मजबूरी मे बच्चे कर रहे हैं बाल मजदूरी, बाल दिवस का नहीं ज्ञान
बाल मजदूरी रोकने के लिए लाख दावे करने के बावजूद प्रशासन की नाक तले सरेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। शिक्षा ग्रहण करने की उम्र में बच्चों को मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसे में प्रशासनिक अधिकारी बाल श्रम के बारे में सब कुछ जानने के बावजूद मुकदर्शक बने हैं प्रदेश सरकार भी जहां बच्चों को शिक्षा मुहैया करवाने के लिए अनेक योजनाएं चला रही हैं इसके बावजूद बहुत से बच्चे शिक्षा ग्रहण ना करके बाल श्रम करने को मजबूर हैं।
संवाद सूत्र, बाबैन : बाल मजदूरी रोकने के लिए लाख दावे करने के बावजूद प्रशासन की नाक तले सरेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। शिक्षा ग्रहण करने की उम्र में बच्चों को मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसे में प्रशासनिक अधिकारी बाल श्रम के बारे में सब कुछ जानने के बावजूद मुकदर्शक बने हैं, प्रदेश सरकार भी जहां बच्चों को शिक्षा मुहैया करवाने के लिए अनेक योजनाएं चला रही हैं, इसके बावजूद बहुत से बच्चे शिक्षा ग्रहण ना करके बाल श्रम करने को मजबूर हैं। यह अकेले बाबैन क्षेत्र की की बात नहीं हैं बल्कि बड़े व छोटे शहरों में भी मासूम बच्चों को उनके बिगड़े हालातों के कारण बाल श्रम करने को मजबूर होना पड़ रहा है। इससे बाल मजदूरी को रोकने के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। क्षेत्र में कई दुकानों पर मासूम बच्चे मजदूरी करके अपने पेट की आग को बुझा रहे हैं। इन मासूमों का कहना है कि उन्हें अपना व परिवार का पालन-पोषण करने के लिए दुकानों पर मजदूरी का कार्य करना पड़ता है तथा कुछ को कूड़े के ढेरों से टूटा-फूटा सामान बेचकर आजीविका कमानी पड़ती है। इस उम्र में जहां इन मासूमों को स्कूल जाना चाहिए था, वहीं उन्हें पूरा दिन मजदूरी करनी पड़ती है। बाबैन में चौक पर अक्सर बच्चों को भीख मांगते देखे जा सकते है।
क्या कहते हैं समाजसेवी
दीया संस्था के अध्यक्ष डा. दीपक कुमार का कहना है कि बाल मजदूरी रोकने के लिए समाज का जागरूक होना जरूरी है और सामाजिक संस्थाओं को भी बाल श्रम रोकने के लिए अभियान चलाना चाहिए ताकि बाल श्रम कर रहे बच्चों को मुक्ति मिल सके।