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22 साल के संघर्ष की व्यथा बताते हुए भीगीं आस्था की पलकें

दहेज हत्या के एक मामले में 22 साल संघर्ष के बाद नारनौल जिला महेंद्रगढ़ में रहने वाले परिवार को न्याय मिला है। 16 नवंबर को जयपुर न्यायालय की पीठासीन अधिकारी न्यायाधीश रिद्धिमा शर्मा ने बड़ा फैसला सुनाते हुए दोषमुक्त घोषित किया है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 25 Nov 2021 10:47 PM (IST)Updated: Thu, 25 Nov 2021 10:47 PM (IST)
22 साल के संघर्ष की व्यथा बताते हुए भीगीं आस्था की पलकें
22 साल के संघर्ष की व्यथा बताते हुए भीगीं आस्था की पलकें

जागरण संवाददता, नारनौल: दहेज हत्या के एक मामले में 22 साल संघर्ष के बाद नारनौल जिला महेंद्रगढ़ में रहने वाले परिवार को न्याय मिला है। 16 नवंबर को जयपुर न्यायालय की पीठासीन अधिकारी न्यायाधीश रिद्धिमा शर्मा ने बड़ा फैसला सुनाते हुए दोषमुक्त घोषित किया है। साक्ष्यों से ये साबित हुआ कि उस समय विवाहिता डिप्रेशन से पीड़ित थी और इस वजह से उसने आत्महत्या की थी। संघर्ष कर रहे परिवार की बेटी आस्था राव ने स्टिंग कर छिपे तथ्यों और झूठे गवाहों को कोर्ट के समक्ष उजागर किया। बृहस्पतिवार को अमेरिका के न्यूयार्क से वर्चुअल माध्यम से पत्रकार वार्ता कर आस्था राव ने मामले की जानकारी और न्यायालय के आदेश की कापी मीडिया से साझा की। लंबे समय से चल रहा था डिप्रेशन का इलाज: आस्था राव ने बताया कि उनका परिवार नारनौल शहर की महेंद्रगढ़ रोड़ पर आफिसर्स कालोनी के ए-12 मकान में रह रहा था। 10 फरवरी, 1998 में उसके भाई योगेश की शादी नारनौल में आइटीआइ निवासी रेणुका से हुई थी। योगेश एमबीए करने के पश्चात जयपुर में केंद्र के एनएसएसओ विभाग में नौकरी के लगने की वजह से किराये के मकान में पत्नी रेणुका के साथ रहने लग गया। 16 जून, 1999 को रेणुका ने फंदा लगाकर सुसाइड कर लिया। उसके बाद पीहर पक्ष ने ससुराल पक्ष पर दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज करवा दिया।

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उन्होंने बताया कि उसकी भाभी का डिप्रेशन का इलाज शादी से पहले चल रहा था। इसकी वजह से उसने आत्महत्या कर ली थी। इस दौरान राजस्थान पुलिस के अधिकारियों की टीम दहेज व आत्महत्या के पहलुओं की जांच कर रही थी। पुलिस ने रेणुका के इलाज संबंधी दस्तावेज की जांच के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया। लंबी जांच के बाद अंत में पुख्ता सबूतों के कारण पुलिस ने हमारे खिलाफ चालान पेश करने की बजाय, एफआर (नकारात्मक रिपोर्ट) पेश कर दी।

इसके कुछ दिन बाद राजस्थान पुलिस कोर्ट का वारंट लेकर आस्था राव के पिता जोगेंद्र कुमार को गिरफ्तार कर अपने साथ जयपुर ले गई। असल में पता ही नहीं लगा कि उनके खिलाफ जयपुर सत्र न्यायालय में एक याचिका डाल दी गई थी। मृतका के पीहर पक्ष ने झूठे गवाह खड़े कर कोर्ट में चले गए। इस दौरान परिवार सदस्यों के बचाव के सभी रास्ते बंद हो गए और कन्फ्यूजन व निराशा जनक परिस्थिति बन गई। इस दौरान 304 बीआइपीसी में सात वर्ष के भीतर अप्राकृतिक मृत्यु को दहेज हत्या की अवधारणा को जोड़ दिया गया। अफसोस कलंक माथे पर लिए पिता दुनिया छोड़ गए: आस्था राव ने अफसोस जताते हुए कहा कि पुलिस ने उनके पिता जोगेंद्र को दहेज के लिए आत्महत्या करने पर मजबूर करने पर दस साल की सजा सुना दी। लेकिन जब वह चार साल बाद जमानत पर रिहा हुए तो सदमे को झेल नहीं पाए। 21 अप्रैल 2008 को जोगेंद्र यादव 60 की उम्र में दिल का दौरा पड़ने की वजह से मौत हो गई।

आस्था राव ने बताया कि मृतका के पीहर पक्ष ने झूठे चश्मदीद गवाह बनाकर कोर्ट में पेश किए। एक व्यक्ति दूधिया बनकर झूठी गवाही देने पहुंच गया। उसने ऐसे कहानी बनाई जिसके आधार पर कोर्ट ने दस साल के कठोर कारावास का फरमान सुना दिया गया। उस दौरान आस्था की मां विजय यादव कैंसर से पीड़ित थी। आस्था का भाई योगेश भी तनावग्रस्त हो चुका था। इस दौरान मृतका के घरवालों की तरफ से 50 लाख रुपये की मांग की गई। कोर्ट ने अपने फैसले में की टिप्पणी: 16 नवंबर को कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह अत्यंत हास्यास्पद है कि बिना किसी ठोस छानबीन या आधार के इस तरह के गवाह न्यायालय में अभियोजन पक्ष द्वारा लाए गए। कोर्ट ने एक अन्य झूठे गवाह के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा कि गवाह के बयानों को समग्रता से देखने से वह झूठे गवाह प्रकट हुआ है। प्रकरण में मृतका के माता-पिता के बयानों में तात्विक महत्वपूर्ण विरोधाभासी तथ्य सामने आये हैं। स्टिंग की डीवीडी से गवाही बदलने के बदले लेनदेन की बातें, मृतका के शादी से पूर्व अधूरे अफेयर की कहानी और उससे उपजे डिप्रेशन और सुसाइड के लिक को कोर्ट ने अब स्थापित माना है।


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