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सामाजिक सरोकारों के प्रति सतत समर्पित डा. वनीता

जागरण संवाददाता करनाल साहित्यकार डा. वनीता चोपड़ा ने कोरोना काल में सामाजिक अनुभवों

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 10:52 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 10:52 PM (IST)
सामाजिक सरोकारों के प्रति सतत समर्पित डा. वनीता
सामाजिक सरोकारों के प्रति सतत समर्पित डा. वनीता

जागरण संवाददाता, करनाल:

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साहित्यकार डा. वनीता चोपड़ा ने कोरोना काल में सामाजिक अनुभवों को कागज पर उकेरना शुरू कर दिया था। वह रोज जीवन में आ रही कठिनाइयों, सामाजिक चुनौतियों व उनसे जुड़ी संवेदनाओं को उजागर करने वाले विषयों पर अपना उपन्यास करवट लेता वक्त तैयार कर चुकी हैं। अहम विषय पर आए इस उपन्यास का विमोचन भी गणतंत्र दिवस के अवसर पर करनाल क्लब में होने जा रहा है। वह कहती हैं कि उन्हें सामाजिक सरोकारों के साथ आगे बढ़ना अच्छा लगता है। फिर चाहे वह हरियाणवी फिल्म हो या साहित्य, वह हमेशा सामाजिक मुद्दों पर काम करना पसंद करती हैं।

नई सोच से कराना चाहती रूबरू डा. वनीता चोपड़ा पंडित चिरजी लाल राजकीय महाविद्यालय में हिदी की प्राध्यापिका हैं। उनका कहना है कि वह साहित्य की नई सोच से युवाओं को रूबरू करवाना चाहती है। युवा सोच का केंद्र मे रखकर ही यह उपन्यास तैयार किया गया है। अब वह अगले उपन्यास को प्रकाशित करने की तैयारी भी कर रही है। यह उपन्यास भी आम लोगों व युवाओं को ध्यान में रखकर लिख रही हैं। हरियाणवी फिल्मों में अहम मुकाम

वनीता चोपड़ा कई सामाजिक संस्थाओं और साहित्यिक संगठनों के साथ जुड़ी हुई हैं। कहानियां लिखने के साथ साथ वह हरियाणवी फिल्म वांटिड हरियाणा में भी काम कर रही हैं। रंगमंच से भी उनका जुड़ाव रहा है। इसके साथ ही हरियाणवी गीतों की एलबम में वह काम कर चुकी हैं। कुछ माह पहले उन्हें एक संस्था की ओर से हरियाणा गौरव सम्मान से अलंकृत किया गया। वह काफी समय से एक उपन्यास पर काम कर रही थी। इसे अब अंतिम रूप देने की तैयारी चल रही है। जल्द इसका विमोचन करवाया जाएगा। सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूक

पर्यावरण व कन्या शिक्षा में देती योगदान डा. वनीता पर्यावरण संरक्षण व कन्या शिक्षा को लेकर अपना योगदान देती रही हैं। सामाजिक विषयों पर काम करने के लिए वह विद्यार्थियों को जागरूक करती हैं तो साथ ही उन्हें पौधा रोपण के लिए प्रेरित करती हैं। वह मुस्कान व राजा दानवीर कर्ण संस्था से भी जुड़ी हुई हैं। उनका मानना है कि एक स्वस्थ समाज की रचना के लिए महिला व पुरुष को बराबर के अवसर मिलने चाहिए, लेकिन कन्याओं को यह अवसर नहीं मिल पाते। उनकी कोशिश रहती है कि छात्राओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए।


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