गणतंत्र दिवस की तैयारी
गणतंत्र दिवस की तैयारी में साहब के साथ ही पूरा प्रशासनिक अमला जी-जान से जुटा है।
गणतंत्र दिवस की तैयारी में साहब ही नहीं, यूं तो पूरा प्रशासनिक अमला जी-जान से जुटा है, लेकिन साहब दिल ही दिल में चाहते हैं कि रिहर्सल के खेल-खेल में लगे हाथ अपना रिपोर्ट कार्ड भी सुधार लें। लिहाजा, हर रोज सुबह सवेरे खुद ही रिहर्सल की मॉनीटरिग का मोर्चा संभाल लेते हैं। अब भला उन्हें क्या खबर थी कि इसी सिलसिले के बीच ही बिन बुलाए मेहमान की तर्ज पर कैमरे वाले भी अचानक उनके बीच आ धमकेंगे। बस, फिर क्या था, साहब किसी तेजतर्रार अफसर की तर्ज पर न केवल खुद पूरी तरह अलर्ट हो गए, बल्कि सामने तमाम शिक्षकों को भी एक साथ सामने खड़ा करके तमाम हिदायतें देनी शुरू कर दी, ताकि कम से कम कैमरे में तो सब कुछ चाक-चौबंद नजर आ सके। कागजों में खड़ी इमारतें गिरनी शुरू हो गई
सीएम सिटी को स्मार्ट सिटी बनाने में बैठे अधिकारी इतने व्यस्त है कि मानो उनसे ज्यादा काम किसी के पास न हो। करीब पांच साल से स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट में उलझे हैं, लेकिन सब कुछ जैसे खेल-खेल में ही चल रहा है। कागजों में बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दी, मेहनत इतनी कर दी कि अब गिरनी भी शुरू हो गई। चंडीगढ़ मुख्यालय से जो रिपोर्ट आती है, उसको देखकर शहरवासियों के स्मार्ट सपने पलभर में चूर हो जाते हैं। हाल ही में स्मार्ट सिटी में कागजों में बनी इमारत के जो फरमान आए, उसने सभी को झकझोरकर रख दिया। 37 करोड़ की एक इमारत का ख्वाब तो पल भर में रेत के घरौंदे की तरह ढेर हो गया तो भ्रष्टाचार की ईंटों से तैयार की गई एक और इमारत हवा के झोंके में ढह जाने का इंतजार कर रही है। बड़े साहब की गाय से छोटे साहब हलकान
शहर की सरकार में सबसे बड़े पद पर बैठे साहब को न जाने खेल-खेल में ही कब देसी गाय पालने के शौक ने घेर लिया? दरअसल साहब को जब से देसी गाय के दूध के गुणों के बारे में जानकारी मिली तो गाय को साथ रखना शुरू कर दिया। भले ही पोस्टिग सूबे के किसी भी कोने में हो, गाय अवश्य साथ रखते हैं। साहब तो अपने इस लाइफस्टाइल से खुश हैं, लेकिन पड़ोसियों के लिए यह सिरदर्द है। पड़ोस में रहने वाले अधिकारी चूंकि ओहदे में छोटे हैं, इसलिए बोल नहीं पाते कि गाय के मल-मूत्र से दुर्गंध उनके बेडरूम तक आती है। लेकिन सबके सामने वह इस बात की चर्चा करने से नहीं चूकते। गजब की बात यह भी है कि जो साहब गाय अपने साथ रख रहे हैं, उनके पास शहर में डेयरियां व पालतू पशुओं को बाहर करने की जिम्मेदारी भी है। लेकिन खुद उनके घर में नियम टूट रहे हैं। जनता के स्वास्थ्य की नहीं, अपनी पावर की चिता
सेहत सुधारने वाले महकमे में आजकल खेल-खेल में ही खूब पॉवर दिखाई जा रही है। जनता के स्वास्थ्य की चिता छोड़ अपने को पॉवरफुल बनाने के लिए दो वरिष्ठ चिकित्सक कभी प्रदेश के मुखिया तो कभी अदालती दांव-पेच का सहारा लेते हैं। पिछले कुछ दिन की तो बात है। उड़न परी के नाम से शहर में बने बड़े संस्थान के मुखिया पदोन्नत होकर क्या गए, दावेदारों की लाइन ही लग गई। जनता के स्वास्थ्य की चिता छोड़ पॉवरफुल बनने की होड़ लग गई। मुखिया के जाते ही एक वरिष्ठ महिला चिकित्सक को अस्थायी जिम्मेदारी दे दी, लेकिन दूसरों को रास ना आई। ऊपर से फटकार भी लगी, प्रदेश के मुखिया ने खिचाई भी की। लोगों की स्वास्थ्य का ध्यान देने की नसीहत भी दी, लेकिन बाज नहीं आए। पॉवर की खूब खींचतान चली तो दूसरे वरिष्ठ चिकित्सक को नियुक्ति दे दी गई।