Move to Jagran APP

गौरव गाथा के इंतजार में अधर में लटकी योजना

जागरण संवाददाता, कैथल : बाहरी व्यक्ति के प्रदेश के किसी भी गांव में प्रवेश करने से पहले ही उस गांव का इतिहास पता चल जाए, ऐसी सोच सरकार की थी। सोच को जमीन पर उतारने के लिए सरकार ने गौरव पट योजना शुरूकी थी।

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 01:40 AM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 01:40 AM (IST)
गौरव गाथा के इंतजार में अधर में लटकी योजना
गौरव गाथा के इंतजार में अधर में लटकी योजना

जागरण संवाददाता, कैथल : बाहरी व्यक्ति के प्रदेश के किसी भी गांव में प्रवेश करने से पहले ही उस गांव का इतिहास पता चल जाए, ऐसी सोच सरकार की थी। सोच को जमीन पर उतारने के लिए सरकार ने गौरव पट योजना शुरूकी थी।

loksabha election banner

एक साल से भी ज्यादा समय योजना को शुरु हुए बीत चुका है। चार बार डेडलाइन बढ़ाई गई, लेकिन अब तक जिला के 277 गांव में से आधे में भी पंचायत विभाग गौरव गाथा नहीं लिख पाया है। अब पंचायत विभाग को 23 सितंबर तक यह कार्य पूरा करना है। गौरव पट योजना के विफल होने के पीछे पंचायतों का आपसी मतभेद और पंचायत विभाग के अधिकारियों का ढुलमुल रवैया जिम्मेदार है। आधी से ज्यादा पंचायतों ने अब तक गौरव गाथा ही उपलब्ध नहीं करवाई है। जब तक गौरव गाथा उपलब्ध नहीं होगी गौरव पट पर इतिहास नहीं लिखा जा सकता है।

बॉक्स

पंचायती विभाग ढांचा

खड़ा करने में जुटा

पंचायती राज विभाग की जिम्मेदारी गौरव पट का ढांचा खड़ा करना व पंचायत विभाग से मिली गौरव गाथा को लिखवाना है। बार बार मांगने पर भी जब गौरव गाथा नहीं मिली तो विभाग ने अपना काम पूरा करने की ठान ली। एक्सीईएन राकेश गोयल ने बताया कि 277 गांव में से पंचायती राज विभाग 264 में स्ट्रक्चर खड़े कर चुका है। जो बचे हैं उन गांव में भी 23 सितंबर तक कार्य पूरा हो जाएगा।

बॉक्स

अब तक 112 गांव में ही

लिखी गई है गौरव गाथा

277 गांव में से 112 गांव में ही अब तक गौरव गाथा लिखी गई है और करीब 125 गांव की ही गौरव गाथा अब तक मिली है। गौरव गाथा नहीं मिलने का कारण पंचायतों का इतिहास व नामों को लेकर मतभेद है। इसके अलावा कुछ सरपंचों के गौरव पट के बारे में ज्यादा जानकारी भी नहीं है। उसके अलावा कुछ गांव में जमीन को लेकर विवाद भी सामने हैं।

बॉक्स

ये भी समस्याएं

एक गांव में गौरव पट बनाने के लिए करीब 80 हजार रुपये राशि दी गई है। जबकि शुरुआत में विभाग ने इन पर एक लाख से ज्यादा राशि खर्च कर दी और अधिक राशि पंचायतों से वसूलने का इरादा था, लेकिन कुछ पंचायतों ने पैसे देने से इनकार कर दिया। अब विभाग पूरे गौरव पट को ग्रेनाइट की बजाय पूरे राशि अनुसार ही सफेदी करवाकर काम चला रहा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.