जिम्नास्ट दीपा करमाकर की कहानी सुन उत्साहित हुए छात्र
दैनिक जागरण की ओर से जाट दैनिक जागरण की ओर से जाट शाइ¨नग स्टार पब्लिक स्कूल में संस्कारशाला आयोजित की गई। मुख्यातिथि के रूप में जिला बाल कल्याण अधिकारी बलबीर ¨सह चौहान ने शिरकत की। संस्काराशाला में महिला पतंजलि समिति की तहसील प्रभारी संध्या आर्या ने कड़ी मेहनत से ही मिलती है सफलता कहानी पढ़कर सुनाई।
जागरण संवाददाता, कैथल : दैनिक जागरण की ओर से जाट शाइ¨नग स्टार पब्लिक स्कूल में संस्कारशाला आयोजित की गई। मुख्यातिथि के रूप में जिला बाल कल्याण अधिकारी बलबीर ¨सह चौहान ने शिरकत की। संस्काराशाला में महिला पतंजलि समिति की तहसील प्रभारी संध्या आर्या ने कड़ी मेहनत से ही मिलती है सफलता कहानी पढ़कर सुनाई। कहानी का केंद्र भारत की स्टार जिम्नास्ट खिलाड़ी दीपा करमाकर रही। किस तरह दीपा करमाकर ने अनुशासन और कड़ी मेहनत के दम पर जीवन में सफलता हासिल की यह सुनकर सभी विद्यार्थी उत्साहित दिखाई दिए।
इस मौके पर संध्या आर्या ने कहा कि दीपा करमाकर भारत के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में पैदा हुई। पांच साल की एक लड़की ने खेल के मैदान में सपना देखना शुरू किया। पिता वेटलि¨फ्टग में कोच थे, इसलिए दीपा का बचपन से ही खेल और खिलाड़ियों से नाता रहा। घर पर उछल कूद करते देख पिता ने दीपा को जिम्नास्टिक खेलने के लिए प्रेरित किया। स्कूल जाने से पहले दीपा जिम्नास्टिक की ट्रे¨नग लेने लगी थी। जिम्नास्टिक के दौरान कभी उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। थोड़े ही दिनों में उसकी हुनर को पहचान मिलने लगी। उम्र आठ से नौ साल ही थी कि दीपा की सपनों और सच्चाई के बीच पहली टक्कर हो गई। दीपा के सामने फ्लैट फुट यानि सपाट तलवे की समस्या आ गई।
मान्यता है कि फ्लैट फुट वाले जिम्नास्टिक नहीं कर सकते, क्योंकि कूदने के बाद वापस आते समय ग्रिप नहीं बनती। दीपा ने इस कमी को बाधा नहीं बनने दिया। कोच ने भी साथ दिया और आज दीपा नेशनल व इंटरनेशनल में 80 मेडल जीत चुकी है।
2014 में कॉमनवेल्थ में कांस्य पदक जीता तो देश के लिए ऐसा करने वाली पहली जिम्नास्ट थी। अब अनेक उपलब्धि उसकी झोली में है और गरीबों के लिए एक प्रेरणा है।
बॉक्स : मेहनत व अनुशासन से मिलती है कामयाबी
जिला बाल कल्याण अधिकारी बलबीर ¨सह चौहान ने कहा कि दीपा करमाकर महान बनी क्योंकि वह मेहनती और अनुशासित थी। किसी को भी जीवन में कामयाबी हासिल करने के लिए इन दो चीजों को अपने जीवन का अहम हिस्सा बनाना होगा। जीवन में खेल, शिक्षा या फिर कोई भी क्षेत्र हो अगर ये दो खूबियां नहीं है तो किसी को भी मंजिल पाने में मुश्किल होगी। इसलिए जरूरी है कि हम इन्हें जीवन में अपनाएं।
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¨प्रसिपल जय ¨सह चहल ने दैनिक जागरण द्वारा संस्कारशाला की सराहना करते हुए कहा कि आज जीवन में किसी चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है तो वे संस्कार हैं। यहीं से असल मंजिल की ओर बढ़ने की शुरुआत होती है। उन्होंने बच्चों को संस्कारवान बनने के लिए प्रेरित किया।
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बच्चों के मन में बस गई दीपा करमाकर
बच्चों को कहानी कितनी रोचक लगी इसका इससे पता चलता है कि पल भर में ही दीपा करमाकर बच्चों के मन में बस गई थी। नौवीं कक्षा की विनती ने पूरी की पूरी कहानी अपने शब्दों में सुनाई। किट्टू, आर्यन ने सवालों के जवाब दिए।