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प्रगतिशील किसान बनेंगे प्रशासन की मुहिम के झंडाबरदार

फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर प्रदेश सरकार की ओर से चलाई जा रही मुहिम में कैथल के डीसी सुजान सिंह ने पैबंद लगाने की कवायद की है। दैनिक जागरण के किसान सम्मान समारोह में उन्होंने विचार साझा किया कि जिन प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया जा रहा है वह प्रशासन की मुहिम के झंडाबरदार हो सकते हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Jan 2021 06:02 AM (IST)Updated: Fri, 01 Jan 2021 06:02 AM (IST)
प्रगतिशील किसान बनेंगे प्रशासन की मुहिम के झंडाबरदार
प्रगतिशील किसान बनेंगे प्रशासन की मुहिम के झंडाबरदार

जागरण संवाददाता, कैथल: फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर प्रदेश सरकार की ओर से चलाई जा रही मुहिम में कैथल के डीसी सुजान सिंह ने पैबंद लगाने की कवायद की है। दैनिक जागरण के किसान सम्मान समारोह में उन्होंने विचार साझा किया कि जिन प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया जा रहा है, वह प्रशासन की मुहिम के झंडाबरदार हो सकते हैं। वह दूसरे किसानों के लिए ब्रांड एंबेसडर का काम करें, इसलिए कृषि विभाग एक बुकलेट में उनकी उपलब्धियां प्रकाशित कर सकता है। डीसी सुजान सिंह के इस विचार को भरपूर समर्थन मिला और प्रगतिशील किसानों ने इसे सराहा। डीसी ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए किसान प्रहरी बने हुए हैं। आग लगाने की जगह फसल अवशेष का प्रबंधन कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि जमीन की उर्वरता शक्ति कमजोर होने लग गई थी। इस कारण विभिन्न प्रकार की खेती शुरू की है ताकि जमीन की उर्वरता शक्ति कमजोर न हो।

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पानी की बचत कर रहे हैं: लक्ष्मण

किसान लक्ष्मण वर्ष 1987 में जब पूरे हरियाणा में सूखा पड़ा तो लक्ष्मण ने भू-जल स्तर ऊपर लाने के लिए कुछ कल-पुर्जे खरीद नल वैक्यूम पंप बनाया। इससे कम ऊर्जा की खपत में सतह का पानी ऊपर लाया जाता है। खासियत यह है कि नल 200 से 1000 फीट की गहराई में लगाया जा सकता है। इस नल में 5 से 6 हॉर्स पॉवर की मोटर लगी है। सबमर्सिबल पंप को चलाने में 20 घंटे में 80 लीटर डीजल लगता है। इसमें 16 लीटर लीटर डीजल की खपत होती है।

बागवानी में है रुचि

पट्टी अफगान निवासी सतीश कुमार की बागवानी में रुचि है। लाल आलू की खेती कर लाखों रुपये की आमदनी कमा रहे है। पिछले सीजन में लाल आलू से एक एकड़ में 95 हजार रुपये की आमदनी की थी।

काली गेहूं से कमा रहे है अच्छी आमदनी-

सुभाष गुहणा काली गेहूं की खेती करते है। काली गेहूं की रोटी का अलग ही स्वाद है। काली गेहूं में पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करते है। अच्छी आमदनी कमा रहे है। उनका लक्ष्य काली गेहूं की फसल उगाकर बीमारियां दूर करना मुख्य लक्ष्य है।

आठ सालों से नहीं जला रहे है फसल अवशेष

प्रगतिशील मामराज फसल अवशेष आठ सालों से नहीं जला रहे है। खेत में ही फसल अवशेषों से खाद तैयार कर रहे है। उनका कहना है कि जब से फसल अवशेष जलाना बंद किया है तभी से खाद कम जमीन में लग रहा है।

गाजर की खेती लगा कर रहे अच्छी कमाई : रामेश्वर दास

प्रगतिशील किसान रामेश्वर दास सब्जियों की खेती करते हैं। गाजर हर साल चार एकड़ में लगाते हैं। उनका कहना है कि यहां फसल अवशेष का कोई चक्कर नहीं होता है। इससे अच्छी आमदनी भी हो रही हैं।

मशरूम का कारोबार करते हैं जगदीप

किसान जगदीप का मशरूम का कारोबार है। मशरूम से अच्छी आमदनी कमा रहे है। कई बार प्रशासन द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। मशरूम की चंडीगढ़ व दिल्ली तक मांग है। पांच दोस्तों ने मिलकर मशरूम कंपनी बना ली है।

फसल अवशेष प्रबंधन पर कर रहे है काम

किसान वीरेंद्र यादव पराली अवशेष प्रबंधन के लिए काम कर रहे हैं। कई युवाओं को काम भी दिया हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में विरेंद्र यादव का जिक्र भी किया है। सिर्फ पराली प्रबंधन के दम पर देश में पहचान बना चुके हैं।

दस सालों से पराली नहीं जलाई

प्रगतिशील किसान अंग्रेज सिंह गुराया ने फसल अवशेष प्रबंधन पर काम कर रहे है। पिछले दस सालों से पराली नहीं जलाई है। उनका कहना है कि जब से पराली नहीं जलाई तब से पानी खेत कम पी रहा है।

