रक्षा के प्रति युवाओं का उत्साह देखकर रण क्षेत्र में कूदने का फैसला लिया और 24 जनवरी 1997 को उसका पांच पैरा रेजिमेंट सेंटर बेंगलुरू में चयन हो गया। फिर प्रशिक्षण पर चले गए। प्रशिक्षण के उपरांत घर आए तो 20 जनवरी 1999 को शादी हो गई। भाई बहन से सबसे छोटे होने के कारण हनुमान से मां का बहुत लगाव था। हनुमान भी कहता था कि जहां पर रहूंगा एक मां का आंचल सदा मेरे सिर पर रहेगा।


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