¨हदू संस्कृति में सरस्वती तीर्थ पर श्राद्धों का विशेष महत्व
सनातन धर्म में पुनर्जन्म को प्रत्यक्ष माना जाता है। मृत्यु और उसके बाद की जीव की स्थितियों के विषय में ऐसी धारणा है कि हर जीव मृत्यु के पश्चात या तो ब्रह्मालीन होकर पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्त हो जाता है या फिर भिन्न-भिन्न योनियों को कर्मानुसार प्राप्त करता है।
पिहोवा, संवाद सहयोगी : सनातन धर्म में पुनर्जन्म को प्रत्यक्ष माना जाता है। मृत्यु और उसके बाद की जीव की स्थितियों के विषय में ऐसी धारणा है कि हर जीव मृत्यु के पश्चात या तो ब्रह्मालीन होकर पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्त हो जाता है या फिर भिन्न-भिन्न योनियों को कर्मानुसार प्राप्त करता है। इन योनियों में कई बार उसकी तृप्ति नहीं हो पाती तथा वह भांति-भांति के पदार्थों के लिए भटकता रहता है। जिस भी परिवार से उनका संबंध होता है उन परिवारों के वे पितृ या पितर माने जाते हैं। उनकी मृत्यु के पश्चात परिवार की ओर से उनकी मुक्ति व मोक्ष के लिए सनातन विधि के अनुसार श्राद्ध, तर्पण, दान तथा कर्म कांड आदि करवाया जाता है। मृत आत्मा की तृप्ति व शांति के लिए श्राद्ध मनाया जाता है। श्राद्ध की मैहता की चर्चा मत्स्य पुराण, यम स्मृति, भविष्य पुराण, ब्रह्म पुराण, आदित्य पुराण, कर्म पुराण, गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण आदि में विस्तार से की गई है। सारांश यह है कि देश, काल तथा पात्र में श्रद्धा द्वारा जो भोजन व दान पितरों की तृप्ति के उद्देश्य से ब्राह्मणों को दिया जाए, उसे ही श्राद्ध कहा जाता है। भारतीय साधु समाज के प्रदेशाध्यक्ष महंत बंसी पुरी ने बताया कि वैसे तो श्राद्ध किसी भी स्थान पर श्रद्धा के अनुसार किया जा सकता है परंतु किसी तीर्थ विशेष पर श्राद्ध का फल अधिक पुण्यदायी व कल्याणकारी है। अश्रि्वन मास में प्रतिवर्ष कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक 15 श्राद्ध मनाए जाते हैं। श्राद्ध में श्रद्धा पूर्वक उत्तम भोजन व व्यंजन बनाकर पूर्णशुद्धि के साथ ब्राह्माण को खिलाया जाता है तथा वस्त्र, मुद्रा व फल आदि का तर्पण सहित दान किया जाता है। जैसे गया, पृथुदक (पिहोवा) तीर्थ व फल्गु आदि तीर्थ पर श्राद्ध करने से जहां पितरों की वर्षों तक तृप्ति होती है वही इसका पुण्य भी कई गुणा इसे करने वाले को प्राप्त होता है इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर व अन्य पांडवों ने महाभारत के भीषण युद्ध के पश्चात अपने सगे संबंधियों, जो युद्ध में मारे गए थे, के श्राद्ध व ¨पडदान पृथुदक तीर्थ में करवाए थे क्योंकि यह देवभूमि युग युगांतरों से मृत आत्माओं की सद्गति व शांति के लिए शास्त्रों व पुराणों में वर्णित रही है यहीं कारण है कि आज भी हजारों यात्री दूर-दूर से अपने पितरों की तृप्ति के लिए सरस्वती तीर्थ पर श्राद्ध करने आते हैं।