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चार दशकों में 28.45 मीटर नीचे चला गया भूजल स्तर

पिछले वर्षों में लगातार बढ़ रही जनसंख्या और विकास के नाम पर भूजल स्तर का दोहन भविष्य में बड़ी समस्या पैदा कर रहा है। इसका बड़ा कारण लगातार बढ़ता शहरीकरण और पानी की बर्बादी से लेकर धान की फसल की पानी की खपत तीनों हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 01 Jun 2019 09:00 AM (IST)Updated: Sat, 01 Jun 2019 09:00 AM (IST)
चार दशकों में 28.45 मीटर नीचे चला गया भूजल स्तर
चार दशकों में 28.45 मीटर नीचे चला गया भूजल स्तर

सतीश चौहान, कुरुक्षेत्र : पिछले वर्षों में लगातार बढ़ रही जनसंख्या और विकास के नाम पर भूजल स्तर का दोहन भविष्य में बड़ी समस्या पैदा कर रहा है। इसका बड़ा कारण लगातार बढ़ता शहरीकरण और पानी की बर्बादी से लेकर धान की फसल की पानी की खपत तीनों हैं। इसका असर देश में हरित क्रांति के बाद से दिखना शुरू हो गया था। हरित क्रांति का सबसे ज्यादा असर भी हरियाणा में ही दिखा जहां पर अधिकतर खेती सीधे तौर पर भूजल स्तर पर टिकी है और नहरी पानी नाममात्र का ही है। खास बात ये है कि उत्तरी हरियाणा जिसे धान का कटोरा कहा जाता है वहां पर 80 प्रतिशत खेती का कार्य भू जल से ही होता है। इसके चलते पिछले चार दशकों में भूजल स्तर 28.45 मीटर तक नीचे चला गया है। हालात ये हैं कि कुरुक्षेत्र के दो ब्लाक लाडवा और शाहाबाद डार्क जोन में पहुंच गए हैं और दो ब्लाक मुहाने पर खड़े हैं। बाक्स

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फोटो संख्या- 9

1974 से 2018 तक 28 मीटर तक गिरा भूजल स्तर जिला भूजल कोष अधिकारी डॉ. महाबीर सिंह ने बताया कि 1974 में कुरुक्षेत्र का भूजल स्तर 10.55 मीटर था। जो जून 2008 में 28.66 पर पहुंच गया था। वहीं अगले एक दशक में यानि जून 2018 में भूजल स्तर कुरुक्षेत्र में 39.11 मीटर तक पहुंच गया। बाक्स

फोटो संख्या- 10

शहरीकरण के कारण भू-जल का दोहन कुवि के भूगोल विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एमएस जागलान का कहना है कि लगातार बढ़ रहे शहरीकरण के कारण भी सीधे भूजल पर असर हो रहा है। शहर में एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों की संख्या में ट्यूबवेल हैं। जो 12 घंटे तक लगातार चलते हैं। हम लोग एक बार बाथरूम जाने पर फ्लश चलाकर सात लीटर पानी बर्बाद कर देते हैं। जबकि इससे कहीं ज्यादा पानी को गंदा कर गंदे नाले में बहा रहे हैं। हर शहर से नहर की तरह पानी बाहर निकलता है। जिसे गंदा नाला कहा जाता है। जिले में पीने के पानी के लिए लगभग 366 सबमर्सीबल चलते हैं। जो लाखों क्यूसिक पानी का दोहन करते हैं। एक किलो चावल तैयार होने में खर्च हो रहा दो हजार लीटर पानी

करनाल, कैथल और कुरुक्षेत्र को धान का कटोरा कहा जाता है। एक किलो चावल तैयार होने में दो हजार लीटर पानी की खपत होती है। यही कारण है कि यहां पानी पाताल में जा रहा है। तेजी से गिरता भूजल स्तर भविष्य की चिता की ओर इशारा कर रहा है। कुरुक्षेत्र के शाहाबाद और लाडवा डार्क जोन में हैं। शाहाबाद में भूजल स्तर 41.18 मीटर तक पहुंच गया। बाक्स

इन उपायों से बचाया जा सकता है 1. लवण सहनशील फसलें गेहूं, बाजरा, जौ, पालक, सरसों आदि का अधिक उपयोग करें।

2. सिचाई करते समय फव्वारा एवं बूंद-बूंद सिचाई प्रणाली को अपनाएं।

3. जल निकास की समुचित व्यवस्था रखें एवं हरी खाद का अधिक प्रयोग करें ।

4. वर्षा के समय खेत में मेड़बंदी कर वर्षा के पानी को एकत्रित करें, जिससे लवण धुलकर बाहर आ जाएंगे।

5. सिचाई की संख्या बढ़ाएं तथा प्रति सिचाई कम मात्रा में जल का प्रयोग करें।

6. यदि पीने योग्य पानी की अच्छी सुविधा उपलब्ध है, तो लवणीय जल तथा मीठे जल दोनों को मिलाकर भी सिचाई की जा सकती है।

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