आंखों की रोशनी जाने के बाद भी शिक्षक छात्रों को दे रहा शिक्षा
जागरण संवाददाता नारनौल भारतीय संस्कृति में माता-पिता के साथ गुरु को भी विशिष्ट सम्मान प्राप्त
जागरण संवाददाता, नारनौल: भारतीय संस्कृति में माता-पिता के साथ गुरु को भी विशिष्ट सम्मान प्राप्त है। अध्यापक उस दीपक के समान होता है, जो स्वयं जलकर भी दूसरों का मार्ग प्रशस्त करता है। यह कहावत भी उन अध्यापकों पर सत्य रूप में चरितार्थ होती है जो अपने कर्तव्य का ईमानदारी से निर्वहन करते हैं। अगर इंसान ठान ले तो बड़ी से बड़ी परेशानी भी उसके सामने घुटने टेक देती है। ऐसा ही कुछ साबित कर दिखाया जिले के गांव बुढ़वाल निवासी शिक्षक पोकर मल ने। पोकर मल की 1995 में आखों की रोशनी अचानक से चली गई थी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और करीब 26 सालों से बच्चों को गणित विषय के सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों को शिक्षा दे रहे हैं। पोकर मल ने रोशनी जाने के बाद न केवल नये सिरे से अपनी जिदगी शुरू की, बल्कि अपने अनुभव से बच्चों के सपनों को भी पंख दे रहे हैं। वहीं सैकड़ों छात्र उनसे शिक्षा हासिल कर विभिन्न सरकारी विभागों में उच्च पदों पर रहकर सेवा दे रहे हैं। बाक्स :
26 साल पहले अचानक चली गई थी रोशनी :
पोकर मल की 26 साल पहले अचानक आंखों की रोशनी चली गई। पोकर मल दिल्ली जयपुर के अस्पतालों में उपचार लेने के लिए पहुंचा, लेकिन चिकित्सकों के काफी इलाज के बाद भी उनके सामने अंधेरा ही रहा। दरअसल, उनकी रेटिना की नस सूख जाने से दोबारा रोशनी वापिस नहीं लौट सकी। इसके बावजूद पोकर मल ने कभी हार नहीं मानी और अपने अनुभव से घर पर ही सभी कक्षाओं के छात्रों को शिक्षा देनी शुरू कर दी। आंखों की रोशनी नहीं होने पर भी आसपास के गांवों से सैकड़ों छात्र गणित की पढ़ाई करने के लिए उनके घर पहुंच रहे हैं।