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इनसे मिलिए... ये 'सनकी' से ऐसे बन गए 'ज्ञानीराम', अब विदेशी भी इनके साथ लेते हैं सेल्‍फी

खुद आदिवासियों से सीखकर जड़ों की ओर लौटे जगत राम ने लुप्त बीजों को पुनर्जीवित किया और अपने खेतों को अनूठी प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 29 Jul 2019 11:30 AM (IST)Updated: Tue, 30 Jul 2019 10:50 AM (IST)
इनसे मिलिए... ये 'सनकी' से ऐसे बन गए 'ज्ञानीराम', अब विदेशी भी इनके साथ लेते हैं सेल्‍फी
इनसे मिलिए... ये 'सनकी' से ऐसे बन गए 'ज्ञानीराम', अब विदेशी भी इनके साथ लेते हैं सेल्‍फी

करनाल [मनोज ठाकुर]। हरियाणवी किसान जगत राम की दुनिया दीवानी है। जी हां, विदेशी भी इनसे सीख लेने के लिए आते हैैं। खुद आदिवासियों से सीखकर जड़ों की ओर लौटे जगत राम ने लुप्त बीजों को पुनर्जीवित किया और अपने खेतों को अनूठी प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया। लोग पहले इन्हें सनकी कहते थे। अब वही लोग इन्हें ज्ञानी राम कहते हैं।

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करनाल निवासी जगतराम ने पारंपरिक बीजों से खेती की तो फसलें लहलहा उठीं। दूसरे किसान ये देखकर हैरान रह गए। जगत राम के मुरीदों में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत सहित देश-विदेश के प्रगतिशील किसान शामिल हैैं। कनाडा, इराक, ईरान और ऑस्ट्रेलिया के किसान प्रयोग के तौर पर इनसे बीज लेकर गए हैं। इनके खेत और बीज बैंक देखकर विदेशी इनके साथ सेल्फी भी लेकर जाते हैं। 

जब सारी दुनिया हाइब्रिड बीज और उच्च किस्म की रासायनिक खाद के पीछे भाग रही थी, उन्होंने पारंपरिक बीजों से देसी खेती की। देसी खाद खेत में डालते हैं और कीटनाशक का प्रयोग तो बिलकुल भी नहीं। दूसरे किसान ये देखकर हैरान रह गए। करीब साढ़े नौ साल पहले नसीरपुर गांव के जगत राम ने पारंपरिक बीजों से खेती की शुरुआत की थी। गांव के लोगों ने उनका मजाक उड़ाया।

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जगतराम को परेशानी का सामना भी करना पड़ा। एक तो बीज नहीं थे। दूसरा इनसे कब खेती की जानी है, कैसे की जा सकती है, यह तरीका नहीं मालूम था। ऐसे में आदिवासियों की सीख काम आई। उनसे वे बीज लिए, जो यहां आसानी से उग सकते हैं। जगत सिंह कहते हैं, आदिवासी अनपढ़ जरूर हैं, लेकिन प्रकृति के साथ उनका रिश्ता अटूट है। उनकी खेती का सारा तानाबाना प्रकृति से जुड़ा है। वहां से उन्हें जानकारी मिली कि खेती का पारंपरिक तरीका ही सबसे अच्छा है।

इनके बैंक में 200 किस्म के बीज

शुरुआती दिक्कतों के बाद कामयाबी मिली। उत्पादन बढऩा शुरू हुआ तो बीज की मात्रा बढऩे लगी। तब उन्होंने अपना बीज बैंक बनाया। इसमें 200 किस्मों के अलग-अलग बीज हैं। इसमें कुछ बीज तो दुर्लभ श्रेणी के हैं। खुद इन बीजों से खेती करते हैं। दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं।

इसलिए महत्वपूर्ण हैं इनके प्रयास

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर जेपी सिंह कहते हैं, हरित क्रांति के नाम पर बीजों में जो प्रयोग हुए, इससे हमारे पारंपरिक बीज खत्म हो गए हैं। स्थानीय बीजों की उपयोगिता कभी कम नहीं हो सकती क्योंकि स्थानीय परिस्थितियों में यह बीज अच्छा उत्पादन करने की क्षमता रखते हैं। जैसे एक समय श्वेत क्रांति के लिए हाइब्रिड गायों पर निर्भर थे, लेकिन अब देसी गायों की उपयोगिता समझ में आ रही है।

ये है जगतराम की खेती का मॉडल

जगत राम सर्दियों में 50 से 60 सब्जियां लेते हैं। गर्मियों में 30 सब्जियां पैदा करते हैं। रबी व खरीफ में सात अनाज पैदा करते हैं। छह दाल की पैदावार लेते हैं। एक एकड़ का बाग है, इसमें बब्बू गोसा, पपीता, नासपाती, चीकू, लीची, अनार, आम की सात वैरायटी, अमरूद की पांच वैरायटी, नींबू, मौसमी, किन्नू, हींग, खुरमानी, फालसा, अंजीर, सौजना, शहतूत, आलू बुखारा, बादाम, कटहल, सेब, लोकाट व खिरनी लगाई हुई हैं।

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मेड़ पर हरड़, बहेड़ा, आंवला, बेल पत्थर, नीम, ढाक, किकर, बकेन, शीशम, पिलखन व पीपल, एलोवीरा, तुलसी, शतावरी, लैमन ग्रास, इलायची व जामुन के पेड़ लगाए हुए हैं। जगतरा का दावा है कि इस तरह की खेती से 30 फीसद ज्यादा मुनाफा होता है। रासायनिक खादों पर जो खर्च होता है, वो खत्म हो जाता है। एक पैदावार ज्यादा आती है। बाजार की बात करें बाजार के ही भाव में बेचते हैं लेकिन उत्पादन ज्यादा हो जाता है।

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