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80 की उम्र में भी प्रशिक्षुओं की आंख में देख लक्ष्य पर अचूक निशाना, स्व. राजीव गांधी भी ले चुके हैं प्रशिक्षण

जिस उम्र में लोगों के हाथ कांपने लगते हैं उस उम्र में भी डॉ. राजपाल सिंह प्रशिक्षु की आंख में टारगेट देखकर सटीक निशाना लगवा देते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 04 Jan 2020 10:41 AM (IST)Updated: Sun, 05 Jan 2020 09:13 AM (IST)
80 की उम्र में भी प्रशिक्षुओं की आंख में देख लक्ष्य पर अचूक निशाना, स्व. राजीव गांधी भी ले चुके हैं प्रशिक्षण
80 की उम्र में भी प्रशिक्षुओं की आंख में देख लक्ष्य पर अचूक निशाना, स्व. राजीव गांधी भी ले चुके हैं प्रशिक्षण

कुरुक्षेत्र [विनीश गौड़]। जिस उम्र में लोगों के हाथ कांपने लगते हैं, उस उम्र में भी डॉ. राजपाल सिंह प्रशिक्षु की आंख में टारगेट देखकर सटीक निशाना लगवा देते हैं। इनके शूटिंग के इस अंदाज को देश ही नहीं बल्कि विदेशों ने भी सलाम किया है। तभी तो नेपाल ने अपनी पुलिस और मॉरीशस ने अपनी आर्मी को निशाने में ट्रेंड करने के लिए इन्हें कोच बनाकर बुलाया। डॉ. राजपाल सिंह अपने देश के नौजवानों को देशभक्ति की घुट्टी पिलाने के लिए छोटे-छोटे गांवों में अपने खर्चे पर निशानेबाज तैयार कर रहे हैं। उनके इसी जज्बे को देश के उपराष्ट्रपति एम वैंकेया नायडू ने व्योश्रेष्ठ अवॉर्ड देकर सम्मानित किया है।

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डॉ. राजपाल अब तक 41 सीनियर व जूनियर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दे चुके हैं, जबकि मशहूर शूटर दादी चंद्रो तोमर व प्रकाशो तोमर, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी और पूर्व सांसद व उद्योगपति नवीन जिंदल ने भी इनसे प्रशिक्षण लिया है। डॉ. राजपाल अब निम्न तबके के बच्चों के सपनों को पंख लगाने का काम कर रहे हैं। डॉ. राजपाल ने बताया कि आज तक वे गीता के ही संदेश पर चले हैं। खेल सीखने के लिए उनके पास आने वाले खिलाड़ियों को वे यही मंत्र देते हैं। वे कहते हैं कि शूटिंग का खेल इसी मंत्र पर आधारित है। उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के गांवों में उन्होंने शूटिंग रेंज बनाई हैं, जिसमें मजदूरों के बच्चों को प्रशिक्षित किया जा रहा है।

ये डॉक्टर थोड़ा अलग किस्म के हैं

डॉ. राजपाल सिंह भी हैं तो डॉक्टर ही, लेकिन ये थोड़ा अलग किस्म के हैं। दिल्ली में एनसीडी के आयुष विभाग में तैनाती के दौरान डॉ. राजपाल सिंह क्लीनिक के बाहर डिब्बों पर निशाना लगाते थे। डॉ. राजपाल सिंह बताते हैं कि जब वे ओपीडी करते थे तो बीच में मरीज आते थे उन्हें दवा देने के बाद फिर से शूटिंग शुरू कर देते थे।

एक माह में की थी एशियन गेम्स की तैयारी

दिल्ली में सीएमओ के पद से सेवानिवृत्त डॉ. राजपाल बताते हैं कि एक माह में उन्होंने एशियन गेम्स की तैयारी की थी। 1986 में उन्होंने एशियन गेम्स में भाग लिया था।

अब शूटिंग में जाना जाने लगा बागपत

डॉ. राजपाल सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश का जिला बागपत एशिया में अपराध के मामले में सबसे आगे था। यहां की पीढ़ी छोटी सी उम्र में ही देसी कट्टा हाथ में ले लेती थी। उन्होंने गांवों में जाकर नई पीढ़ी को शूटिंग खेल की तरफ मोडऩे का प्रयास किया। अब यह जिला सबसे ज्यादा शूटिंग कोच देने वाला जिला बन गया। उनके पास से 50 से ज्यादा कोच निकले हें।

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