डेस्क टूटे, टाट पट्टी पर ठंड में बैठ कैसे पढ़ें नौनिहाल
प्रदेश सरकार सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के बराबर लाने का दावा करते नहीं थकती, लेकिन सरकारी स्कूलों को मौजूदा स्थिति बद से बदतर हो रही है। आलम ये है कि सरकारी स्कूलों में दावों के विपरीत सुविधाओं में शून्य हैं। करीब एक दशक पूर्व स्कूलों में दिए डेस्क आज कबाड़ हो चुके हैं और ठंड में नौनिहालों को जमीन पर बैठने पर मजबूर होना पड़ रहा है। कई स्कूलों में तो स्थिति यह है कि टाट पट्टी के लिए भी बच्चों को इंतजार करना पड़ता है।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : प्रदेश सरकार सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के बराबर लाने का दावा करते नहीं थकती, लेकिन सरकारी स्कूलों को मौजूदा स्थिति बद से बदतर हो रही है। आलम ये है कि सरकारी स्कूलों में दावों के विपरीत सुविधाओं में शून्य हैं। करीब एक दशक पूर्व स्कूलों में दिए डेस्क आज कबाड़ हो चुके हैं और ठंड में नौनिहालों को जमीन पर बैठने पर मजबूर होना पड़ रहा है। कई स्कूलों में तो स्थिति यह है कि टाट पट्टी के लिए भी बच्चों को इंतजार करना पड़ता है।
प्रदेश सरकार की ओर से वर्ष 2005 में शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए कई बदलाव किए थे। उनमें निजी स्कूलों को टक्कर देने के लिए स्कूलों में डेस्क की व्यवस्था भी गई थी। इन स्कूलों में उस समय के बच्चों की संख्या में आधार पर डेस्कों का प्रबंध किया गया था। उस समय शिक्षा विभाग की ओर से अपनी पीठ भी खूब थपथपाई थी, लेकिन योजना के 10 वर्षो के बाद शिक्षा विभाग ने कभी डेस्क की सुध नहीं ली।
कार्ड बोर्ड के थे डेस्क जो टूट गए
शिक्षा विभाग की ओर से सरकारी स्कूलों में भेजे गए डेस्क कार्ड बोर्ड के बने थे, जो कुछ साल तो दिखने में अच्छे लगे, लेकिन उनकी उम्र ज्यादा नहीं निकली और वे कुछ ही वर्षो में टूटते चले गए। उनमें कहीं पर भी लकड़ी का प्रयोग न होने से लगभग एक दशक में सभी डेस्क टूट गए और स्कूल वहीं खड़े हो गए जहां एक दशक पूर्व थे। दया पर निर्भर है टाट पटट्ी भी
शिक्षकों का कहना है कि विभाग की ओर से डेस्कों को दोबारा ठीक कराने तक की जहमत नहीं उठाई गई। आलम यह है कि स्कूलों में कोई फंड टाट पट्टी खरीदने के लिए नहीं है। शिक्षक अपने स्तर पर पंचायतों को टाट पट्टी के लिए कहते हैं। जो सरपंच की दया पर निर्भर है कि वह मुहैया कराए या नहीं। कई बार स्कूलों के शिक्षक अपने स्तर पर भी टाट खरीद लेते हैं। जिले में सरकारी स्कूलों की बात करें तो लगभग प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च और वरिष्ठ माध्यमिक कुल 850 स्कूल हैं। उनमें लगभग 83 हजार विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते हैं। इन सभी के पास कोई डेस्क नहीं है। इक्का-दुक्का स्कूलों में पुराने डेस्क मौजूद हैं, वे बड़ी कक्षाओं को दिए गए हैं। हर वर्ष मांगी जाती है डिमांड
राजकीय अध्यापक संघ के जिला महासचिव पवन मित्तल ने बताया कि विभाग की ओर से स्कूलों से डेस्क के लिए डिमांड हर वर्ष मांगी जाती है, लेकिन डेस्क शायद ही कभी आए हों। पिछले वर्ष केवल पहली कक्षाओं के बच्चों के लिए बटर फ्लाई चेयर जरूर आई थी। वे भी कई स्कूलों में पूरी नहीं हैं। कई बार भेज चुके हैं पत्र : जिला शिक्षा अधिकारी
जिला शिक्षा अधिकारी अरुण आश्री ने बताया कि शिक्षा विभाग की ओर से कई बार डिमांड मांगी जा चुकी है वे हर बार भेज भी देते हैं। इसके अलावा भी कई बार पत्र व्यवहार कर चुके हैं। जैसे ही आदेश आएंगे डेस्क भेज दिए जाएंगे।