बीते एक साल में जीने का बदल गया तरीका
एक साल पहले कोरोना ने दस्तक दी थी। जब चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। लोग घरों में बंद हो गए थे। विद्यार्थी घरों में बैठकर कैरम बोर्ड पर समय बिता रहे थे।
संवाद सहयोगी, कनीना: एक साल पहले कोरोना ने दस्तक दी थी। जब चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। लोग घरों में बंद हो गए थे। विद्यार्थी घरों में बैठकर कैरम बोर्ड पर समय बिता रहे थे। जिदंगी जीने का अंदाज एकाएक बदल गया। जगह-जगह शिविर लगाकर मजदूरों को खाना दिया जा रहा था, मास्क वितरित किए जा रहे थे। गांवों में सैनिटाइजर छिड़का जा रहा था। हालात किसी जंग से कम नहीं थे।
उन दिनों को लोग कभी नहीं भुला पाएंगे। दूसरे राज्यों से आए हुए मजदूरों पर बहुत बुरी बीती, जब खाने के लाले पड़ गए थे। उनके पास कमाई के साधन घट गए थे। ऐसे में मानवता की भावना बलवती हुई और जगह-जगह उनको राशन वितरित करने के लिए कैंप आयोजित किए गए। कोरोना से बचने के लिए मजदूरों के लिए आश्रय केंद्र स्थापित किए गए थे, जहां उनको खाना-दवा मिलती थी। सुबह शाम हाजिरी ली जाती थी।
पुलिस का पहरा नजर आता था। सभी मास्क से ढके मिलते थे। मजदूर बेचारे खाने के लिए पैदल ही कई-कई किलोमीटर जा रहे थे कितु समय बदला, कुछ राहत मिली। कोरोना के चलते मजदूर वापस चले गए, एक बार फिर से लावणी के लिए लौटे हैं। एक वर्ष पूरा हो गया। एक बार फिर से कोरोना ने दस्तक दे दी है। बहुत से लोग बिना मास्क के घूम रहे हैं। अगर रोग फिर बढ़ गया तो बड़ी समस्या बन सकती है। पढ़ने व परीक्षा का तरीका बदल गया है। विद्यार्थी आनलाइन पढ़ाई और परीक्षा दे रहे हैं।
उन दिनों को याद करके दिनेश कुमार, सुरेश कुमार, महेंद्र कुमार आदि ने कहा कि वह बहुत बुरा वक्त था। वास्तव में ऐसा बुरा वक्त फिर न आए, लोग प्रभु से प्रार्थना करते रहते हैं।