रेडी टू राइट व्यवस्था को लेकर आढ़ती पशोपेश में
अनाज मंडी में गेहूं उठान में सरकार की रेडी टू राइट व्यवस्था को लेकर आढ़ती पशोपेश में हैं। आढ़तियों का कहना है कि इस व्यवस्था के चलते उठान मई के अंत तक भी नहीं निपट पाएगा।
संवाद सहयोगी, इस्माईलाबाद : अनाज मंडी में गेहूं उठान में सरकार की रेडी टू राइट व्यवस्था को लेकर आढ़ती पशोपेश में हैं। आढ़तियों का कहना है कि इस व्यवस्था के चलते उठान मई के अंत तक भी नहीं निपट पाएगा। ऐसे में उन्हें मंडी में लंबे समय तक गेहूं की पहरेदारी करनी पड़ेगी और अनाज की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी।
सरकार ने इस बार उठान में नई व्यवस्था लागू की है। इससे आढ़तियों को नजराना देने से निजात मिली है, मगर इससे कई समस्याएं पैदा होती जा रही हैं। आढ़ती संदीप कंसल और दिनेश गर्ग ने बताया कि जिस ढेरी की खरीद होती है तो उसी का उठान होता है। ऐसे में एक ट्रक को भरने के लिए कई-कई दुकानों तक चक्कर लगाना पड़ रहा है। कई बार दुकानों पर लेबर नहीं मिलती। ऐसे में ट्रक चालक लंबी बाट जोहते हैं। वहीं एक एक ढेरी उठने से किसी भी दुकानदार का नियमित कार्य नहीं चल पा रहा है। आढ़तियों का कहना है कि यह व्यवस्था धान के सीजन में कारगर साबित हो सकती है, जबकि गेहूं का सीजन महज 10-15 दिन का होता है। इसमें गेहूं एक साथ मंडी में पहुंचता है। इसमें प्रति दुकान से नियमित उठान होना चाहिए। अनाज मंडी आढ़ती एसोसिएशन के सचिव बलदेव शर्मा का कहना है कि गेहूं के सीजन के लिए इसका विकल्प खोजा जाना चाहिए ताकि उठान अधिक से अधिक हो। इससे गेहूं समय रहते सरकार के गोदामों तक पहुंच जाए। शर्मा ने कहा कि इसके लिए मंडी को टोकन सिस्टम से उठान की छूट दी जा सकती है। ऐसा करने से बीस दिन में ही उठान निपट जाएगा।
उठान अनुसार भुगतान भी लटकेगा
जिस किसान का गेहूं सरकार के गोदाम में पहुंचेगा। उसके खाते में 72 घंटे में भुगतान डाल दिया जाएगा। ऐसे भी किसान हैं जिनकी गेहूं मंडी में चार दिन से पड़ी है। इसकी अभी खरीद भी नहीं हुई। इसके बाद सुनिश्चित होगा कि उठान किस दिन होगा। इससे किसानों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि जिस रोज फसल आए उसी रोज खरीद होनी चाहिए। इसके आधार पर ही भुगताना होना चाहिए। ट्रक चालक बताते हैं कि नई व्यवस्था से किसी दुकान से 30, 35 तो किसी से 25 कट्टों का उठान किया जा रहा है। ट्रक भरने में आधा दिन निकल जाता है। इससे उनको एक दिन की मजदूरी भी नहीं बन पाती। कई दुकानों पर लेबर भी नहीं मिल पाती।