कैंसर का इलाज हुआ आसान, अब दुष्प्रभाव से होगा बचाव व नहीं खत्म होंगे शरीर के नॉर्मल सेल
एक नए शोध से कैंसर का इलाज अब आसान हो जाएगा। मरीज कैंसर के इलाज के दुष्प्रभाव से बच सकेंगे और शरीर के नार्मल सेल भी नहीं खत्म होंगे।
कुरुक्षेत्र, [पंकज आत्रेय]। कैंसर की बढ़ती समस्या ने मेडिकल साइंस के समक्ष चुनौती खड़ी कर दी है। सबसे बड़ी चिंता इसके इलाज के दौरान शरीर पर पडऩे वाला दुष्प्रभाव है। मगर, वैज्ञानिक इसका समाधान ढूढऩे में जुटे हुए हैैं। डीएनए के जरिये कैंसर के इलाज पर शोध चल रहा है। इससे कैंसर का इलाज आसान होगा और शरीर पर दुष्प्रभाव से बचाव होगा। हसके साथ ही कैंसर के इलाज के कारण शरीर के नार्मल सेल भी खत्म नहीं होंगे।
सीएसआइआर-एनआइएसटीएडीएस की नवनियुक्त निदेशक डॉ. रंजना अग्रवाल कर रहीं शोध
इस पर वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं विकास अध्ययन संस्थान (सीएसआइआर-एनआइएसटीएडीएस) की नवनियुक्त निदेशक व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के रसायन विभाग की प्रोफेसर डॉ. रंजना अग्रवाल शोध कर रही हैं। वह शोध के प्रारंभिक नतीजों से उत्साहित हैं।
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डॉ. रंजना ने जागरण से बातचीत में बताया कि वह डीएनए का प्रयोग करके ही सिर्फ कैंसर सेल्स को खत्म करने की तकनीक पर काम रही हैं। फोटोडायइनेमिक थ्योरी पर काम करते हुए डीएनए से कंपाउंड बनाकर उनके जरिये यह संभव हो सकता है। डीएनए से निर्मित यौगिकों को कैंसर सेल्स के पास शरीर में प्रवेश कराया जाएगा और जब उन पर पराबैगनी विकिरण डाली जाएंगी तो सिर्फ कैंसर के ही सेल खत्म होंगे।
बोलीं- पराली जलाने और खाद्य प्रदूषण की वजह से हरियाणा में बढ़ा कैंसर
उन्होंने बताया कि कैंसर के इलाज के दौरान शरीर पर जो असर पड़ता है, वह इस बीमारी से भी ज्यादा हानिकारक हो जाता है। मसलन, कीमोथेरेपी के बाद बाल झड़ जाना, हृदय और किडनी पर असर पडऩा और शरीर के नॉर्मल सेल का इलाज के दौरान खत्म हो जाना। डीएनए से वह एक ऐसी तकनीक इजाद कर रही हैं, जिससे सिर्फ कैंसर के सेल्स ही खत्म हों। ऐसा भी नहीं है कि इसमें मानव शरीर का ही डीएनए इस्तेमाल होगा। व्हेल और गाय के बछड़े के डीएनए कंपाउंट बनाए जा सकते हैं।
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हरियाणा में देश का 30 फीसद कैंसर
डॉ. रंजना ने बताया कि देश भर में कैंसर के जितने केस आ रहे हैं, उसका 30 फीसद सिर्फ हरियाणा में हैै। इतने बड़े स्तर पर कैंसर का बढऩा चिंता का विषय है। इसलिए जरूरी है कि इलाज की ऐसी विधि खोजी जाए जिसमें शरीर के साथ-साथ प्रकृति का भी नुकसान न हो। ग्रीन सिंथेसिस तकनीक पर वह डीएनए के जरिये कैंसर का इलाज तलाश रही हैं। सस्ता इलाज हो, इसके लिए अक्षय ऊर्जा से यह प्रयोग करने की कवायद है। उन्होंने बताया कि भूमिगत जल, तेजी से बढ़ता औद्योगिकरण, खाद्य प्रदूषण, पेस्टीसाइड और पराली जलाने के कारण हमारे यहां कैंसर की समस्या ज्यादा बढ़ी है।
यह भी उपलब्धि
डॉ. रंजना अग्रवाल को हरियाणा राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद द्वारा डीएनए के माध्यम से कैंसर के इलाज के नए उपाय विकसित करने के लिए 20 लाख रुपये का शोध अनुदान प्रदान किया गया है। उनके शोध योगदान को विशेष रूप से कॉमनवेल्थ फेलोशिप (2003-2004), इंडियन केमिकल सोसाइटी द्वारा डॉ. बासुदेव बनर्जी मेमोरियल अवार्ड (2014) और भारतीय विज्ञान कांग्रेस द्वारा प्रो. एसएस कटियार एंडॉमेंट अवार्ड (2015) के रूप में मान्यता मिल चुकी है।
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