प्रयोग दर प्रयोग की भेंट चढ़ा हरियाणा के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए विभाग प्रयोग दर प्रयोग कर रहा है लेकिन सकारात्मक परिणाम नहीं दिखाई दे रहे हैं। हालात ये हैं कि करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद बच्चों का सिलेबस पूरा नहीं हो रहा है।
यशपाल वर्मा, करनाल
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए विभाग प्रयोग दर प्रयोग कर रहा है, लेकिन सकारात्मक परिणाम नहीं दिखाई दे रहे हैं। हालात ये हैं कि करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद बच्चों का सिलेबस पूरा नहीं हो रहा है। विभाग के प्रयोगों के बावजूद सरकारी स्कूल मर्ज व बंद हो रहे हैं। शिक्षकों पर बीएलओ कार्यभार की जिम्मेदारी व ट्रेनिग-मीटिगों से व्यवस्तता के कारण बच्चों की पढ़ाई कम हो रही है।
सोमवार से निष्ठा एकीकृत प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की गई है, जबकि 18 से 21 नवंबर तक सक्षम वृद्धि परीक्षा व 30 नवंबर को सक्षम प्लस अंग्रेजी विषय की परीक्षा ली जानी है। इसी के साथ मिड-डे-मील की थाली में बदलाव में स्टाफ व्यस्त है।
16 नवंबर तक निष्ठा एकीकृत प्रशिक्षण कार्यक्रम
प्रदेश में प्रारंभिक स्तर पर सीखने के परिणामों को बेहतर बनाने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से निष्ठा एकीकृत प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। इसके तहत प्रदेश के कक्षा एक से आठवीं तक के शिक्षकों को किताबी ज्ञान के साथ खेल-खेल में पढ़ाई, लर्निग आउटकम, ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रशिक्षण दिया जाएगा। दो चरणों में होने वाले कार्यक्रम में प्राथमिक स्तर पर सभी सरकारी स्कूलों के शिक्षक और स्कूल प्रमुख शामिल होंगे।
11 नवंबर से शुरू होने वाले कार्यक्रम में एक खंड के 150 शिक्षकों को 50-50 के ग्रुप में ट्रेनिग दी जाएगी। डीइओ रविद्र चौधरी ने बताया कि करनाल जिले में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) शाहपुर में सोमवार से ट्रेनिग शुरू की गई है। सक्षम प्लस और सक्षम वृद्धि की परीक्षा
शिक्षा विभाग की ओर से राजकीय स्कूलों में कक्षा नौवीं का शिक्षा स्तर बढ़ाने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत करनाल, नूंह, अंबाला में सक्षम वृद्धि परीक्षा 18 से 21 नवंबर तक करवाई जा रही है। साथ ही, करनाल और नीलोखेड़ी की 30 नवंबर को सक्षम प्लस अंग्रेजी विषय की परीक्षा होगी। परीक्षा का औचित्य बच्चों के शिक्षा के स्तर को सुधारना है।
सक्षम प्लस परीक्षा में नीलोखेड़ी और करनाल के बच्चे अंग्रेजी विषय में कमजोर पाए गए थे। परीक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों में महत्वपूर्ण सोच को प्रोत्साहित करना है। दूसरी तरफ, मिड-डे-मील थाली में बदलाव भी अध्यापकों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। स्कूलों के वार्षिक परिणाम दिखा रहे आईना
बेशक सरकारी स्कूल शहर व ग्रामीण स्तर पर अधिकतर आबादी को शिक्षा बांट रहे हैं, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव में बच्चों के परिणाम ला पाना चुनौती बना हुआ है। प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा का अधिकार के लिए सरकार ने दस साल पहले मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून 2009 का पास किया था, लेकिन धरातल पर सच कोसों दूर है। सक्षम, सक्षम प्लस, सक्षम वृद्धि परीक्षा, मिड-डे-मील, छात्रवृत्ति के माध्यम से करोड़ों रुपये का बजट खर्च किया जा रहा है। न तो सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी पूरी की जा रही है और न ही बच्चों की शिक्षा का स्तर सुधर पा रहा है। शिक्षा विभाग के अनेकों प्रयास के बावजूद सरकारी स्कूलों वार्षिक परिणाम आईना दिखा रहे हैं। बजट खर्च के लिए की जाती है खानापूर्ति
हरियाणा स्कूल लेक्चरर स्टेट पैटर्न और हरियाणा स्कूल शिक्षा ऑफिसर्स एसोसिएशन प्रतिनिधि बीर सिंह ने बताया कि प्रदेश के लगभग 16 हजार चुनाव बूथों पर शिक्षकों को बीएलओ व सुपरवाइजर की नियुक्ति है, जिनका अधिकतर समय मीटिगों में व्यस्त रहता है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी को पूरा नहीं किया जा रहा, बल्कि जो हैं उन्हें रोजाना की मीटिगों व ट्रेनिग में व्यस्त किया जा रहा है। अगर सही तरीके से आरटीई लागू होती तो सरकारी स्कूलों की हालत सुधर गई होती।
ट्रेनिग कार्यक्रम केवल बजट खर्च करने के लिए रखे जा रहे हैं। योजनाओं के नाम पर 9वीं कक्षा के बच्चों को क, ख, ग पढ़ाया जा रहा है, जबकि मैथ व अंग्रेजी विषयों पर तैयारी भटक गई है। यही कारण है कि अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने से दूरी बना रहे हैं।