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ऑनलाइन गेमिंग व एप पर लाइव रहने की खुमारी बन रही बीमारी, इन खतरों को पहचानें

माेबाइल एप पर लाइव रहने और ऑनलाइन गेमिंग की आदत लोगों को बीमारी दे रही है। इस खुमारी के कारण लोग मोबाइल एडिक्शन डिस्‍आर्डर के शिकार हो रहे हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 09 Jul 2019 01:32 PM (IST)Updated: Tue, 09 Jul 2019 01:45 PM (IST)
ऑनलाइन गेमिंग व एप पर लाइव रहने की खुमारी बन रही बीमारी, इन खतरों को पहचानें
ऑनलाइन गेमिंग व एप पर लाइव रहने की खुमारी बन रही बीमारी, इन खतरों को पहचानें

कुरुक्षेत्र, [विनीश गौड़]। मोबाइल एडिक्‍शन का दुष्‍परिणाम तो आपको पता होगा, लेकिन ऑनलाइन गेमिंग और एप पर लाइव रहने का चस्का कितना नुकसानदेह है यह जानकर होश उड़ जाएंगे। इंटरनेट की आदत हर उम्र के लोगों को एडिक्शन डिस्‍आर्डर में ले जा रहा है। दस साल के बच्चे से लेकर 35 से 40 वर्षीय लोग भी इससे बच नहीं पा रहे हैं। ऑनलाइन गेमिंग की लत बच्‍चों के लिए तो बेहद घातक है।

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यहां एलएनजेपी अस्पताल के मनोरोग विभाग में ऐसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं। ऑनलाइन गेम के आदी बच्‍चों में कई तरह की मानसिक समस्‍या सामने आ रही है। कई बच्‍चे इसके इतने आदी हो जाते हैं कि गेम छोड़ने के नाम पर ही आक्रामक होने लगते हैं। ऐसे मामले एलएनजेपी अस्पताल में भी आए हैं। इसके अलावा एप पर लंबे समय तक लाइव रहने की वजह से एक व्यक्ति के साइकोसिस हो जाने का मामला भी सामने आया है। इसमें मरीज वास्तविकता से बिल्कुल दूर हो गया।

दस साल के बच्चे से लेकर 35 से 40 वर्षीय लोग भी इससे बच नहीं पा रहे

इंटरनेट पर ऑनलाइन गेमिंग और एप पर लाइव रहने की खुमारी एक नशे में बदल रही है। मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सुरेंद्र मंढाण के मुताबिक यह सिर्फ चुनिंदा जागरूक लोग हैं जो समय रहते अस्पताल तक पहुंच जाते हैं। ज्यादातर को इस बात की भनक ही नहीं लग पाती कि जिस गेम या एप को वे चला रहे हैं उसके लिए उनकी दीवानगी उन्हें रोगी बना चुकी है। खासकर बच्चे या किशोर इसमें ज्यादा उलझ जाते हैं। उनमें सोचने समझने की शक्ति कम होने की वजह से वे जानलेवा गेम व आनलाइन एप के नशे की चपेट में आकर अपने आपको नुकसान तक पहुंचा सकते हैं। इसलिए अभिभावक बच्चों का ध्यान रखें। 

पबजी गेम खेलने वालों को ले जाती है आभासी दुनिया में

इंटरनेट पर चलने वाली ऑनलाइन पबजी गेम दुनियाभर के कई लोगों के साथ खेला जाता है और सबके टाइम जोन अलग-अलग होते हैं। भारत में इस गेम को खेलने वाले ज्यादातर लोग रात में 11 से तीन बजे तक जागकर खेलते हैं। इस वजह से उन्हें सिर्फ नींद ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य से जुड़ी दूसरी कई समस्याएं भी घेरने लगती हैं।

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इस गेम में लगभग 100 खिलाड़ी किसी टापू या अनजान युद्ध भूमि पर पैराशूट से छलांग लगाते हैं और हथियार खोजते हैं। खेलते-खेलते बच्चे इसमें इतना खो जाते हैं कि खुद को इसी दुनिया में महसूस करने लगते हैं। इसमें अन्य लोगों से जुडऩे के लिए चैट ऑप्शन भी है, जिससे वह खेलने वाले को एक आभासी दुनिया में ले जाता है। इस गेम में हिंसा इतनी ज्यादा है कि लगातार गेम खेलने वाले का व्यवहार बदलने लगता है।

केस एक :

मार्च माह में 19 साल के लड़के को उसके अभिभावक अस्पताल लेकर आए थे। जिन्होंने बताया कि उनका बेटा रात को करीब 11 बजे के बाद मोबाइल में गेम खेलना शुरू करता था ताकि वह इंटरनेशनल प्लेयर्स के साथ गेम को खेल सके। एलएनजेपी अस्पताल के मनोरोग विभाग के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सुरेंद्र मंढाण ने बताया कि इस वजह से उसका स्लीपिंग पैटर्न बदल गया। वह दोपहर में करीब 11 बजे उठता और फिर करीब आठ घंटे तक लगातार गेम ही खेलता रहता। इस कारण वह कॉलेज में भी अनुपस्थित रहने लगा और पढ़ाई में उसके नंबर गिरने लगे। माता-पिता उसे गेम छोडऩे को कहते तो वह काफी आक्रोशित हो जाता। अभिभावक अपने बेटे को उनके पास लेकर आए तब उसका व्यवहार काफी आक्रामक दिखा। 

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केस दो:

हाल ही में दो दिन पहले एक व्यक्ति को एलएनजेपी अस्पताल मनोरोग विभाग में लाया गया। व्यक्ति कई महीनों से ऑनलाइन रहने वाली ऐप का प्रयोग कर रह था। वह इतना आदी हो गया कि उसे ऐसा प्रतीत होने लगा कि वह काफी प्रसिद्ध हो गया कि उसे दूसरे लोग मारने के लिए सोच रहे हैं। वह उस ऐप में इतना खो गया कि वास्तविकता से परे हो गया। मरीज उसी में डूब गया।

डॉ. सुरेंद्र मंढाण ने बताया कि मरीज इतना ज्यादा साइकोसिस हो चुका था कि उसे बाहर लाने के लिए काउंसिलिंग के साथ-साथ दवाएं भी देनी पड़ी। उन्होंने कहा कि इंटरनेट एडिक्शन डिस्आर्डर बढ़ रहा है। किसी भी उम्र के लोग इंटरनेट का प्रयोग एक सीमित समय के लिए करें।

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