स्वच्छता की जिद ने इन महिलाओं को देशभर में दिलाई पहचान, एेसे चलाया अभियान...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान की झंडाबरदार बनीं 12 महिलाओं को स्वच्छ शक्ति 2019 अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
जेएनएन, कुरुक्षेत्र। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान की झंडाबरदार बनीं 12 महिलाओं को स्वच्छ शक्ति 2019 अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में देश के कोने-कोने से 15 हजार महिलाएं पहुंचीं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी मातृ शक्ति की बदौलत आज देश ने स्वच्छता के क्षेत्र में नई पहचान बनाई है।
उन्होंने कहा कि ऐसा इस धरती पर कहीं नहीं हुआ होगा जब केवल एक महीने में ही देशभर में करीब एक करोड़ 34 लाख शौचालयों को पेंङ्क्षटग से सजा दिया गया हो। यह महिलाओं के दम पर ही संभव हो सका। उन्होंने महिलाओं से स्वच्छता अभियान में तेजी लाते हुए विश्व स्तर पर पहचान दिलाने का आह्वान किया। सम्मान पाने वाली महिलाओं ने दैनिक जागरण से अपने अनुभव साझा किए।
तीन महीने में बनवाए 190 शौचालय
पंजाब के मोहाली के चंडियाल गांव की रीटा रानी ने कहा कि जब शौचालय बनाने शुरू किए थे तो ग्रामीण मजाक उड़ा रहे थे। अभियान की सफलता के लिए उन्होंने अन्य महिलाओं को भी साथ लिया। पहले तीन महीने में ही गांव में 190 शौचालय तैयार करा दिए। जब महिलाओं ने इन शौचालयों का इस्तेमाल करना शुरू किया तो उन्हें सुविधा और शर्म से भी निजात मिली। अब गांव के हर घर में सुंदर शौचालय हैं। उनके गांव में जब यह काम हुआ तो आस-पास के लोग भी देखने पहुंचे। इस अभियान को अपनाया। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से सम्मानित होने पर गौरवान्वित महसूस कर रही हूं।
पुष्पा ने पुष्प की तरह खिला दिया गांव
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर की पुष्पा देवी बारहवीं पास हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री की ओर से स्वच्छता अभियान के शुभारंभ करते ही गांव में इसकी कमान संभाल ली थी। नतीजा यह रहा कि पूरे गांव को पुष्प की तरह खिला दिया। उनकी मेहनत का परिणाम है कि उसका गांव साफ-सफाई में अव्वल है। जब पूरा गांव स्वच्छता के लिए जागरूक हो गया तो उनकी राह और आसान हो गई। इसके बाद गांव में हर घर में शौचालय बनाए जाने की चुनौती को स्वीकार किया। केंद्रीय जल एवं स्वच्छता मंत्रालय की ओर से स्वच्छ सुंदर शौचालय अभियान की शुरुआत की गई तो लोगों ने आगे आकर अपने शौचालयों को पेंङ्क्षटग से रंग दिया। अब यही शौचालय घर का सबसे सुंदर हिस्सा हैं।
इनसे मिलिये, ये हैं स्वच्छता की 'लक्ष्मीबाई'
मध्यप्रदेश के खंड विकास के छानवे गांव की सरपंच लक्ष्मी बाई जाट कभी स्कूल नहीं गई। जब गांव की कमान संभाली तो राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला दी। देशभर से आईं महिलाओं के सामने अवॉर्ड पाकर लक्ष्मी बाई गदगद हैं। उन्होंने कहा कि सपने में भी नहीं सोचा था, इस कार्य के लिए उन्हें प्रधानमंत्री से अवॉर्ड मिलेगा। उन्होंने यह काम प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान शुरू करने पर महिलाओं को शर्म से बचाने के लिए शुरू किया था। अब उनके गांव में हर घर में शौचालय है। अब इन शौचालयों को पेंङ्क्षटग से सजाया गया है। उन्होंने बताया कि गांव के सार्वजनिक स्थलों को भी पेंङ्क्षटग से सजाया गया है।
रेखा ने लिखी स्वच्छता की इबारत
