सिविल अस्पताल में टीबी के 1392 मरीजों का चल रहा इलाज
टीबी की रोकथाम को लेकर स्वास्थ्य विभाग गंभीर है। गांवों में कैंप लगाकर निशुल्क जांच इलाज व अन्य सुविधाएं दी जा रही है। इन सबके बावजूद जिले में टीबी पर अंकुश लगाना संभव नहीं हो पा रहा है।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : टीबी की रोकथाम को लेकर स्वास्थ्य विभाग गंभीर है। गांवों में कैंप लगाकर निशुल्क जांच, इलाज व अन्य सुविधाएं दी जा रही है। इन सबके बावजूद जिले में टीबी पर अंकुश लगाना संभव नहीं हो पा रहा है। वर्ष 2019-2020 में सिविल अस्पताल में 1392 मरीजों इलाज चल रहा है। लेकिन दवाइयों का पूरा कोर्स नहीं लेने वालों को मल्टी ड्रग्स रेसिसटेंट (एमडीआर) टीबी, एक्सटेंसिवली ड्रग रजिस्टेंश (एक्सडीआर) टीबी होने के प्रबल आसार बन रहे हैं।
बता दें कि सुविधाजनक संसाधनों की डिमांड निरंतर बढ़ रही है, क्योंकि अधिकांश लोग पौष्टिक आहार नहीं खाते। जिस कारण शरीर में टीबी के बैक्टीरिया पैदा होने लगते है। शुरुआती दौर में सामान्य श्रेणी की टीबी होती है, जिसका इलाज 6 महीने लगातार दवाइयां खाने से हो जाता है। लेकिन थोड़ी राहत मिलते ही कई मरीज दवाई खाना बंद कर देते हैं। ऐसे में पीड़ित के फेफड़ों में टीबी के कैटेगरी-2 बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं। जिसका इलाज 8 महीने के कोर्स में संभव है। इस स्टेज पर लापरवाही बरतने वाले मरीजों को एमडीआर टीबी होने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे पीड़ित मरीजों के जीवित पीड़ित मरीज के जीवित बचने की संभावना 40 प्रतिशत रहती है। कम खाए फास्ट फूड
चिकित्सकों के मुताबिक युवाओं में फास्ट फूड व कुपोषण के चलते रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित हो रही है। जिससे शरीर में बैक्टीरिया तेजी से सक्रिय होते हैं और दवाइयां बे-असर साबित होने लगती हैं। एक बार बीमारी की चपेट में आने पर श्वेत रक्त कणिकाएं नुकसान की भरपाई नहीं करती, जिस कारण मरीज का स्वास्थ्य धीरे-धीरे कमजोर होने लगेगा। टीबी पीड़ितों को जीवन दान देने के लिए सरकार ने बोनाक्यूडिन टेबलेट उपलब्ध कराई है। इस एक टेबलेट की बाजार में करीब 6 हजार कीमत होती हैं, लेकिन सरकारी अस्पताल में मुफ्त मिलती है। तीन तरह से दी जा रही है प्रोत्साहन राशि
क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम की जिला नोडल अधिकारी एवं डिप्टी सिविल सर्जन डॉ. अनुपमा सैनी ने बताया कि टीबी के मरीजों के लिए सरकार ने पोषण आहार योजना शुरू की हुई है। इसमें पीड़ितों की 500 रुपए प्रतिमाह आर्थिक मदद दी जा रही है। यह राशि मरीज के बैंक अकाउंट में विभाग जमा कराता है। मरीज को विभाग तक ले जाने पर गांव में आशा वर्कर, आरएमपी डॉक्टर, निजी अस्पताल व अन्य कोई भी व्यक्ति अगर टीबी मरीज को लेकर स्वास्थ्य विभाग के पास लेकर आता है और टेस्ट करने पर मरीज टीबी से पीड़ित पाया जाता हैं तो उसे भी प्रोत्साहन राशि के रूप में 500 रुपए दिए जाते है। टीबी मरीज का 6 माह का कोर्स होता है। विभाग की गाइडलाइन..बचाव के लिए ये करें
- झोलाछाप डॉक्टरों से उपचार ना करवाएं।
- मरीज को मास्क पहनाएं व बलगम को मिट्टी में दबाएं।
- साफ वातावरण में रहें, पौष्टिक भोजन खाएं।
- दो सप्ताह खांसी रहने पर जांच करवाकर उपचार लें।
- आसपास सफाई रखें और डॉक्टर के निर्देशानुसार दवाई लें।