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लचर सफाई व्यवस्था : ठेकेदारों पर एक लाख 38 हजार का जुर्माना

जागरण संवाददाता, करनाल स्मार्ट सिटी लचर सफाई व्यवस्था से होकर गुजर रही है। व्यवस्था अभी भ

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 01:52 AM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 01:52 AM (IST)
लचर सफाई व्यवस्था : ठेकेदारों पर एक लाख 38 हजार का जुर्माना
लचर सफाई व्यवस्था : ठेकेदारों पर एक लाख 38 हजार का जुर्माना

जागरण संवाददाता, करनाल

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स्मार्ट सिटी लचर सफाई व्यवस्था से होकर गुजर रही है। व्यवस्था अभी भले ही पटरी पर नहीं आई हो, लेकिन नगर निगम सफाई ठेकेदारों के प्रति कड़क होने की बात कह रहा है। जागरण की ओर से सफाई व्यवस्था के लिए प्रकाशित सिलसिलेवार समाचारों के प्रभाव के चलते निगम ने सफाई ठेकेदारों पर जुर्माना लगाया है। शहर के चार में से तीन ठेकेदारों पर एक लाख 38 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना महज एक दिन की शिकायत पर लगा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रत्येक दिन की शिकायतों के आधार पर ठेकेदारों पर जुर्माना लगाने की कार्रवाई हो तो यह लाखों रुपये तक पहुंचेगी। दैनिक जागरण ने उठाया था मुद्दा

दैनिक जागरण टीम ने 14 नवंबर को शहर में सफाई व्यवस्था पर सर्वे किया और इसके बाद सिलसिलेवार ढंग से समाचार प्रकाशित किए। शहर की सफाई की हालात इस कदर थी कि डस्टबिन फ्री बनाई गई स्मार्ट सिटी में दोबारा से कूड़ेदान रखने पड़े। इसके लिए सफाई ठेकेदार सीधे तौर पर जिम्मेदार बने। लिहाजा ठेकेदारों को नोटिस देने के बाद जुर्माना लगाने की कार्रवाई की गई है। 16 नवंबर को आई शिकायतों को आधार में रखकर जुर्माना लगाया गया। जुर्माना बता रहा गंदगी का आलम

जोन-एक के ठेकेदार केएल मदान पर 45 हजार रुपये, जोन-दो के ठेकेदार महेंद्र सिहाग पर 51 हजार रुपये और जोन-चार के ठेकेदार वीरेंद्र कुमार पर 38 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। एक कूड़े के ढेर का उठान 24 घंटे तक नहीं होने पर एक हजार रुपये जुर्माना लगाने का प्रावधान है। जुर्माने की राशि देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि शहर में गंदगी के कितने ढेर आंकड़ों में दर्ज हुए हैं। ये वे ढेर हैं, जिनकी शिकायत नगर निगम तक पहुंची। ऐसे पता नहीं कितने ढेर हैं, जो अब भी जानकारी में नहीं है। ठेकेदारों को ढूंढ़ना भी नहीं आसान

शहर की सफाई के मुद्दे पर आम आदमी को सफाई ठेकेदारों से बातचीत करनी हो तो उनको ढूंढ़ना आसान नहीं है। न ही नगर निगम में उनका कोई ठिकाना है और न कोई ऑफिस। लोग ढूंढ़ते नगर निगम में पहुंचते हैं तो निराशा मिलती है। निगम में ठेकेदारों का कोई प्रतिनिधि भी नहीं रहता है, जो लोगों की बात सुन सके।


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