हरियाणा के पंचकूला जिले के धारवा गांव की सरपंच रेखा रानी ने भी गांव में स्वच्छता की नई इबारत लिख दी है। 1080 आबादी वाले गांव में 190 शौचालय हैं। सभी शौचालयों को पें'fx से सजाया गया है। गांव में सार्वजनिक शौचालय भी हमेशा साफ रहते हैं। स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए पहुंची टीम को पूरे गांव में गंदगी का नामोनिशान नहीं मिलता। रेखा रानी की उपलब्धि पर आज उनका गांव और जिला ही नहीं पूरा हरियाणा नाज करता है। उन्होंने कहा कि अब महिलाओं के लिए शौचालय उनके इज्जत घर बन गए हैं। इन्हीं शौचालयों ने महिलाओं की इज्जत बढ़ाई है।
अभियान से बदल गई गांव की रंगत : राधिका
तमिलनाडु के गांव इरुंबेड की सरपंच एस राधिका ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान ने उनके गांव की रंगत ही बदल दी है। उनके गांव के सभी 2004 घरों में शौचालय बने हुए हैं। अब इन शौचालयों पर सुंदर पेंङ्क्षटग बनी हुई है। प्रधानमंत्री की ओर से उनके गांव को जो सम्मान दिया गया है वह उसे उम्र भर याद रखेंगी। अब वह स्वच्छता के लिए और जिम्मेदारी से काम करेंगी। उयह गौरव का पल है कि उनकी बदौलत उनके गांव के नाम पूरे देश और दुनिया में चमका है।
1100 घरों में बनवाएं शौचालय
जिम्मेदारी बड़ी हो तो तैयारी और बड़ी करनी पड़ती है। झारखंड के प्लामेट जिले के गांव चियांके की 27 वर्षीय सरपंच बिनकोरा का यही मानना है। बीटेक पास बिनकोरा को इंजीनियङ्क्षरग करने के बाद ही बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई, लेकिन उन्होंने पहले अपने गांव की स्थिति को सुधारने का निश्चय किया। सिर्फ 24 वर्ष की उम्र में सरपंच का चुनाव जीता। सरपंच बनने के तीन साल के भीतर ही 1100 घरों में शौचालय बनवाए। बिनकोरा ने बताया कि तीन साल पहले तक शौच जाने के लिए गांव की बहू बेटियों को अंधेरा होने का इंतजार करना पड़ता था।
प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत और खुले में शौच मुक्त सपने को उन्होंने साकार करने का बीड़ा उठाया। जब उन्होंने इस अभियान की शुरुआत की थी तो गांव के लोगों ने विरोध भी किया। उन्होंने ग्रामीणों को समझाया कि जब बेटियां पुरस्कार लाती हैं तो उनका सिर ऊंचा हो जाता है मगर वही बेटियां खुले में शौच जाने में शर्मिंदगी महसूस करती हैं। उनकी इन्हीं बातों पर ग्रामीण सोचने पर मजबूर हो गए और उन्होंने अपने घरों में न केवल शौचालय बनवाया। इसके अलावा गांव को खुले में शौचमुक्त बनाने में पूरी मदद की।
एक साल में ही गांव बना दिया खुले में शौच मुक्त
महाराष्ट्र के नागपुर के गांव बामनी की सरपंच माधुरी वासुदेव की आंखों में बदलाव का सपना था, जो कि उन्होंने एक वर्ष के कार्यकाल में ही गांव को खुले में शौचमुक्त कर सच कर दिखाया। माधुरी वासुदेव बताती हैं कि गांव में खुले में शौच जाने की परंपरा को तोडऩा मुश्किल था। गांव में यह धारणा होती है कि शौच के लिए घर से बाहर ही जाना चाहिए। इसमें पुरुषों को तो दिक्कत नहीं होती, मगर महिलाओं को शर्मिंदगी महसूस होती थी।
स्वच्छता अभियान में उनकी सबसे बड़ी ताकत महिलाएं ही बनीं। लगातार प्रयास के बाद गांव पूरी तरह से खुले में शौच मुक्त है और निर्मल भी। माधुरी ने कहा कि उन्होंने खुद शौचालयों के सुंदरीकरण के लिए काम किया। गांव में कचरा प्रबंधन पर भी काम किया गया। प्रधानमंत्री ने उन्हें सम्मान देकर दूसरी महिलाओं सरपंचों व अधिकारियों को प्रेरित किया है।
स्वच्छता का सपना किया साकार
महाराष्ट्र की दादरा नगर हवेली सिलवासा पंचायत की सदस्य सनु बेन बताती हैं कि गांव की हर महिला ने मोदी के सपने को साकार करने का काम किया है। गांव में स्वच्छता अभियान चलाने के साथ-साथ गांव को पूरी तरह से खुले में शौच मुक्त बनाया है। अब प्रधानमंत्री से पुरस्कार प्राप्त करने से गांव की दूसरी महिलाएं उत्साहित होंगी और अभियान को गांव में और तेजी मिलेगी। यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें प्रधानमंत्री के हाथों सम्मान मिला है।