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वाट्सएप ग्रुप बना जैविक खेती के प्रति जागरूक कर रहे किसान राजेश

सिकंदरखेड़ी गांव के प्रगतिशील किसान राजेश कुमार आज किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। वे जैविक खेती कर न केवल स्वयं और परिवार को बीमारियों से दूर रख रहे हैं बल्कि दूसरों की हेल्थ का भी ख्याल रखे हुए है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 06:55 AM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 06:55 AM (IST)
वाट्सएप ग्रुप बना जैविक खेती के प्रति  जागरूक कर रहे किसान राजेश
वाट्सएप ग्रुप बना जैविक खेती के प्रति जागरूक कर रहे किसान राजेश

सोनू थुआ, कैथल

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सिकंदरखेड़ी गांव के प्रगतिशील किसान राजेश कुमार आज किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। वे जैविक खेती कर न केवल स्वयं और परिवार को बीमारियों से दूर रख रहे हैं, बल्कि दूसरों की हेल्थ का भी ख्याल रखे हुए है। राजेश बताते हैं कि मां को एक दिन दिक्कत हुई तो वे डाक्टर के पास लेकर गए। रिपोर्ट करवाई को कैंसर की बीमारी निकली। यह सुनकर वे काफी दुखी हुए, लेकिन हौसला रखते हुए अपने आप को संभाला। इसके बाद उन्होंने खेतों में कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग बिल्कुल बंद करते हुए जैविक खेती की तरफ रुख कर लिया।

वर्ष 2002 से दो एकड़ में जैविक खेती कर रहे हैं। इनमें सब्जियां, गेहूं, चावल, सरसों का तेल सहित अन्य फसल तैयार करते हैं। इनके खाने से लोग पूरी तरह से बीमारियों से बच सकते हैं। प्रगतिशील किसान ने बताया कि लॉकडाउन में जब सबकुछ बंद था तो वाट्सएप का आइडिया आया और ग्रुप बनाकर लोगों को जोड़ना शुरु किया।

उनके द्वारा तैयार की गई सब्जियां, और अन्य फसल राजस्थान, मुम्बई, दिल्ली, चंडीगढ़ और पंजाब के पटियाला सहित अन्य शहरों में जाती है। किसान राजेश बताते हैं कि वे सब्जियों को बेचने के लिए नहीं जाते, बल्कि खेत से ही अपने आप खरीदार ले जाते हैं।

जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया जाए

प्रगतिशील किसान राजेश कुमार बताते हैं कि किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया जाए तो काफी फायदा मिलेगा। एक तो किसान की पैदावार बढ़ेगी, दूसरा लोगों की सेहत सुधरेगी। किसानों को इस खेती के प्रति जागरूक करने के लिए वे उन्होंने वाट्सएप ग्रुप बनाया हुआ है। अब तक 500 किसानों को वे जोड़ चुके हैं। शुरूआत में उन्होंने भी काफी मुश्किल आई, आमदनी भी कम हुई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लगे रहे। धीरे-धीरे इसका फायदा मिला। आज वे बड़ी आसानी से काम करते हुए मुनाफा कमा रहे हैं। दो से ढ़ाई लाख की आमदनी है। इस बार कोरोना महामारी के चलते एक लाख तक आमदनी हो रही है।

2002 से जैविक खेती प्रारंभ की

गांव खेड़ी सिकंदर के प्रगतिशील किसान राजेश कुमार ने को बताया कि उन्होंने दो एकड़ में खेती शुरू की थी तथा 2002 से जैविक खेती प्रारंभ की। शुरू में छोटी जोत होने के कारण काफी परेशानी उठानी पड़ी तथा खेत में तैयार सब्जियां आसपास के क्षेत्रों में रेहड़ी में बेचकर गुजारा करते थे। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में विस्तार होने के साथ-साथ उनकी सब्जियों की मांग आसपास के बड़े नगरों के शॉपिग मॉल में बढऩे लगी। उन्होंने दिल्ली, पंचकूला, पटियाला के बड़े मॉल में सब्जियां सप्लाई शुरू की और उनका कारोबार बढ़ता चला गया। सब्जियों की बिक्री के लिए किसानों का एक समूह बनाया तथा इन सब्जियों की खेती करके को और बढ़ाया गया। कृषि विद्यालय कौल में 10 एकड़ में लीज पर बाग लेकर उसमें नाशपति, अमरूद्ध, चीकू की फसल तैयार करके फलों की पैदावार को कृषि का केंद्र बनाया गया।

किसान ने बताया कि उसकी जैविक खेती से उगाई गई सब्जियों, फलों व अनाज की मांग इतनी अधिक है कि अन्य राज्यों से व्यापारी उसके खेत से ही फसल ले जाते हैं। व्यापारी उसके साथ फोन पर ही बुकिग कर लेते है। किसान राजेश कुमार ने बताया कि उसके द्वारा निकाला गया सरसों के तेल की दिल्ली तक में मांग है। दिल्ली से व्यापारी आकर उससे सरसों का तेल लेकर जाते हैं। राजेश कुमार ने बताया कि जैविक खेती से उसका अच्छा खासा मुनाफा हुआ है।

प्रगतिशील किसान बताते हैं कि जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों कीटनाशकों के स्थान पर कुदरती खाद का प्रयोग किया जाता है। जैसे गोबर की खाद, हरी खाद, जीवाणु कल्चर के अलावा बायो-पैस्टीसाइड व बायो एजेंट जैसे क्राइसोपा आदि का प्रयोग किया जाता है। इससे न केवल भूमि की पैदावार शक्ति लंबे समय तक बनी रहती है बल्कि पर्यावरण भी संतुलित रहता है। किसान ने बताया कि पौध वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश के अलावे काफी मात्रा में गौण पोषक तत्वों की पूर्ति जैविक खादों से होती है। इन खादों के प्रयोग से पोषक तत्व पौधों को काफी समय तक मिलता है। इन खादों के प्रयोग से दूसरे फसल को भी लाभ मिलता है।


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