जल संरक्षण और आर्गेनिक खेती कर बने हैं किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत
यदि सरकार द्वारा चलाए कार्यक्रमों का व्यवस्थित ढंग से उपयोग किया जाए तो किसान भी प्रेरणा श्रोत बन सकते हैं।
होशियार सिंह, कनीना (नारनौल):
यदि सरकार द्वारा चलाए कार्यक्रमों का व्यवस्थित ढंग से उपयोग किया जाए तो न केवल आर्थिक स्थिति सुधर सकती है बल्कि पर्यावरण संरक्षण भी किया जा सकता है। महेंद्रगढ़ जिला के गांव मोड़ी निवासी किसान गजराज सिंह इसका उदाहरण हैं। इन्होंने कृषि, पशुपालन के साथ बागवानी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। गांव मोड़ी की ढाणी में करीब 14 एकड़ खेत में रबी और खरीफ की खेती के साथ घर में ही केंचुआ और कंपोस्ट खाद बनाने की प्रक्रिया से रसायनिक खाद से दूरी बनाए हुए हैं। बारिश और घरों से निकलने वाला दूषित पानी का सदुपयोग करने के साथ फसल विविधिकरण, आर्गेनिक खेती, पशुपालन करते हुए आत्मनिर्भरता का सशक्त संदेश दे रहे हैं। वैसे तो बहुत से किसान अपने अपने स्तर पर कई सराहनीय कार्य कर रहे हैं लेकिन परंपरागत खेती के साथ जल संरक्षण, आर्गेनिक खेती, बागवानी, पशुपालन आदि में उल्लेखनीय योगदान गजराज सिंह जैसे कुछ ही किसान कर पाते हैं। वे बरसाती और घरों से निकलने वाले दूषित पानी को सिचाई में प्रयोग करने के साथ रिचार्ज बोर के माध्यम से भूमिगत जल संरक्षण कर रहे हैं। गजराज सिंह कहते हैं कि कृषि विभाग की ओर से चार वर्ष पूर्व रेन वाटर स्टोरेज एवं उस जल से सिचाई करने तथा घरों से निकलने वाले दूषित जल का सदुपयोग करने की विधि बताई थी। इसी आधार पर उन्होंने ढाणी के करीब 15 घरों के सदस्यों के सहयोग से छतों का बारिश से बहने वाला जल दो कुंडों में एकत्रित करने के लिए नालियां बनाईं। ढाणी के लोगों ने आज अपनी छतों से बारिश का बहने वाला जल धरती तक पाइपों से लाकर दो कुंडों में छोड़ा हुआ है जो सिचाई के काम आता है। इसी प्रकार घरों का समस्त बेकार पानी नालियों द्वारा एक वाटर रिचार्ज बोर में गिरता है जिससे भूमिगत जल रिचार्ज हो रहा है। इस पहल से इस रिचार्ज बोर से करीब एक हजार लीटर जल प्रतिदिन भूमि में चला जाता है। सभी ढाणी के किसानों ने अपने घरों की छतों को साफ करवाया हुआ है। इसके चलते वर्षा का समस्त जल पाइपों से होकर कुंडों में चला जाता है जो या तो फसल सिचाई के काम आता है या फिर रिचार्ज बोर से जल संरक्षण का कारण बनता है। किसान गजराज सिंह वर्ष 1990 से लगातार खेती कर रहे हैं और कुछ नया करने के लिए उत्साहित रहते हैं।
खेती के साथ पशुधन को भी दे रहे बढ़ावा:
गजराज सिंह खेती के साथ पशुधन को बढ़ावा देने के लिए भी काम कर रहे हैं। घर में मुर्रा नस्ल की भैंस व साहीवाल नस्ल की गाय के दूध से वे करीब 70 हजार रुपये सालाना लाभ कमा रहे हैं। उन्होंने पशु पालन के कई लाभ बताए हैं। गोबर गैस प्लांट से निकले अवशेष का उपयोग केंचुआ खाद बनाने के साथ उत्तम खाद बना रहे हैं। इससे चरी, बरसीम, कासनी आदि हरे चारे के लिए अन्यत्र भटकना नहीं पड़ता। इतना ही नहीं अपने खेतों में दलहन, फूल आदि उगाकर आयस्त्रोत भी बढ़ा रहे हैं।
वे कहते हैं कि बागवानी से दो वर्षों के बाद अच्छी आय प्राप्त होगी वहीं पशुधन भी अच्छी आय के स्त्रोत बने हुए हैं। वे केवल कृषि विभाग से हर प्रकार की सलाह लेते हैं बल्कि किसानों के लिए आयोजित होने वाली हर प्रकार की गोष्ठियों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
जिला और राज्य पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं गजराज:
उनके इस कार्य को देखते हुए सरकार की ओर से जिला और राज्यस्तर पर दो बार पुरस्कार मिला हुआ है। आर्गेनिक खेती और जलसंरक्षण के क्षेत्र में किए कार्यों के लिए यह सम्मान मिला है।