समय पर बरसने के लिए तेरा शुक्र मेघा रे...
नरेन्द्र धुमसी इंद्री चावल उत्पादक जिलों में करनाल का नाम शान से लिया जाता है। इसलिए इसे धान
नरेन्द्र धुमसी, इंद्री:
चावल उत्पादक जिलों में करनाल का नाम शान से लिया जाता है। इसलिए इसे धान का कटोरा भी कहा जाता है। शहर के चारों ओर धान और गन्ने का एरिया ज्यादा होता है। धान बिजाई के दौरान खेत में पानी की कमी को बरसात ने पूरा किया है। बरसात से किसानों के खेत पानी से लबालब हो गए हैं, लेकिन अभी किसानों को और बरसात की जरूरत है। पिछले दो माह से पड़ रही गर्मी के कारण अधिकतर किसान भू-जन पर निर्भर थे, जिसके चलते सरकारी विभाग भी सीधी बिजाई पर अधिक जोर दे रहे थे ताकि पानी को बचाया जा सके। अब बरसात आने से धान बिजाई ने तेजी पकड़ी है।
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भीगे खेत देख किसानों के चेहरे पर खुशी
करनाल को धान का कटोरा कहा जाता है और यहां कृषि विभाग भी धान की सीधी बिजाई के लिए लगातार प्रयासरत है। बावजूद अधिकतर किसान धान की परंपरागत विधि को अपनाते हैं। इसके चलते भू-जल का दोहन होता है। परंपरागत तरीके से धान की खेती करने में प्रति किलो चावल उगाने में तीन से चार हजार लीटर पानी की लागत आती है। धान की खेती के कारण जिले के कुछ क्षेत्रों में दस साल में पानी 14 मीटर तक नीचे चला गया है।
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एक लाख 72 हजार हेक्टेयर में लगाई जाती धान
प्रदेश में सबसे ज्यादा धान करनाल जिले में लगाई जाती है। यहां पर पीआर के अलावा बासमती का बड़ा एरिया है। इंद्री सहित तरावड़ी, निगदू, निसिग, असंध, समाना बाहु में बासमती की खेती की जाती है। गन्ना की खेती भी ज्यादा होती है। यमुना बेल्ट गन्ना की सबसे ज्यादा बुवाई होती है। करनाल में 90 फीसदी खेती ट्यूबवेलों से होती है और दस फीसदी खेती नहरी पानी से होती है। मानसून के आने के बाद किसानों को धान बिजाई के लिए भू-जल का दोहन नहीं करना पड़ेगा और बिजली की खपत से भी निजात मिलेगी।
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खेतों में धान की पौध लगाने का कार्य शुरू
इंद्री सहित जिला के लगभग खंडों में धान बिजाई के लिए खेत तैयार थे लेकिन ट्यूबवेल खेतों की प्यास नहीं बुझा पा रहे थे। अब बरसात आने पर खेत पानी से भरे दिखाई देने लगे हैं और किसानों ने खेतों में पानी की संभाल शुरू कर दी है। इंद्री में करनाल-कुरुक्षेत्र की सीमा स्थित खेत की डोल को गारे से लीपते महिला दिखाई दी ताकि धान लगाने के लिए खेत से पानी को बाहर जाने से रोका जा सके। हुए।