कुसुमलता के हाथ से प्रचंड होती मां की ज्योति
संवाद सहयोगी, कलायत : देश भर के मंदिरों में मुख्य रूप से पुजारी की कमान पुरुषों के हाथ ह
संवाद सहयोगी, कलायत : देश भर के मंदिरों में मुख्य रूप से पुजारी की कमान पुरुषों के हाथ है। कलायत स्थित मां ज्वाला मंदिर एक नई परंपरा का संदेश दे रहा है। यहां कुसुम लता पुजारिन के रूप में धार्मिक रस्मों का निवर्हन करवा रही हैं। 60 वर्षीय जागरूक महिला कुसुम पिछले करीब दो दशक से सभ्यता संरक्षण की जिम्मेवारी उठाए हैं। परिणामस्वरूप पुराने बाजार में स्थित निर्मल धर्मशाला के पास मां ज्वाला मंदिर अपने आप में नारी उत्थान का प्रतीक बना है। पिछले कई वर्षो से यहां अखंड जोत से न केवल भक्ति का प्रकाश निकल रहा है, बल्कि नारी सम्मान का गवाह इसे कहा जा सकता है। धर्म स्थल का संबंध सीधा हिमाचल प्रदेश स्थित प्रसिद्ध मां ज्वाला मंदिर से है। यहीं से प्रचंड जोत को लाया गया था जो निरंतर प्रज्वलित है। भले नारी सशक्तिकरण व सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्यक्रमों इसे इतिहास का महत्वपूर्ण पन्ना बनाए हैं। इस मायने से सांख्य दर्शन के प्रवर्तक भगवान कपिल मुनि की धरा पर मां ज्वाला का यह मंदिर अपनी अलग छटा बिखेर रहा है।
उल्लेखनीय है कि कलायत मुख्य रूप से नारी शिक्षा में पीछे रहा है। इस दृष्टि से मेवात के बाद पूर्व में इलाका दूसरे स्थान पर रहा। लेकिन आधुनिकता के दौर में आम जन की सोच बदल रही है। श्री कपिल मुनि महिला कालेज की स्थापना उसी का परिणाम है। इस कड़ी में सरकारी तौर से राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक, मिडिल व प्राथमिक पाठशालाओं को सुदृढ़ता प्रदान करना महिलाओं के लिए एक नए युग के द्वार खोल गया।
घर की चारदीवारी व चूल्हा चौका तक सीमित रहने वाली महिलाएं आज शिक्षा, खेल, सरकारी सेवा, समाज सेवा व अन्य क्षेत्रों में अपनी काबिलियत का लोहा मनवा रही हैं। बदलाव की यह बयार शहरों से गावों की ओर भी दौड़ने लगी है। बेटी जन्म पर मातम में डूबने वाले परिवार आज कन्या के आने पर ढोल-नगाड़े बजा रहे हैं। कुआं पूजन हो रहा है। इस दौर में मां ज्वाला मंदिर की पुजारी के रूप में कुसुम लता द्वारा जिम्मेवारी से सभ्यता का संरक्षण करना निसंदेह क्रांतिकारी युग का बड़ा उदाहरण है।