मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में एक्सपायर हो रहा खून, फिर भी मरीजों पर यूनिट के बदले रिप्लेसमेंट का बनाया जा रहा दबाव
एक तरफ ब्लड नहीं मिलने के कारण लोगों को धक्के खाने पड़ रहे हैं दूसरी तरफ कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में एक सप्ताह में करीब 130 यूनिट ब्लड एक्सपायर हो चुका है। प्रबंधन अधिकारियों की लापरवाही इस हद दर्ज की है कि जो ब्लड एक्सपायर हो रहा है उसको बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए।
प्रदीप शर्मा, करनाल
एक तरफ ब्लड नहीं मिलने के कारण लोगों को धक्के खाने पड़ रहे हैं, दूसरी तरफ कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में एक सप्ताह में करीब 130 यूनिट ब्लड एक्सपायर हो चुका है। प्रबंधन अधिकारियों की लापरवाही इस हद दर्ज की है कि जो ब्लड एक्सपायर हो रहा है उसको बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। यहां तक की नियमों को ताक पर रखकर ब्लड रिप्लेसमेंट के लिए मरीजों के तिमारदारों पर दबाव बनाया जा रहा है। ऐसे में बड़ा और अहम सवाल यह है कि जब मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में ब्लड इतनी मात्रा में है कि वह लोगों को आसानी से उपलब्ध करा सकता है, यदि रिप्लेसमेंट ना ली जाए तो यहां ब्लड एक्सपायर होने की नौबत नहीं आती। इस मामले को लेकर कॉलेज प्रबंधन भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है।
इस तरह से एक सप्ताह में यूं एक्सपायर होता गया ब्लड, जिम्मेदार मौन
कल्पना चावला के ब्लड बैंक में 2, 3 व 4 नवंबर तक 70 यूनिट ब्लड एक्सपायरी दिखा दिया गया। सिलसिला यही नहीं रुका। केसीजीएमसी के रिकॉर्ड के अनुसार 7, 8 व 9 नवंबर को 60 यूनिट ब्लड एक्सपायर दिखा दिया गया। यह कुल 130 यूनिट बनता है।
सवाल ना खड़े हों, इसलिए कुछ को हिमोलाइज तो कुछ को क्लोट दिखाया
ब्लड बैंक में बड़ी संख्या में एक्सपायर हो रहे ब्लड पर कोई सवाल ना खड़े कर दे इसको लेकर ब्लड बैंक प्रबंधन ने कुछ यूनिट को हिमोलाइज तो कुछ को क्लोट दिखा दिया। अगर वाकई में ब्लड यूनिट हिमोलाइज व क्लोट हैं तो उनको एक्सपायरी तारीख में क्यों दिखा गया यह भी बड़ा सवाल है। हिमोलाइज और क्लोट का मतलब भी यही होता है कि ब्लड इस्तेमाल करने के लायक नहीं रहा। यह अधिकारियों ने बचने का रास्ता निकाल लिया।
जितनी मुस्तैदी लाइसेंस लेने के लिए की थी, ब्लड सेविग के लिए क्यों नहीं
जिस लाइसेंस पर मेडिकल कॉलेज ब्लड बैंक चला रहा है यह नागरिक अस्पताल का था। नागरिक अस्पताल को जब मेडिकल कॉलेज ने ओवरटेक किया था उस समय ब्लड बैंक के लाइसेंस को अपने नाम करवा लिया था, क्योंकि कॉलेज को चलाने के लिए यह प्राथमिकता होती है। प्रबंधन ने जितनी मुस्तैदी ब्लड बैंक के लाइसेंस के लिए दिखाई उतनी ब्लड को सेविग करने में नहीं दिखाई।
सरकार स्वैच्छिक रक्तदान की तरफ कदम बढ़ा रही, अधिकारी जबरदस्ती पर उतरे
रक्तदान स्वेच्छा से हो इसके लिए भारत सरकार की स्वैच्छिक रक्तदान योजना शुरू की थी। लेकिन सीएम सिटी में इसके विपरित काम हो रहा है। मेडिकल कॉलेज में ब्लड तभी मिलेगा जब रिप्लेसमेंट के लिए संबंधित व्यक्ति राजी होगा। इसके बिना ब्लड मुहैया नहीं कराया जा रहा है। इसका मतलब साफ है क्या संबंधित अधिकारी मरीजों के तिमारदारों के साथ जबरदस्ती पर उतर आए हैं?
कैसे बचा सकते थे ब्लड?
1. ब्लड बैंक अधिकारी मुस्तैद होते तो उन्हें पता होता कि कितनी ब्लड यूनिट एक्सपायर होने वाली हैं। उससे पहले आसपास के ब्लड बैंकों में टाइअप किया जा सकता था, जहां पर ब्लड की जरूरत है। आवश्यकता अनुसार ब्लड को भेजा जा सकता था। 2. रिप्लेसमेंट को अनिवार्य नहीं करते तो
इस समय कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज में ब्लड लेने के लिए जो भी जाता है उसको यूनिट की एवज में ब्लड देना पड़ता है। स्टॉक को चेक किया जा सकता था, अगर स्टॉक ज्यादा था तो रिप्लेसमेंट बंद किया जा सकता था, ताकि जो पहले से ब्लड यूनिट है उसको प्रयोग में लाया जा सके। क्या कहते हैं जिम्मेदार? वर्जन
- सीनियर ड्रग कंट्रोल आफिसर परजिद्र मलिक ने कहा कि ब्लड एक्सपायर हो रहा है यह ठीक नहीं है। आसपास के ब्लड बैंक जहां पर जरूरत थी वहां पर भेजा सकता है। इस बारे में ब्लड बैंक स्टाफ से बातचीत की जाएगी, यह गंभीर विषय है। वर्जन
जिम्मेदारी से बचने का प्रयास
- ब्लड बैंक के इंचार्ज डॉ. सचिन गर्ग ने कहा कि इस बारे में एमएस से बात करें। वह जानकारी नहीं दे सकते।