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हौसलों की उड़ान में अड़चन बन रहे गरीबी के पंख

बड़ौता गांव की तीन बहनें हौसलों के दम पर राष्ट्रीयस्तर पर चैंपियन बनीं और अंतरराष्ट्रीय खेलों का हिस्सा बनकर बेटियों पर नाज का परिचय दिया है। बचपन में खेल-खेल में आपस में कुश्ती करनी शुरू करने वाली प्रियता, सृष्टि और संजू को पता नहीं था कि एक दिन विदेशस्तरीय मुकाबलों में भी हिस्सा लेंगी। तीनों बहनें खेल ही नहीं शिक्षा में भी आगे रही हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Feb 2019 08:08 AM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 08:08 AM (IST)
हौसलों की उड़ान में अड़चन बन रहे गरीबी के पंख
हौसलों की उड़ान में अड़चन बन रहे गरीबी के पंख

जागरण संवाददाता, करनाल : बड़ौता गांव की तीन बहनें हौसलों के दम पर राष्ट्रीयस्तर पर चैंपियन बनीं और अंतरराष्ट्रीय खेलों का हिस्सा बनकर बेटियों पर नाज का परिचय दिया है। बचपन में खेल-खेल में आपस में कुश्ती करनी शुरू करने वाली प्रियता, सृष्टि और संजू को पता नहीं था कि एक दिन विदेशस्तरीय मुकाबलों में भी हिस्सा लेंगी। तीनों बहनें खेल ही नहीं शिक्षा में भी आगे रही हैं। जिला अखाड़े में 57, 54 और 50 किलोग्राम वर्ग में सृष्टि, प्रियता और संजू ने अपनी दमदार कुश्ती का परिचय दिया। तीनों बहनों का दावा है कि अपने मजबूत इरादों से देश के लिए खेलेंगी और गोल्ड मेडल जीत कर लाएंगी।

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गृहिणी है माता सुदेश

बड़ौता निवासी बिजेंद्र ¨सह अस्थमा से पीड़ित हैं और मजदूरी करते हैं। उनकी केवल तीन ही बेटियां हैं और माता सुदेश देवी गृहिणी हैं। पिता बेटियों को खेलों के लिए हिम्मत तो दे रहे हैं, लेकिन एक पहलवान को जरूरत के अनुसार डाइट देने में असमर्थ हैं। घर में रोजाना बनने वाले खाने के दम पर ही तीनों बेटियों ने कुश्ती में नाम कमाया है। जिम्मेदार खेल अधिकारियों और कुश्ती फेडरेशन प्रबंधकों ने मुकाबलों के बाद इनकी आर्थिक हालात पर ध्यान नहीं दिया। 12वीं की छात्रा पहलवान संजू (17 वर्ष) के अनुसार हमेशा दिल में ख्वाहिश ही रही है कि सरकार की तरफ से उनके खेल को सहयोग किया जाएगा।

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बीपीएड के लिए नहीं फीस

पहलवान प्रियता (21 वर्ष) और सृष्टि (19 वर्ष) बताती हैं कि गांव के सरकारी स्कूल में अच्छे अंक लेकर शिक्षा हासिल की और फिर बीए पास की। अब दोनों बहनों ने बीपीएड में दाखिला लिया है जैसे-कैसे पांच-पांच हजार रुपये जमा कराए हैं, लेकिन अगले 20-20 हजार रुपये जमा कराने की ¨चता सता रही है। तीनों बहनें इसी इंतजार में रहती हैं कि कहीं मुकाबला हो और जीत दर्जकर कैश अवार्ड से यह फीस जमा कर सकूं। पिता की आर्थिक हालत कमजोर होने के कारण फीस जमा कराने की मुश्किल आ रही है।

अभ्यास के लिए नहीं कोच

अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में हिस्सा ले चुकी सृष्टि और प्रियता ने बताया कि करनाल में कुश्ती कोच न होने के कारण वे अभ्यास नहीं कर पा रही हैं। अभी तक गांव में ही तीनों बहनों ने आपस में प्रेक्टिस की है या फिर टीवी पर पहलवानों को देखकर दांवपेंच सीखे हैं। वर्ष 2016 में लखनऊ में अर्जुन अवार्डी कृपा शंकर से ट्रे¨नग ले चुकी सृष्टि बताती है कि जिले में कोच न होने के कारण उनकी कुश्ती को निखारने के लिए कोच नहीं है, जिसका उन्हें मलाल रहता है। राष्ट्रीय गोल्ड मेडल विजेता प्रियता ने बताया कि अगर उन्हें अच्छे कोच का नेतृत्व मिलता है, तो प्रदेश ही नहीं देश के लिए मेडल जीत कर ला सकती हैं।

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प्रियता की उपलब्धियां

--वर्ष 2013 में औरंगाबाद में आयोजित प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल

--जम्मू-कश्मीर में सब-जूनियर कुश्ती मुकाबलों में ब्रांज

--वर्ष 2015 में रांची में सब-जूनियर मुकाबलों में ब्रांज

सृष्टि की उपलब्धियां

--वर्ष 2014 में थाइलैंड में एशियान कैडिट मुकाबलों में ब्रांज

--वर्ष 2014 में चौकोस्लोवा में व‌र्ल्ड कैडिट रेस्ट¨लग में पार्टीसिपेशन

--वर्ष 2016 में ताइके ताइवान में सब जूनियर मुकाबलों में पार्टीसिपेशन

--वर्ष 2017 में पटना में आयोजित कुश्ती मुकाबलों में गोल्ड मेडल

संजू की उपलब्धियां

--वर्ष 2017 में थाइलैंड में एशिया मुकाबलों में ब्रांज मेडल

--वर्ष 2018 में उजेक्सितान में एशियन मुकाबलों में ब्रांज मेडल

--वर्ष 2018 में करोसिया में व‌र्ल्ड रेस्टलर चैंपियनशिप में पार्टीसिपेशन ---वर्जन----

जिलास्तरीय दंगल में तीनों बहनों ने कुश्ती में शानदार प्रदर्शन किया। मुझे मालूम पड़ा कि लड़कियां गरीब परिवार से हैं। तीनों पहलवान बहनों की शिक्षा और खेल में मदद के लिए स्पो‌र्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया तक अपील की जाएगी। उच्चाधिकारियों को इस विषय में जल्द पत्र लिखा जाएगा ताकि जिले की बेटियां कुश्ती में देश का नाम रोशन कर सकें।

-बबीता भारद्वाज, कार्यकारी खेल अधिकारी।


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