पर्यटन के रूप में विकसित हो सकता भाई उदय सिंह का किला
भाई उदय सिंह का किला प्राचीन इतिहास समेटे हुए है। शहर के बीचों-बीच स्थित इस प्राचीन धरोहर की आज अनदेखी हो रही है। दस साल पहले इस किले को विकसित करने के लिए काम तो शुरू हुआ था लेकिन आधे से ज्यादा कार्य अब भी अधूरा पड़ा हुआ है। किले को पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है।
जागरण संवाददाता, कैथल : भाई उदय सिंह का किला प्राचीन इतिहास समेटे हुए है। शहर के बीचों-बीच स्थित इस प्राचीन धरोहर की आज अनदेखी हो रही है। दस साल पहले इस किले को विकसित करने के लिए काम तो शुरू हुआ था, लेकिन आधे से ज्यादा कार्य अब भी अधूरा पड़ा हुआ है। किले को पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है।
बता दें कि जिले के इतिहास में भाई उदय सिंह किला का अपना एक अलग महत्व है। इस पर केवल बाहरी सुंदरीकरण करने के अलावा अन्य प्रकार से इसे विकसित नहीं किया गया है। हांलाकि वर्ष 2013 में इस किले का जीर्णाेंद्धार तो किया गया , लेकिन यह बाहर से दिखने तक ही सिमट कर रह गया। किले के अंदर कोई कार्य नहीं कराया गया, जिससे इस स्थान को पर्यटन के रूप में विकसित करवाया जा सके।
1843 के बाद कैथल को अंग्रेजों
ने रियासत में किया था शामिल :
इतिहासकार कमलेश शर्मा ने बताया कि भाई उदय सिंह किला 1570 ई में अकबर के समय में बना था। इसे अकबर ने सेना के लिए बनाया था। इसके बाद 1747 में सिखों का राज स्थापित हुआ था, जिसमें सिख शासक देसू सिंह ने इस क्षेत्र पर जीत हासिल करके कैथल को अपनी राजधानी बनाया था। उनके सुपुत्र लाल सिंह ने इस विरासत को संभाले रखा। उनके सुपुत्र लाल सिंह के पोते भाई उदय सिंह ने इसका विस्तार करनाल और जींद तक कर लिया था। किले के साथ भाई उदय सिंह ने किला के पास अपना महल भी बनवाया, जो वर्तमान में पुराना एसडीएम कार्यालय है।
भाई उदय सिंह के पास कोई संतान नहीं थी। वर्ष 1823 में उन्होंने राजकाज संभाला इसके बाद उनकी 1843 में मृत्यु हो गई। इसके बाद इस किले के कारण कैथल को अंग्रेजों ने अपनी रियासत में शामिल कर लिया था।
भारद्वाज ने बताया कि जिस प्रकार से किले पर करोड़ों रुपये की राशि खर्च हुई, उसके मुताबिक यह विकसित नहीं हो पाया है। इसके अंदर जाने का कोई रास्ता नहीं है। इसे अंदर से विकसित किया जाना चाहिए था, जिससे यह लोगों के लिए पूरी तरह से पर्यटन स्थल नहीं बन पाया है।