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आपातकाल के काले सच से रू-ब-रू कराता था दर्पण, वितरण पर जाना पड़ा था जेल

आपातकाल में क्रांतिकारी समाचारपत्र दर्पण खूब चर्चित था। इसके वितरण पर करनाल के चरणदास बठला को जेल जाना पड़ा था।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2020 12:16 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 12:16 PM (IST)
आपातकाल के काले सच से रू-ब-रू कराता था दर्पण, वितरण पर जाना पड़ा था जेल
आपातकाल के काले सच से रू-ब-रू कराता था दर्पण, वितरण पर जाना पड़ा था जेल

करनाल [पवन शर्मा]। आपातकाल की यादों से करनाल के चरणदास बठला का नाम प्रमुखता से जुड़ा है। वह उन स्वयंसेवकों में शामिल थे, जिनके कंधों पर क्रांतिकारी समाचारपत्र दर्पण के वितरण की अहम जिम्मेदारी थी। दर्पण तत्कालीन शासक तंत्र को अंगूठा दिखाते हुए सत्य से साक्षात्कार कराता था। नतीजतन, इसके वितरण पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा। इसके बावजूद, जेल से बाहर सक्रिय बठला व उनकी टीम के सदस्यों ने वितरण प्रभावित नहीं होने दिया। 

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स्वर्गीय चरणदास के पुत्र राकेश बताते हैं कि दर्पण का पहला अंक सात नवंबर 1975 को निकला। 3000 प्रतियोें से शुरुआत हुई और दिल्ली में मुद्रण हुआ। अशोक विहार में किराये के मकान में कार्यालय था। तत्कालीन सरकार के कृ़त्यों की पोल खोलते संपादकीय व समाचारों से दर्पण खूब चर्चित हुआ। नतीजतन, यह सरकार की आंखों में खटकने लगा और उन लोगों की धरपकड़ होने लगी, जो इसके वितरण से जुड़े थे।

करनाल के 35 वर्षीय चरणदास इन्हीं में थे, जिन्हें गुप्त सूचना पर उनकी साबुन फैक्ट्री से उठा लिया गया। थाने में उन पर जुल्मोसितम हुए और फिर जेेल में यातनाएं सहीं। करीब पांच माह बठला जेल में रहे। जब भी जेल में कोई परिचित मुलाकात के लिए आता तो वह उन्हें कूट भाषा में दिशा-निर्देश देते, जिसके बूते अखबार का वितरण हाेता रहा।

शीशा और एटम बम्ब भी था नाम

बठला परिवार के करीबी और पुराने स्वयंसेवक ओमप्रकाश अत्रेजा ने बताया कि दर्पण पढ़ने के निश्चित अड्डे थे, जैसे कुछ पान वालों के पास यह रहता। पान सिगरेट लेने आए लोग शीशा या एटम बम्ब नाम से मांगकर इसे पढ़ते। फरीदाबाद की एक फैक्ट्री में दर्पण निश्चित जगह रखा रहता। कर्मचारी आते और दर्पण पढ़ते। दिल्ली के बाद पलवल से भी यह प्रकाशित हुआ।

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