पंचायत स्तर पर गोशाला बने तो होगा बेसहारा पशुओं का समाधान
जिले भर में बेसहारा पशुओं की समस्या लगातार बढ़ रही है। शहर में करीब 700 पशु सड़कों पर हैं। बेसहारा पशुओं की समस्या जिला प्रशासन के लिए चुनौती बनी हुई है।
जागरण संवाददाता, कैथल : जिले भर में बेसहारा पशुओं की समस्या लगातार बढ़ रही है। शहर में करीब 700 पशु सड़कों पर हैं। बेसहारा पशुओं की समस्या जिला प्रशासन के लिए चुनौती बनी हुई है। गोशाला संचालक पशु लेने से मना कर चुके हैं और नगर परिषद ने भी अपने हाथ खड़े कर रखे हैं। सड़क हादसों में गोवंश और वाहन चालक चोटिल हो रहे हैं। ज्यादातर गोशाला संचालकों का कहना है कि शहरों में जो बेसहारा पशु हैं वे आस-पास के गांवों से छोड़े गए हैं। रात के समय ग्रामीण शहरों में पशु छोड़कर चले जाते हैं, जिस कारण समस्या गंभीर बनी हुई है। सरकार की ओर से भी गोशालाओं को बजट कम दिया जा रहा है, जिस कारण मुश्किल से पशुओं के चारे का प्रबंध किया जा रहा है।
बेसहारा पशु के कारण टकराई गाड़ी
बेसहारा पशुओं के कारण कई बार वाहन दुर्घटना ग्रस्त हो चुके हैं। बुधवार शाम एक गाड़ी चीका से सीवन की तरफ आ रही थी। एक गाय को बचाते-बचाते अनियंत्रित होकर गाड़ी शिवपुरी शमशान घर के सामने डिवाइडर से टकरा गई। वाहन चालक गौरव ने बताया कि वह चीका से सीवन आ रहा था कि सीवन में एक गाय वाहन के सामने आ गई। उसे बचाने के चक्कर में उसका वाहन डिवाइडर से टकरा गया, जिससे उसकी गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गई।
कोरोना ने प्रभावित कर दिया बजट
गोपाल गोशाला के प्रधान महेश कुमार ने बताया कि उनकी गोशाला में करीब 2700 पशु हैं। गोशाला में दो हजार पशु ही अच्छे तरीके से रह सकते हैं। ऐसे में अगर अधिक पशु लिए तो उनके लिए समस्या खड़ी हो जाएगी। गोशाला में एक दिन का करीब 70 हजार रुपये खर्च है। सरकार की ओर से सात में आठ से दस लाख रुपये का ही बजट आता है, जो बहुत कम है। कोरोना के कारण भी गोशाला में आर्थिक तंगी हो रही है। शहर में बेसहारा पशुओं की संख्या बढ़ने का कारण आस-पास के गांव हैं। ज्यादातर ग्रामीण बछड़ों और सांडों को शहर में छोड़कर चले जाते हैं। जिला प्रशासन को चाहिए कि पंचायत स्तर पर गोशाला बनाई जाए। अगर ऐसा होता है तो ही समस्या का समाधान हो सकता है।