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..इस साल रूढि़वादिता और अशिक्षा के अंधेरे से विमुक्ति का संकल्प

- 31 अगस्त को पूरे भारत में विमुक्त दिवस मनाते हैं 193 जातियों के लोग

By JagranEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2020 07:20 AM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2020 07:20 AM (IST)
..इस साल रूढि़वादिता और अशिक्षा के अंधेरे से विमुक्ति का संकल्प
..इस साल रूढि़वादिता और अशिक्षा के अंधेरे से विमुक्ति का संकल्प

- 31 अगस्त को पूरे भारत में विमुक्त दिवस मनाते हैं 193 जातियों के लोग - इन्हीं में शामिल करनाल के ढेहा बंगाली चलेंगे बड़े बदलाव की डगर पर - धूमसी गांव में आयोजित सभा में सर्वसम्मति से लिए गए अहम फैसले

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फोटो 24, 25, 26 पवन शर्मा, करनाल: अज्ञानता के अंधेरे से लड़ने के लिए शहर की ढेहा बस्ती से शुरू हुई मुहिम अब बड़ा रूप लेने को है। इसके तहत यहां के बाशिदों ने संकल्प लिया है कि अपने समाज को रूढि़वादिता के बंधन से आजादी दिलाकर शैक्षिक और आर्थिक प्रगति की अलख जगाएंगे। इसी सोच के साथ उन्होंने रविवार को 69वां विमुक्त दिवस मनाया। तय हुआ कि अब पूरे देश में यह संदेश पहुंचाएंगे कि समाज की मुख्य धारा में शामिल होना है तो क्रांतिकारी कदम उठाने होंगे। इसकी शुरुआत ढेहा बस्ती के नाम में बदलाव के प्रस्ताव से हो गई है, जिसका सभी ने स्वागत किया। विमुक्त जातियों के लोग प्रतिवर्ष 31 अगस्त को विमुक्त दिवस मनाते हैं। वे कहते हैं कि हमारे लिए आजादी का वास्तविक दिन यही है, क्योंकि 1952 में इसी दिन वह क्रिमिनल ट्राइब एक्ट समाप्त किया गया, जिसे अंग्रेजों ने 1871 में बनाया था। भारत सरकार अस्तित्व में आई तो ऐसी 193 बेठिकाना जातियों की सुध ली गई। इनमें पीढि़यों से कचरा बीनने का काम करने वाले ढेहा बंगाली भी हैं, जो करनाल में बसे हैं। उन्होंने कोरोना काल के कारण बड़े आयोजन के बजाय रविवार को जिले के धूमसी गांव में सभा बुलाकर मौजूदा हालात पर मंथन किया। इस दौरान विमुक्त घूमंतू जनजाति विकास बोर्ड के सदस्य ईसर सिंह धर्मशोत की मौजूदगी में अहम फैसले लिए गए। तय हुआ कि देश-प्रदेश में समाज के स्त्री-पुरुषों को दस्तकारी प्रशिक्षण दिलाकर आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। सरकार से ऋण और अन्य सहायता दिलाई जाएगी। छोटे बच्चों के लिए ढेहा बस्ती व गढ़ी खजूर में शिक्षण केंद्र खोले जाएंगे। इस दौरान लक्ष्मण अहेरिया, कंवरपाल शेखपुरा, राजिदर, महिद्र अहेरिया, कुरुक्षेत्र के धर्मपाल, गोपी घारू, राजकुमार और ईश्वर सरपंच आदि मौजूद रहे। ढेहा बस्ती दिखा रही नई राह

करनाल की ढेहा बस्ती देश भर की विमुक्त जातियों को नई राह दिखा रही है। दरअसल इसे अर्से तक धक्का बस्ती, बंगाली बस्ती, कचरा बस्ती, सिपलों का डेरा, कूचों का मुहल्ला आदि कहा जाता था। कचरा बीनने के काम से ही दो जून की रोटी का इंतजाम करने वाले इन लोगों पर केंद्र सरकार ने ध्यान दिया तो यहां नई उम्मीदें जगीं। हाल में स्वच्छ सर्वेक्षण-2020 में करनाल को अपनी श्रेणी में हरियाणा का सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया गया तो बस्ती के दो लोगों ने केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी से वर्चुअल संवाद किया। इससे उत्साहित बस्ती के बाशिदे बड़े बदलाव की इबारत रच रहे हैं। बदलेगा नाम, बदलेगी किस्मत

डीएनटी कल्याण संघ के जिला प्रमुख कंवरपाल शेखपुरा ने बताया कि इस साल हमने विमुक्त दिवस पर रूढि़वादिता और अशिक्षा के अंधियारे से आजादी का संकल्प लिया है। इसकी शुरुआत करनाल की ढेहा बस्ती के नाम में बदलाव का क्रांतिकारी कदम उठाकर की जा रही है। जल्द कोई प्रगतिशील नाम तय करेंगे ताकि यहां के लोग दोगुने आत्मविश्वास से आगे बढ़ें। शैक्षिक व सामाजिक प्रगति के पर भी पूरा फोकस है। इस वर्ग में ये जातियां

इस वर्ग को विमुक्त, घुमक्कड़ व अ‌र्द्धघुमक्कड़ जातियों में बांटा गया है। इनमें ढेहा बंगाली, बंजारा, धनगर, बैरागी, पाल, गडरिया, सांसी, भेदकुट, छारा, भांतु भाट, नट, गदहीला, डोम, बावरिया, जगमजोगी, कालबैलिया, बाजीगर, महातम, मल्लाह, मागगरोडी, मदारी, वागरी, कबुतरिया, पारदी, भोई, खेवट, अहेरिया, बहेलिया, नायक सफेरा, सिगित, सिकलीगर और कुचाबंदगिहार आदि प्रमुख हैं।


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