विकसित देशों की पसंद पर खरा उतरे भारतीय पशुओं का दूध, किया जा रहा अनुसंधान
जागरण संवाददाता करनाल राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में दुधारू पशुओं की दुग्ध दैहिक
जागरण संवाददाता, करनाल: राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में दुधारू पशुओं की दुग्ध दैहिक कोशिकाओं यानि मिल्क सोमेटिक सेल्स की गिनती से दूध की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार पर अनुसंधान किया जा रहा है। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने भारत की सभी दुधारू नस्लों में इन कोशिकाओं के आधारभूत मूल्य का पता लगाने के लिए एनडीआरआइ में परियोजना को वित्त पोषित किया है। इसके तहत दुग्ध दैहिक कोशिकाओं की गिनती से दूध की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी।
संस्थान के निदेशक डा. मनमोहन सिंह चौहान बताते हैं कि भारत दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है लेकिन बढ़ती अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के मद्देनजर दूध में वसा प्रतिशत पर ध्यान देना जरूरी है। विकसित देशों में दुग्ध उत्पाद बनाने वाली कंपनियां कम दैहिक कोशिकाओं का दूध बेहतर मूल्य पर खरीदती हैं क्योंकि इसमें अधिक तकनीकी गुणवत्ता और लंबा शैल्फ जीवन होता है। वैश्विक परि²श्य में सभी दूध निर्यातक देशों में इन कोशिकाओं का स्तर या मानक निर्धारित करने पर फोकस है। लिहाजा, भारतीय देशी गायों, भैंसों के दूध में कोशिकाओं के कार्यात्मक मापदंडों को शामिल करना जरूरी है। इससे अधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले डेयरी मवेशियों को विकसित करने में भी मदद मिलेगी। प्रोजेक्ट के तहत इस बाबत पशुपालकों पशु स्वास्थ्य के प्रति जागरुक भी किया जा रहा है। संक्रमण की स्थिति का आकलन
संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. अजय कुमार डांग 15 वर्ष से जारी अनुसंधान के तहत पशुओं की स्तन ग्रंथि से दूध कोशिकाओं को अलग कर रहे हैं। इस तरह वह इन कोशिकाओं की फैगोसाइटिक गतिविधि यानि इम्यूनो माड्यूलेटरी का आकलन करते हैं। डा. डांग ने बताया कि दैहिक कोशिकाएं प्रति मिलीलीटर दूध की संख्या के रूप में निर्धारित होती हैं। इनकी राशि एक लाख के आसपास होती है तो यह इंगित करता है कि पशु का अयन स्वस्थ है। प्रति एमएल दो लाख से अधिक कोशिकाएं देने वाली गायों, भैंसों में कम से कम एक तिमाही में संक्रमित होने की आशंका रहती है। दैहिक कोशिकाओं में वृद्धि पर सीधे संक्रमण की गंभीरता भी बढ़ती चली जाती है।
स्तन ग्रंथि में सूजन से होती वृद्धि
डा. डांग ने बताया कि दूध दैहिक कोशिकाएं स्तन ग्रंथि में सूजन से बढ़ती हैं, जो दूध की संरचना को रक्त संरचन की तरह बदल देता है। इससे दूध में अधिक अयन यानि सोडियम, क्लोराइड, प्रोटीन और श्वेत कोशिकाएं आती हैं । संक्रमित गायों के दूध में लैक्टोज प्रतिशत में कमी देखी गई है। रिसर्च में स्पष्ट हुआ है कि इससे खराब दही, कम पनीर की उपज व डेरी उत्पादों के तकनीकी गुणों पर नकारात्मक प्रभाव आते हैं। जबकि स्वस्थ पशु के दूध में हमेशा दैहिक कोशिकाएं कम होती हैं। क्या होतीं दुग्ध दैहिक कोशिकाएं
सभी विकसित देश दुग्ध दैहिक कोशिकाओं की गणना का उपयोग स्तन ग्रंथि के स्वास्थ्य की निगरानी और कच्चे दूध के गुणवत्ता संकेतक के रूप में कर रहे हैं। ये शरीर की व्युत्पन्न कोशिकाएं हैं, जो सामान्यत: दूध में निम्न स्तर पर मौजूद होती हैं। दूध में आने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं रक्षा प्रणाली के हिस्से के रूप में काम करती हैं और दूध में लगातार कम मात्रा में आती रहती हैं। इनका प्राथमिक कार्य बीमारी से लड़ना और क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत में सहायता करना है। किसी भी स्तन ग्रंथि संक्रमण (मास्टिटिस) से दूध में इन कोशिकाओं में वृद्धि होती है और उत्पादित दूध खराब होने का संकेत मिलता है।