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स्थाण्वीश्वर मंदिर में पूजा के बिना कुरुक्षेत्र की यात्रा नहीं होती पूरी

स्थाण्वीश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह जिले के प्राचीन हनुमान मंदिरों में से एक है। मंदिर के सामने एक छोटा कुंड स्थित है। इसके बारे में पौराणिक संदर्भ अनुसार यह माना जाता है कि इसकी कुछ बूंदों से राजा बान का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 09:57 AM (IST)Updated: Fri, 21 Feb 2020 09:57 AM (IST)
स्थाण्वीश्वर मंदिर में पूजा के बिना  कुरुक्षेत्र की यात्रा नहीं होती पूरी
स्थाण्वीश्वर मंदिर में पूजा के बिना कुरुक्षेत्र की यात्रा नहीं होती पूरी

सतविद्र सिंह, कुरुक्षेत्र : स्थाण्वीश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह जिले के प्राचीन हनुमान मंदिरों में से एक है। मंदिर के सामने एक छोटा कुंड स्थित है। इसके बारे में पौराणिक संदर्भ अनुसार यह माना जाता है कि इसकी कुछ बूंदों से राजा बान का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था। कहते हैं कि भगवान शिव की शिवलिग के रूप में पहली बार पूजा इसी स्थान पर हुई थी। इसलिए कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की तीर्थ यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना पूरी नहीं मानी जाती है।

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स्थाणु शब्द का अर्थ होता है शिव का निवास। इसी शहर को सम्राट हर्षवर्धन के राज्य काल में राजधानी का गौरव मिला। इसका नाम बिगड़कर अपभ्रंश रूप में थानेसर हो गया। निष्काम भाव से स्थाणु मंदिर में प्रवेश करने वाला मनुष्य पातकों से विमुक्त होकर परम पद स्वर्ग को प्राप्त करता है।

स्थाण्वीश्वर मंदिर में पूजा करने

न से होते समस्त पाप नष्ट

स्थाण्वीश्वर महादेव मंदिर के महंत प्रभातपुरी का कहना है कि वामन पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी के साथ मुनि कैलाश पर्वत पर गए और भगवान शिव की स्तुति की। स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने कहा कि वे लोग दारू वन में जाएं वहां मेरे दिव्य विग्रह लिग स्थित है। जो भक्ति पूर्वक पूजा करने से अधर्म से अधर्म प्राणी का उद्धार करने वाला है। उसका दर्शन करो और वहां से ले जाकर स्थाणु तीर्थ में इसे स्थापित करो। उसी से लोगों की यचेच्छ कामनाओं को प्राप्त करोंगे। वहां स्थापित होने से वह लिग पृथ्वी पर स्थाणु नाम से देवताओं का पूजनीय होगा। उस लिग को सदा स्थाण्वीश्वर में स्थित रहने के कारण स्थाण्वीश्वर कहा जाएगा। जो लोग सदा स्थाण्वीश्वर का स्मरण करेगा वे समस्त पापों से मुक्त एवं शुद्ध देह हो कर मोक्ष गामी हो जाएंगे। तीर्थ के निकट ही स्थाणु नामक वट के स्पर्श करने से मुक्ति मिलती है।

मंदिर की छत पर प्राचीन कलाकृतियां

मंदिर की छत गुंबद के आकार की है एवं छत के सामने की तरफ का भाग एक लंबा अमला के आकर का है। मंदिर के अंदर छत पर आज भी प्राचीन कलाकृतियां विद्यमान हैं। इस मंदिर में भगवान शिव का शिवलिग अति प्राचीन शिव लिग है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत युद्ध आरंभ होने से पूर्व पांडवों और भगवान श्रीकृष्ण ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की तथा महाभारत का युद्ध विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था।

महाशिवरात्रि पर विशेष पर्व

स्थाण्वीश्वर महादेव मंदिर में सभी त्योहार मनाए जाते हैं, परंतु विशेषकर महाशिवरात्रि के त्योहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को फूलों एवं दीपों से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है। यह मंदिर थानेसर से तीन किलोमीटर दूर झांसा मार्ग पर स्थित है। यहां सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर भी आए थे। इस मंदिर के समीप ही उनकी याद में गुरुद्वारा नवीं पातशाही भी बना हुआ है।


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