फसल अवशेष प्रबंधन पर कर रहे है काम: गज्जन

जिला सरपंच एसोसिएशन के प्रधान गज्जन सिंह गोबिदपुरा जिले में पराली अवशेष प्रबंधन में अपना नाम कमा रहे हैं। पूरे गोबिदपुरा गांव के खेतों में आग नहीं लगाई जाती है। पर्यावरण का प्रहरी गांव बना हुआ है। लीक से हटकर खेतीबाड़ी करने के चलते इस गांव सब्जीग्राम भी कहा जाता है।

खरबूजे की खेती के नाम से मशहूर: वीरेंद्र

प्रगतिशील किसान वीरेंद्र मेहता सब्जियों की जैविक खेती करते हैं। खरबूजे की खेती के कारण पूरे जिले में नाम है। दवाइयों का प्रयोग नहीं करते हैं। जैविक खीरा की भी खेती करते हैं। उनके खरबूजे की खुशबू दूसरे राज्यों में भी फैली है। बिना रसायन के गेहूं उगाकर खूब मुनाफा कमा रहे हैं।

नेशनल अवार्डी है महेंद्र रसीना

महेंद्र रसीना नेशनल अवार्डी है। 2011 के बाद से गांव रसीना के किसान महेंद्र ने अपने खेतों में फसल अवशेष नहीं जलाए। यहीं से किसान और जमीन दोनों के दिन बहुरने शुरू हो गए। हैप्पी सीडर मशीन इतना रास आई कि किसान ने अब खुद ऐसी अपने लिए दो मशीनें खरीद ली हैं। अब वह न तो फसल अवशेष जला 2011 के बाद से गांव रसीना के किसान महेंद्र ने अपने खेतों में फसल अवशेष नहीं जलाए।

पराली प्रबंधन पर कर रहे है काम: कुलदीप

प्रगतिशील किसान कुलदीप धारीवाल फसल अवशेष प्रबंधन पर काम कर रहे है। उनके पास कस्टम हायरिग सेंटर है। वे अपना खुद का पराली अवशेष प्रबंधन पर काम करना चाहते है। इसके लिए काम भी शुरू किया हुआ है। वह आइसीएआर के सदस्य भी रह चुके हैं।

सब्जियों से जिले में पहचान: रहेजा

किसान राजेश रहेजा सब्जियों के नाम से जिले में जाने जाते है। उनकी सब्जियां जैविक होती है। दवाइयों का प्रयोग नहीं करती है। सब्जी की खेती से लाखों रुपये काम रहे हैं।

सिकंदरखेड़ी गांव के प्रगतिशील किसान राजेश कुमार आज किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। वे जैविक खेती कर न केवल स्वयं और परिवार को बीमारियों से दूर रख रहे हैं, बल्कि दूसरों की हेल्थ का भी ख्याल रखे हुए है। खेतों में कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग बिल्कुल बंद करते हुए जैविक खेती की तरफ रुख कर लिया। दूर दूर तक जैविक चीजें पहुंच रही है।

बाक्स- अमरूद व नींबू का बाग लगाया हुआ है

सतबीर प्यौदा ने अमरूद व नींबू का बाग लगाया हुआ है। अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं। चंडीगढ़ व दिल्ली तक इनके अमरूदों की पहचान है। जैविक बाग लगाया हुआ है। उनका कहना है कि बीमारियां कम करना उनका मुख्य लक्ष्य है।

प्रशासन ने किया कई बार सम्मानित

गुरदयाल मलिकपुर सब्जियों की जैविक खेती करते है। उनको कई बार प्रशासन द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। सब्जियों की मांग इतनी है कि खेत से ही लगभग सब्जियां बेच रहे है। पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करते है। जिले का पहला फार्मर प्रोड्यूस आग्रेनाइजेशन यानि एफपीओ बनाया है।

कस्टम हायरिग सेंटर से कर रहे हैं फसल अवशेष प्रबंधन

प्रगतिशील किसान सुरेंद्र जाजनपुर फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कस्टम हायरिग सेंटर लिया हुआ है। उसके माध्यम से पराली अवशेष प्रबंधन कर रहे है। दस सालों से अवशेष नहीं जला रहे हैं।

दस सालों से नहीं जला रहे फसल अवशेष

प्रगतिशील किसान सुनील संधू पराली अवशेष पिछले दस सालों से नहीं जला रहे है। खेत में ही फसल अवशेष प्रबंधन कर रहे हैं। उनका कहना है कि पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता है। साथ ही खेती अच्छी होती है।

जमीन की उर्वरता शक्ति को बचा रहे है: रामकुमार

किसान रामकुमार धान व गेहूं की फसल अवशेष नहीं जलाते हैं। उनका कहना है कि पराली अवशेष से जमीन की उर्वरता शक्ति कमजोर हो रही थी। फसल लागत के हिसाब से नहीं निकल रही थी।

खेतों में आग नहीं लगा रहे

किसान जोरा सिंह पिछले दस सालों से फसल अवशेष प्रबंधन पर काम कर रहे हैं। खेतों में आग नहीं लगा रहे है। पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा रहे है। उनका कहना है कि जमीन तभी से अच्छी आमदनी दे रही है।


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