राजनीति का अखाड़ा बना धार्मिक डेरा
गांव बाबा लदाना स्थित ऐतिहासिक डेरा बाबा राजपुरी के नाम करोड़ों रुपये की संपत्ति है। पिछले दस महीने से डेरा में दो महंतों के बीच गद्दी को लेकर विवाद चल रहा है। इसमें ग्रामीण भी आमने-सामने हैं। प्रशासन भी डेरे के विवाद को सुलझाने में नाकाम साबित हो रहा है।
जितेंद्र कुमार, कैथल :
गांव बाबा लदाना स्थित ऐतिहासिक डेरा बाबा राजपुरी के नाम करोड़ों रुपये की संपत्ति है। पिछले दस महीने से डेरा में दो महंतों के बीच गद्दी को लेकर विवाद चल रहा है। इसमें ग्रामीण भी आमने-सामने हैं। प्रशासन भी डेरे के विवाद को सुलझाने में नाकाम साबित हो रहा है। इस कारण राजनीतिक का अखाड़ा बने इस धार्मिक स्थल से जुड़े लोगों की भावनाएं भी आहत हो रही हैं।
करीब 500 वर्ष पुराने इस डेरे के नाम 116 एकड़ जमीन है। गांव बाबा लदाना में करीब 66 व गांव लैंडर पीरजादा में 50 एकड़ जमीन है। दशहरा पर्व से अगले दिन तीन दिनों तक यहा मेला लगता है। इसमें हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब व दिल्ली से श्रद्धालु पहुंचकर माथा टेकते हैं।
डेरे का इतिहास
विश्व में प्रसिद्धि हासिल करने वाले अध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस के गुरु तोता पुरी इसी डेरा के सातवें महंत थे। रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु हैं। 1690 में जन्मे बाबा राजपुरी ने आठ साल में चोला धारण कर लिया था। संत सरस्वती पुरी इसके बाद गुरु बनाया गया। इसके बाद गांव बात्ता में गुरु से अलग डेरा बनाया।
बाबा राजपुरी 52 शक्तिपीठ में शामिल माता ¨हगलाज को काफी मानते थे। इसके बाद गांव बाबा लदाना में राजपुरी डेरा की स्थापना हुई। बाबा राजपुरी के 360 धूणे हैं। डेरा के पहले महंत सिद्ध पुरी थे, जिन्होंने 1709 में समाधी ली। उनके बाद महंत भंडार पुरी ने 1745, महंत शुद्ध पुरी ने 1778, महंत भण्डार पुरी ने 1803, महंत ज्ञान पुरी ने 1871, महंत तोतापुरी ने 1884, महंत चेतनपुरी ने 1897, महंत हजारी पुरी ने 1905 में समाधी ली। संत दूज पुरी 12 जुलाई 2011 को डेरा के 21वें महंत बने थे।
ऐसे हुई विवाद की शुरूआत
अप्रैल 2018 में गद्दी को लेकर विवाद शुरू हुआ था। गांव के कुछ लोगों ने तत्कालीन महंत दूजपुरी को श्रद्धालुओं से धक्का-मुक्की करने के आरोप में गद्दी से उठा दिया था और उनके स्थान पर प्रेमपुरी को डेरे का महंत बना दिया था। इसका दूजपुरी पक्ष के लोगों ने विरोध कर दिया। इसके बाद विवाद बढ़ता गया। अब गद्दी को लेकर दो महंत ही नहीं बल्कि ग्रामीण भी आमने-सामने हैं। ग्रामीणों के दो पक्षों में बंट जाने के कारण विवाद को बढ़ता देख प्रशासन की ओर से धारा 145 लगाकर डेरे के देखरेख अपने अधीन ले ली। एसडीएम कोर्ट में केस आने के बाद दो बार महंत दूजपुरी के पक्ष में फैसला आ चुका है, लेकिन अभी तक गद्दी नहीं सौंपी जा रही है।
गद्दी विवाद को सुलझाने व ग्रामीणों को एकमत करने के लिए गांव बाबा लदाना में अगस्त व सितंबर माह में कई बार आसपास के गांवों की महापंचायत हुई, लेकिन उस दौरान भी विवाद नहीं सुलझ सका। 25 गांवों से पहुंचे गणमान्य लोगों ने विवाद को समाप्त करने के लिए प्रयास किया, लेकिन कोई सार्थक परिणाम हाथ नहीं लगे। अब डेरे व संपत्ति प्रशासन की
देखरेख में है।