हुक्का गुड़गुड़ाते बुजुर्ग की चर्चा के केंद्र में आया चुनाव
मौसम के साथ ही लोकसभा चुनाव की चर्चाएं भी गर्म हैं। तापमान के मुताबिक प्रत्याशियों की हार-जीत के दावे बढ़ने लगे हैं। मतदान की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है गांवों में चौपाल व ताश की चौसर पर चर्चा के आगे सोशल मीडिया भी फीका नजर आने लगा है। चाय की दुकान व चौपाल पर हुक्का गुड़गुड़ाते बुजुर्ग चुनावी चर्चा का केंद्र बने हैं।
दलसिंह मान, बल्ला
मौसम के साथ ही लोकसभा चुनाव की चर्चाएं भी गर्म हैं। तापमान के मुताबिक प्रत्याशियों की हार-जीत के दावे बढ़ने लगे हैं। मतदान की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, गांवों में चौपाल व ताश की चौसर पर चर्चा के आगे सोशल मीडिया भी फीका नजर आने लगा है। चाय की दुकान व चौपाल पर हुक्का गुड़गुड़ाते बुजुर्ग चुनावी चर्चा का केंद्र बने हैं। देश की सियासत चौपाल की चर्चा में अहम है, लेकिन 1965, 71 व कारगिल की लड़ाई में अपने जवानों की शहादत देने वाली इस धरा पर राष्ट्रवाद की गूंज भी कम नहीं है।
मेन बाजार स्थिति चौपाल पर ताश खेलने के साथ ही सियासत की चर्चा परवान पर थी। पूर्व सैनिक रामकुमार शर्मा ने कहा, सुदृढ़ नेतृत्व और सफल सरकार ही देश के लिए उचित है इसलिए सरकार उसी दल की बननी चाहिए जो दूरदर्शी सोच व बेहतर दृष्टिकोण लेकर चले। उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए रणबीर सिंह बोले, वह समय गया जब वोटों का ठेका ले लिया जाता था, अब न भाषण प्रभावी है न ठेकेदारी। राष्ट्रवाद की बात करने वाले को ही नेतृत्व सौंपना बेहतर है।
राजबीर ने बात काटकर बोले, हवा-हवाई बातों से देश नहीं चलता। हकीकत में भी कुछ करना पड़ता है। जनता नाम को नहीं काम को तोलती है। बलवान ने राजबीर की बात का समर्थन करते हुए कहा, ये पब्लिक है सब जानती है। कोरे नारों व वादों से देश नहीं चलता।
ताश के साथ दावों की चाल जारी थी तभी हरिराम ने चुप्पी तोड़ी, बोले-आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को करारा जवाब किसी ने दिया क्या, फसल का इतना दाम किसी ने दिया क्या तो फिर मजबूत सरकार क्यों नहीं बननी चाहिए। पत्ते फेंटते हुए बसीयाराम ने कहा, भाई म्हारो वोट तो उत ज्यागो जो देश की बात करैगो।
ईश्वर, सुरेश, प्रताप, राममेहर का कहना था कि सरकार ऐसी पार्टी की बननी चाहिए जो किसानों को उनकी मेहनत का पूरा दाम दे, युवाओं को नई दिशा और सैनिकों को सम्मान दे। खास बात ये कि हर आदमी आत्मविश्वास से लबरेज होकर अपने को सुरक्षित महसूस करे। ताश की एक बाजी और पूरी हो गई और मौसम का पारा लुढ़क गया, लेकिन सियासी पारा रफ्तार पकड़ता जा रहा है।