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रुक्मिणी और कृष्ण विवाहोत्सव का प्रसंग सुन झूमे श्रोता

केडीएस पिपल केयर की ओर से मां भगवती मां पीताबंरा देवी मंदिर शीला नगर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में शनिवार को कथा व्यास आर्यमन कौशिक महाराज ने श्रीकृष्ण-रुक्मणी विवाह प्रसंग सुनाया। भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणि के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 15 Jan 2022 05:19 PM (IST)Updated: Sat, 15 Jan 2022 11:36 PM (IST)
रुक्मिणी और कृष्ण विवाहोत्सव का प्रसंग सुन झूमे श्रोता
रुक्मिणी और कृष्ण विवाहोत्सव का प्रसंग सुन झूमे श्रोता

-पीताबंरा देवी मंदिर में भागवत कथा का किया आयोजन जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : केडीएस पिपल केयर की ओर से मां भगवती मां पीताबंरा देवी मंदिर शीला नगर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में शनिवार को कथा व्यास आर्यमन कौशिक महाराज ने श्रीकृष्ण-रुक्मणी विवाह प्रसंग सुनाया। भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणि के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया। रुक्मणि विवाह के आयोजन ने श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। कथा का शुभारंभ मुख्य यजमान सत्यनारायण शर्मा, सावित्री देवी, राजेश वत्स, उदयसागर, अभय शर्मा व देव शर्मा ने दीप प्रज्वलित कर किया।

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कथा व्यास आर्यमन कौशिक ने भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण-रुक्मणि के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं। उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। उन्होंने बताया कि रुक्मणि विदर्भ देश के राजा भीष्म की पुत्री और साक्षात लक्ष्मी जी का अवतार थी। रुक्मणि ने जब देवर्षि नारद के मुख से श्रीकृष्ण के रूप, सौंदर्य एवं गुणों की प्रशंसा सुनी तो उसने मन ही मन श्रीकृष्ण से विवाह करने का निश्चय किया।

कथा का समापन 17 को : राजेश

रुक्मणि का बड़ा भाई रुक्मी श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह चेदिनरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से कराना चाहता था। रुक्मणि को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने एक ब्राह्माण संदेशवाहक से श्रीकृष्ण के पास अपना परिणय संदेश भिजवाया। तब श्रीकृष्ण विदर्भ देश की नगरी कुंडीनपुर पहुंचे और वहां बारात लेकर आए शिशुपाल व उसके मित्र राजाओं शाल्व, जरासंध, दंतवक्त्र, विदु रथ और पौंडरक को युद्ध में परास्त करके रुक्मणि का उनकी इच्छा से हरण कर लाए। वे द्वारिकापुरी आ ही रहे थे कि उनका मार्ग रुक्मणी ने रोक लिया और कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। तब युद्ध में श्रीकृष्ण ने रुक्मणि को पराजित कर द्वारिकापुरी में प्रवेश किया। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने द्वारिका में अपने संबंधियों के समक्ष रुक्मणि से विवाह किया। कथा के अंत में पंडित राजेश वत्स ने बताया कि कथा के समापन पर 17 जनवरी को विद्यापीठ में हवन और भंडारे लगाया जाएगा।


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