सुनो साहिब
इन इमारतों की नींव रखते समय ही भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उठने लगे।
..तो यूं ना ढहती बहुमंजिला इमारतें
स्थानीय निकाय विभाग के साथ-साथ शहर को स्मार्ट बनाने की जिम्मेदारी लिए एक वरिष्ठ अधिकारी ने पांच साल तो कागजों में इमारतें खड़ी करने में लगा दिए। कागजों में ही इन इमारतों की नींव रखते समय ही भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उठने लगे। बार-बार सदन में कागजों में खड़ी की गई इन इमारतों को ईमानदारी के सीमेंट व ईंटों से खड़ी करने की बात उठी, लेकिन अनदेखी होती चली गई। इसका खामियाजा जनता को भी भुगतना पड़ा। कागजों में खड़ी इन इमारतों में लगी ईंटों व सीमेंट की जांच हुई तो यह गिरनी शुरू हो गईं। एक के बाद एक पांच बड़ी इमारतें गिरती ही चली गईं। जिस अधिकारी की देखरेख में इन इमारतों को खड़ा किया गया उनकी कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में खड़ी हो गई हैं। शहर की सरकार सदन में कहती रही सुनो साहिब, यह ठीक नहीं है। लेकिन जनप्रतिनिधियों की अनदेखी महंगी पड़ गई। साहब का बेटा है, जाना तो पड़ेगा
सेहत सुधारने विभाग के सबसे बड़े संस्थान के एक विभाग के डॉक्टर के पास पुलिस महकमे के एक बड़े अधिकारी का फोन आया तो सब कुछ असामान्य हो गया। साहब का बेटा बीमार था। डॉक्टर भी फोन की घंटी बजते ही फौरन निकल लिए इलाज के लिए। इधर बाहर लाइन में खड़े मरीज कराहते रहे और बोले..डॉक्टर साहब कहां गए। कोई पलटकर जवाब नहीं मिला। इधर डॉक्टर अपना काम करने के बाद दो घंटे बाद लौटे तो मरीज भी कहने से पीछे नहीं हटे। उनकी क्लास ले ही ली। चूंकि सरकारी संस्थान था, इसलिए जवाब मांगा। बोले सुनो साहिब हम क्या पागल हैं। जाना था तो कहकर जाते कम से कम इंतजार तो नहीं करते। डॉक्टर के माथे पर सनक थी और कोई बात नहीं कहकर सब टाल दिया। बगल में खड़े स्टाफ से कहा, साहब का बेटा था, इसलिए जाना भी जरूरी था, बाकी अब संभाल लेंगे। बिल देख चक्कर खाकर गिरे भाई साहब
बिजली व्यवस्था सुधार की दिशा में निगम के अधिकारियों ने नए-नए प्रयोग शुरू क्या किए, उसके साइड इफेक्ट साथ ही आने लगे। रोजाना के प्रयोग के बारे में उपभोक्ता समझ नहीं पा रहे हैं। मीटर का लोड दो किलोवाट का है लेकिन बिल लाखों करोड़ों में भेज दिए। बिल जब भाई साहब के हाथ में आया तो चक्कर आकर जमीन पर गिर पड़े। एक के बाद एक लाखों करोड़ों में आए बिल को लेकर साहब तो गंभीर नहीं हैं, लेकिन भाई साहब की तबीयत जरूर बिगड़ गई। ऐसे ही कई मामले सामने जब भाई साहब ने सुने, मुंह पर पानी के छींटे डाले तो होश में आए। लोगों ने समझाया बिजली निगम के नए-नए प्रयोग के कारण ऐसा हुआ है। भाई साहब ने होश तो संभाला, लेकिन अभी भी गंभीर मुद्रा में हैं। क्योंकि उन्हें पता चला कि बिल ठीक कराने के लिए कई चक्कर निगम के लगाने पड़ेंगे। सांझी साइकिल का निकल गया पहिया
लोगों की सेहत का जिम्मा जिस विभाग को लेना चाहिए उसकी बजाय स्थानीय निकाय विभाग ने संभालने की कोशिश की। लोगों की दिनचर्या पर सर्वे भी कराया। पता चला कि लोग व्यायाम के लिए समय कम देते हैं। इस पर योजना बनाई और सबके लिए सांझी साइकिल लेकर आ गए। इस सांझी साइकिल का पहिया कुछ समय बाद ही निकल गया। क्योंकि धुरी मजबूत नहीं थी। लाखों रुपये की लागत से तैयार की गई सांझी साइकिल पर धूल चढ़ गई है। सांझी ना होकर व्यक्तिगत हो गई। इसका पहिया निकला कैसे, इसके लिए लोग सीधे तौर पर संबंधित विभाग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वह इसलिए कि जो सर्वे कराया वह असली नहीं था। सांझी साइकिल को दौड़ाने के लिए शहर में कोई जगह ही नहीं मिली? ना साइकिल ट्रैक और ना ही फुटपाथ। अब सांझी साइकिल में पहिया डलेगा या नहीं अभी इस ओर कोई ध्यान ही नहीं है।