गीता के सामने पूरे विश्व के लोगों को झुक जाता है सिर : भ्राता बृज मोहन
ब्रह्माकुमारीज माऊंटआबू के अतिरिक्त महासचिव भ्राता बृज मोहन ने कहा कि भारत का सम्मान विश्व में गीता के कारण है। गीता के सामने पूरे विश्व के लोगों का सिर झुक जाता है। गीता के प्रथम अध्याय में लिखा है कि हम आत्मा है। जब भारत के लोग स्वयं को आत्मा मानते थे तब भारत स्वर्ग था। गीता की सबसे मुख्य बात योग-योग का आदि ग्रंथ है भगवत गीता।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : ब्रह्माकुमारीज माऊंटआबू के अतिरिक्त महासचिव भ्राता बृज मोहन ने कहा कि भारत का सम्मान विश्व में गीता के कारण है। गीता के सामने पूरे विश्व के लोगों का सिर झुक जाता है। गीता के प्रथम अध्याय में लिखा है कि हम आत्मा है। जब भारत के लोग स्वयं को आत्मा मानते थे, तब भारत स्वर्ग था। गीता की सबसे मुख्य बात योग-योग का आदि ग्रंथ है भगवत गीता। गीता में भगवान ने संकेत दिया है कि अपने पांच शत्रुओं (काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार)को पहचानों। इन्हीं से सारे विश्व में अपराध बढ़ रहा है। परिवर्तन भारत से होगा।
भ्राता बृज मोहन कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय सीनेट हाल में ब्रह्माकुमारीज की ओर से श्रीमद्भागवद गीता पर आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि गीता कर्मयोग का शास्त्र है। गीता से इस समाज में बदलाव लाया जा सकता है। हमारे पास गीता का ज्ञान होते हुए भी भारत पतित क्यों बना है, यह एक चितनीय विषय है। वशिष्ठ अतिथि के रूप में राजयोगिनी बीके ऊषा बहन ने कहा कि गीता इतनी गहरी है कि इसे कोई नाप नहीं सका। जब भी चितन करते हैं, तब कुछ न कुछ नया प्राप्त होता है। गीता के दूसरे अध्याय में भगवान ने बताया कि स्वधर्म यानि हमारा स्वधर्म क्या है। आत्मा का स्वधर्म है ही शांति। दर्शनशास्त्र विभाग के निदेशक प्रो. आरके देशवाल ने कहा कि गीता को हम पावन ग्रंथ कहते हैं। सेवा केंद्र प्रभारी राजयोगिनी बीके सरोज बहन ने आए हुए सभी अतिथियों व सहयोगियों का आभार जताया। गीता में वर्णित राजयोग के बारे में उन्होंने कहा कि जैसे यह आपका विश्वविद्यालय है, वैसे ही हमारा ईश्वरीय विश्वविद्यालय है, जहां पर राजयोग की शिक्षा दी जाती है। कार्यक्रम में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय पत्राचार पाठ्यक्रम की निदेशिका मंजुला चौधरी ने कहा कि गीता हमें क्या खाना चाहिए, क्या करना चाहिए बताती है, क्योंकि खाने का प्रभाव तन व मन पर पड़ता है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है। जैसा खाए अन्न, वैसा होगा मन। इस अवसर पर कुवि के प्रोफेसर, एनआइटी के प्रोफेसर, विद्यार्थी व विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधि मौजूद रहे।